विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
क्या हम ईश्वर को चाहते हैं?
प्रतिदिन हम अपने आपसे यही प्रश्न करें - क्या हमें ईश्वर को प्राप्त करने की लालसा है?
जब हम धर्म की बातें करें और खासकर जब हम ऊँचा आसन ग्रहण करके दूसरों को उपदेश देने लगें, तब हमें अपने से यही प्रश्न पूछना चाहिए।
मैं अनेक बार देखता हूँ कि मुझे ईश्वर की चाह नहीं है; मुझे रोटी की चाह उससे अधिक है। यदि मुझे एक टुकड़ा रोटी न मिले, तो मैं पागल हो जाऊँगा। हीरे की पिन के बिना बहुतेरी महिलाएँ पागल हो जायँगी। पर उन्हें ईश्वर-प्राप्ति के लिए इसी प्रकार की लालसा नहीं है। विश्व की 'उस एकमात्र यथार्थ वस्तु का उन्हें ज्ञान नहीं है।
हमारी भाषा में एक कहावत प्रचलित है - 'मारै तो हाथी, लूटै तो भण्डार।' भिखारियों को लूटकर या चींटियों का शिकार करके क्या लाभ हो सकता है? अतः यदि प्रेम करना है, तो ईश्वर से प्रेम करो। (९.२१)
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