विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
आत्मा और उसकी परतंत्रता
हम ही समस्त जगत् के वे अनन्त सत् हैं तथा हमने ही जड़भावापन्न होकर इन क्षुद्र नर-नारियों का रूप धारण किया है, हम किसी व्यक्ति की मधुर बात या किसी अन्य व्यक्ति की क्रोध भरी बात इत्यादि पर कितने निर्भरशील हैं। कितनी भयानक निर्भरता, कितनी भयानक दासता है!
तुम हमारी देह में यदि एक चिमटी काटो तो हमें कष्ट होता है। कोई यदि मीठी बात करता है, त्योंही हमें आनन्द होने लगता है। हमारी कैसी दुर्दशा है, देखो - हम देह के दास, मन के दास, जगत् के दास, एक अच्छी बात के दास, एक बुरी बात के दास, वासना के दास, सुख के दास, जीवन के दास, मृत्यु के दास - हम सब वस्तुओं के दास हैं ! यह दासत्व हटाना होगा। कैसे? सर्वदा ही सोचो, 'मैं ब्रह्म हूँ'। (६.२९६)
अतएव ज्ञानी का ध्यान किस प्रकार हुआ? ज्ञानी देह-मन विषयक सब प्रकार के विचारों को दूर करना चाहते हैं और वे इस विचार को निकाल बाहर करना चाहते हैं कि हम शरीर हैं। देह को सुन्दर रखने का यत्न क्यों है? भ्रम का एक बार फिर भोग करने के लिए! इस दासत्व को जारी रखने के लिए? देह जाय, हम देह नहीं है। यही ज्ञानी की साधना-प्रणाली है। भक्त कहते हैं, "प्रभु ने हमें इस जीवन-समुद्र को सहज ही लाँघने के लिए यह देह दी है, अतएव जितने दिनों तक यात्रा शेष नहीं होती, उतने दिनों तक इसकी यत्नपूर्वक रक्षा करनी होगी।” योगी कहते हैं, "हमें देह का यत्न अवश्य ही करना होगा, जिससे हम धीरे धीरे साधना-पथ पर आगे बढ़कर अन्त में मुक्तिलाभ कर सकें।" (६.२९८-२९९)
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