गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
शान्ति की गोद में
मनुष्य चाहता है कि किसी प्रकार संतुष्ट होकर शान्ति-जैसी दैवी- सम्पदाका सुख प्राप्त करे। पर शान्ति, शान्ति चिल्लाती हुई यह मायावी प्रगति वास्तवमें हमें शान्तिसे बहुत दूर ले जा रही है। हम प्राचीनकालमें अधिक शान्त एवं प्रसन्न थे। यदि हमारी प्रगति इसी प्रकार होती रही तो शान्ति सदाके लिये हमसे विलग हो जायगी!
आज सर्वत्र शान्ति-शान्तिकी व्यापक पुकार सुनायी पड़ती है। राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक सभी क्षेत्रोंमें उथल-पुथल है। प्रत्येक व्यक्ति यह समझता है कि आधुनिक भौतिकवाद से कुछ होने-जानेवाला नहीं है, तब भी उसीको अपनाये हुए है। यह बात नहीं कि अशान्तिका कारण अर्थकी कमी हो। जनताके पास यथेष्ट मात्रामें धन है, किंतु फिर भी अतृप्ति, आन्तरिक विक्षोभ, मानसिक कष्टोंकी संख्या अभिवृद्धिपर है। इसका कारण क्या है?
हमारे सिद्धान्त की निर्बलता ही इस अशान्तिका कारण हो सकती है। भोगवाद-खाओ-पीओ, मौज उड़ाओ! यह आज के सभ्य व्यक्तिका सिद्धान्त बन गया है। वह अधिक-से-अधिक सांसारिक सुख चाहता है। उसके सुखोंका प्रारम्भ होता है तृष्णासे। इस वस्तुको प्राप्त कर लूँ उसका मजा लूँ खाने-पीनेके पश्चात् वासनाके सुख वह लूटता है। उनकी पराकाष्ठा कर बैठता है, किंतु रुपया, जायदाद, पुत्र, पुत्री, मान-बड़ाई के बावजूद उसे प्रतीत होता है कि उसके अंदर कुछ खोया-खोया-सा है। कुछ स्थान खाली-खाली-सा है। इस खालीपनसे ही वह जगत्से वैराग्य स्थापित करता है।
सांसारिक भोग-पदार्थों के ऊपर जो उच्च आध्यात्मिक जीवन है, जिसमें भोगवाद छूटकर त्यागकी महत्ता है; अपने सुखके स्थानपर दूसरेको सुखी करने, लेनेके स्थानपर देनेकी भावना है-वह आदर्श इस खोखलेपनको दूर करनेका एक उपाय है।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य