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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मनुष्य जब एकत्रित करनेके स्थानपर अपनी चीजोंको दूसरोंके सहायतार्थ प्रेमसे, सहयोगपूर्वक वितरण करनेकी सोचता है, तब वह शान्तिकी ओर एक कदम बढ़ाता है। धन, वस्तुएँ जायदाद, भोग्य वस्तुएँ एकत्रित करनेसे उनके प्रति मोहकी उत्पत्ति होती है। यह मोह उन वस्तुओंसे इतना जकड़ देता है कि उस मोह-पाशसे पृथक् नहीं हो सकता। उस मोहके कारण उसे उन एकत्रित चीजों में से कोई भी कम होने या विनष्ट होने से दुःख होता है। अतः मोह बन्धन है।

जो मनुष्य स्वार्थसे छुटकारा पा गया है, वह शान्त है, वह प्रसन्नचित्त है और संसारको त्याग देनेमें किसी प्रकारके दुःखका अनुभव नहीं करता। दुःख अथवा थकावटका मुख्य कारण अपने-आपको सांसारिक जंजालसे बाँध लेना है। बाँधनेके स्थानपर उससे मुक्त रहना, सांसारिक चीजोंमें लिप्त न होना, उन्हें त्यागकर दैवी सम्पत्तिमें विश्वास रखना, उसीमें अपने सुखोंकी जड़ मानना-शान्तिकी गोदमें जाना है।

ईश्वरीय आदेश यह है कि हम खुले रहें, मोह के बन्धन से मुक्त रहें। उच्च आध्यात्मिक सत्तामें  रमण करने से इस शरीर को त्यागने में कुछ दुःखका अनुभव नहीं होता। आपकी भावना यह होनी चाहिये-

'मेरा कुछ नहीं है। मेरा संसारके घर-बार, बच्चे, जमीन-जायदाद से कुछ सरोकार नहीं है। यह मेरा स्वरूप नहीं है। मैं भोगवादी नहीं हूँ। मैं संसार के विकारों में रमण करनेवाला कीड़ा नहीं हूँ। मेरे अन्दर स्वार्थपरता और मनोविकारोंका बन्धन नहीं है। मैं संसारकी अनित्य-अस्थिर चीजोंसे अपने-आपको नहीं जकड़ता हूँ।'

जहाँ सांसारिक चीजोंसे बँधे रहनेकी भावना है, वहीं दुःख और क्लेश है। जहाँ उनसे ऊपर आध्यात्मिक सत्तामें रहनेकी भावना है, वहीं मोक्ष है। सर्वदा मृत्युके लिये तैयार रहो। इससे जीवन और मृत्यु दोनों सुखद हो जायेंगे। 

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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