विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
वेदान्त का सार तत्त्व
यहाँ मैं आपके समक्ष यही कह सकता हूँ कि वेदान्त क्या सिखाना चाहता है और वह (शिक्षा) है - विश्व का दैवीकरण। वेदान्त वास्तव में संसार की भर्त्सना नहीं करता। वेदान्त में जिस प्रकार चूड़ान्त वैराग्य का उपदेश है, उस प्रकार और कहीं भी नहीं है। पर इस वैराग्य का अर्थ शुष्क आत्महत्या नहीं है। वेदान्त में वैराग्य का अर्थ है, जगत् को ब्रह्म-रूप देखना जगत् को हम जिस भाव से देखते हैं, उसे हम जैसा जानते है, वह जैसा हमारे सम्मुख प्रतिभात होता है, उसका त्याग करना और उसके वास्तविक स्वरूप को पहचानना। उसे ब्रह्मस्वरूप देखो वास्तव में वह ब्रह्म के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, इसी कारण प्राचीन उपनिषदों में से एक उपनिषद् में हम देखते हैं, ईशावास्यमिद सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् 'जगत् में जो कुछ है, वह सब ईश्वर से आच्छादित कर देना चाहिये।'
समस्त जगत् को ईश्वर से आच्छादित कर लेना होगा। यह किसी मिथ्या आशावादिता से नहीं, जगत् के अशुभ और दुःख कष्ट के प्रति आँखें मीचकर नहीं, वरन् वास्तविक रूप से प्रत्येक वस्तु के भीतर ईश्वर के दर्शन द्वारा करना होगा। इसी प्रकार हमें संसार का त्याग करना होगा। और जब संसार का त्याग कर दिया, तो शेष क्या रहा? ईश्वर। इस उपदेश का तात्पर्य क्या है? यही कि तुम्हारी स्त्री भी रहे, उससे कोई हानि नहीं; उसको छोड़कर जाना नहीं होगा, वरन् इसी स्त्री में तुम्हें ईश्वर-दर्शन करना होगा। सन्तान का त्याग करो - इसका क्या अर्थ है? क्या बाल-बच्चों को लेकर रास्ते में फेंक देना होगा, जैसा कि सभी देशों में कुछ नर-पशु करते हैं? निश्चित ही नहीं। यह धर्म नहीं; निरी पिशाचबुद्धि है। अपने बच्चों में ईश्वर का दर्शन करो? इसी प्रकार सभी वस्तुओं के सम्बन्ध में जानो। जीवन में, मरण में, सुख में, दुःख में - सभी अवस्थाओं में ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। केवल आँखें खोलो और उनके दर्शन करो। वेदान्त यही कहता है। (२.१५०)
यह वास्तव में ही एक जबरदस्त दावा है। किन्तु वेदान्त इसीको प्रमाणित करना, इसीकी शिक्षा देना और इसी का प्रचार करना चाहता है। (२.१५१)
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