संस्मरण >> जालक जालकशिवानी
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शिवानी के अंतर्दृष्टिपूर्ण संस्मरणों का संग्रह...
चौंतीस
हमारे कुछ प्रशासकीय विभाग अपनी दुरूह नीतियों में कभी-कभी 'कोयलों में मुहर और अशर्फियों में लूट' वाली लोकप्रिय कहावत का अवांछनीय प्रयोग कर बैठते हैं, तो चित्त खिन्न हो उठता है। जहाँ नवीन राजनीतिक उथल-पुथल हुई, वहीं शिलान्यास, नवीन सड़कों का उद्घाटन, नवीन अस्पतालों की कुकुरमुत्ता-सी उपज, एक विचारणीय प्रश्न को, प्रश्नचिन्ह के रूप में हमारी आँखों के सम्मुख अंकित कर देती है।
क्या नवीन उपलब्धियों की ही भाँति पुरानी उपलब्धियों का संरक्षण भी उतना ही आवश्यक नहीं है? शायद इस प्रश्न ने ही कभी हमारे अतीत के शासकों को सार्वजनिक निर्माण विभाग की सृष्टि की प्रेरणा दी होगी, इसका भी एक विशिष्ट उपविभाग है 'मैण्टनेंस' या संरक्षण विभाग। वैसे भी जनता की पारखी दृष्टि कभी इसकी निर्वीर्यता को हथेली पर चल रही घु-सा ही पकड़ती रही है। जिस लोकप्रिय संक्षिप्त नाम से इसे पुकारा जाता है, उस 'पी. डब्ल्यू' के उच्चारण मात्र ही में कभी जनता का आक्रोश स्वयं व्यक्त हो उठता है। मेरे एक परिचित मित्र इसे 'पब्लिक वूज डिपार्टमेंट' कहते थे, अर्थात् 'जनता के दुखों का विभाग।' युग हिन्दी का है इसी से, जब कभी जी में आता है, इसे सार्वजनिक निर्माण विभाग के स्थान पर 'सार्वजनिक निर्वाण विभाग' कहें तो हमारे क्षुब्धचित्त अधिक पुलकित होंगे। इसी विभाग ने कभी अपने प्रशासकीय अफसरों के लिए कुछ सुन्दर-सस्ते फ्लैटों का निर्माण करवाया था, जैसे दिल-कुशा, गुलिस्ताँ, राजभवन, बटलर पैलेस आदि।
इन सबमें सम्भवतः गुलिस्ताँ की ही आवासीय उपादेयता अब भी वैसी ही सर्वश्रेष्ठ बनी रह गई है। इसका एक कारण शायद इसका मनमोहक ह्रस्व किराया है। दूसरा अंग्रेज़ी स्कूलों का नैकट्य। इसे हम एक प्रकार से इसका गुण-किरीट कह सकते हैं, क्योंकि हममें से आज कितने ऐसे अफसर हैं, जो ये नहीं चाहते कि पुत्री लौरेटो में पढ़े, और पुत्र मार्टिनीयर में! शनि की महादशा साढ़े साती के पदाघात की ही भाँति विदेशी शासकों का यह पदाघात सदा के लिए हमारे हृदयों पर अंकित होकर रह गया है। इस कालोनी का तीसरा गुण है, पुण्यतोया भागीरथी की जलधार की ही भाँति इसकी टंकियों की जलधार कभी क्षीण नहीं होती। उधर बटलर पैलेस में गत बाढ़ के समय कई गृहिणियाँ भी अपने गैस के चूल्हों के साथ वन्यांजल में असहाय तरणी-सी ही डगमगाने लगी थीं।
राजभवन फ्लैटों के कर्णप्रिय नामों की महिमा केवल कानों को ही सुख देती है। ऊपर के फ्लैट में सूने नल चिरवन्ध्या नारी की कोख से ही दग्ध होते रहते हैं।
दिलकुशा का जिद्दी रेलवे फाटक अकारण ही सत्रह-सत्रह गज की अधेड़ मालगाड़ियों को अपनी पटरियों पर रेंगाता, कारस्वामियों के वैभव को तुच्छ कर, उन्हें मुर्गा बनाए गए ग्राम पाठशालाओं के छात्रों की भाँति घंटों खड़ा कर रख देता है। इसी से जब किसी को गुलिस्ताँ का कोई रिक्त फ्लैट आवंटित होता है, तो सात पुत्रियों के बाद जन्मे पुत्र का-सा ही उल्लास उसे नचा देता है। स्वयं मैंने इस फ्लैट को पाने के लिए कभी महीनों तक पापड़ बेले थे। पति की मृत्यु के पश्चात् विभाग ने मुझे भी फ्लैट रिक्त करने का आदेश देने में 'मृदूनि कुसुमादपि' चित्त का परिचय नहीं दिया। मेरी बीस-पच्चीस वर्ष की साहित्यिक उपलब्धियों की पलभर में धज्जियाँ उड़ा दी गईं। उधर मैं भी साँप के सम्मुख नेवला बनी डटी ही रही। जिस वर्किंग जर्नलिस्ट न होने के शस्त्र से मुझे धराशायी किया गया उसे मैंने इसी 'वातायन' को दो वर्ष खोलकर विफल किया था।
फ्लैट तो मिल गया, किन्तु उसके साथ ही रक्तशून्यता का अपूर्व उपहार भी अनायास ही उपलब्ध हो गया।
कभी ये फ्लैट निःसन्देह अपने कैशोर्य से दर्शनीय लगते थे, किन्तु विगत तीन वर्षों से पुताई एवं टूट-फूट की मरम्मत न होने से चिता से उठ भागे किसी अर्धदग्ध मुर्दे से ही दिखने लगे हैं। इससे जब चार मजदूर हाथ में सफेदी की बाल्टी लिए जाए तो जी में आया, उन चारों को रात को सहभोज का निमन्त्रण दे डालूँ। किन्तु तब ही उनमें से एक बुजुर्ग मजदूर ने कहा, "सिर्फ किचन और बाथरूम में सफेदी होगी मेमसाहब और कहीं नहीं-यही 'आडर' है।"
'आडर' तो फिर आडर ही होता है, इसी से रसोईघर एवं दो सौभाग्यशाली गुसलखानों पर ताबड़तोड़, सफेदी के दो-तीन झाड़ मार सार्वजनिक निर्माण विभाग का वह हवाई दस्ता उड़ गया, तो मैंने दुखी दृष्टि से अपने फ्लैट के उस बदरंग वैभव को निहारा। गन्दे पेटीकोट के ऊपर जैसे कभी किसी सुदर्शना नारी ने पतली सफेद और-जा की साड़ी पहन ली थी। संक्षेप में कहूँ, तो बेलीगारद की और हमारी दीवारों में केवल विदेशी बमगोलों के छिद्रों का ही अन्तर रह गया है। हक्सले ने, जिसके क्रिमनली अगली (वह बदसूरती जो कानूनन दंडित होने योग्य है) होने का उल्लेख किया है, इसका अर्थ इतने वर्षों में आज स्वयं बोधगम्य बन उठा!
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