गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
वेदोंमें ऐसे अनेक अमूल्य ज्ञान-कण बिखरे पड़े हैं, जिनमें गलत राहसे हटाकर मनको कल्याणकारी मार्गपर चलनेके लिये प्रार्थनाएँ की गयी हैं-
न भद्रं नो अपिवातय मनः। (ऋए० १०। २८। १)
'हे परमात्मन्! मेरे मनको कल्याणकी ओर ले चलो।'
असंतापं मे हृदयम्। (अथर्व० १६३। ६)
'हे परमात्मन्! मेरा हृदय संतापसे हीन होता चले अर्थात् अपनी दुर्बलताओंके दर्शन कर मेरे मनमें जो आत्मग्लानि उत्पन्न हो वह सत्कर्म और शुभ विचार द्वारा दूर होती चले।'
वि नो राये झो वृधि। (ऋए० ९। ४५। ३)
'हे प्रभो! ऐश्वर्यके लिये हमारे आन्तरिक मनके द्वार खोल दो। (अर्थात् हमें निकृष्ट विचारोंसे मुक्त कर दो और दैवी एकता, विपुलता, आत्मकल्याणके विचारोंसे परिपूर्ण कर दो।)'
स्वामी दयानन्दजीने 'सत्यार्थप्रकाश' में एक स्थानपर लिखा है, 'सज्जनों और उन्नति करनेवालोंकी यह रीति है कि वे गुणोंको ग्रहणकर दोषोंका परित्याग सदा करते रहते है।'
कद व ऋतं कमनृतं क्व प्रत्ना। (ऋए० १। १०५। ५)
'क्या उचित है या अनुचित, यह निरन्तर विचारते रहो। विवेक और आत्माके आदेशका आश्रय ग्रहण करो।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य