विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
एक भारतीय लोरी
एक हिन्दू रानी थी- उसकी बड़ी तीव्र इच्छा थी कि उसके पुत्र इसी जन्म में मुक्ति-लाभ कर लें। इसी उद्देश्य से उसने उन पुत्रों के लालन-पालन का सम्पूर्ण भार अपने ही ऊपर ले लिया। वह उनको झुलाते झुलाते सुलाने के समय उनके समीप यह गाना गाती थी - तत्त्वमसि, तत्त्वमसि।
उनके तीन पुत्र संन्यासी हो गये, किन्तु चतुर्थ पुत्र का, उसे राजा बनाने के उद्देश्य से, अन्यत्र पालन-पोषण हुआ। विदा देते समय माँ ने उसे कागज का एक टुकड़ा देकर कहा, "बड़े होने पर पढ़ना, इसमें क्या लिखा है।" उस कागज के टुकड़े में लिखा था - 'ब्रह्म सत्य और सब मिथ्या। आत्मा न कभी मरती है, न मारती है। निःसंग बनो अथवा सत्संग करो।' बड़े होने पर जब राजपुत्र ने इसे पढ़ा तो वह भी उसी समय संसार त्याग कर संन्यासी हो गया। (७.१०५-१०६)
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