गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
|
7 पाठकों को प्रिय 341 पाठक हैं |
प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
परमार्थ के पथपर
शास्त्र कहता है 'सत्य सुखे सञ्जयति' सत्से सुख उपजता है। यदि आप जीवनके उच्चतम लाभको प्राप्त करना चाहते हैं तो वह बाह्य जगत् में नहीं, अन्तर्जगत्में प्राप्त होगा। स्वर्ग, शक्ति तथा परमपदकी कुंजी आपके हाथमें है। आप चाहें तो आत्मनिर्माण द्वारा इन तत्त्वों को प्राप्त कर सकते संसारका स्वर्ग क्या है? समस्त दुष्ट भावनाओं-काम, क्रोध, मोह, इच्छा, तृष्णा इत्यादि से दूर रहना। जो व्यक्ति इन वासनाओं का दास है वह नरककी यातनाएँ भुगत रहा है। उसे इस सांसारिक जीवनमें प्रत्येक दुष्ट बन्धनोंमें बँधे रहना है। संसारकी वस्तुओंसे मनुष्यको कोई स्थायी सुख प्राप्त नहीं होता। थोड़ी देर पश्चात् पुनः दूसरी वस्तुकी ओर मन तेजीसे भागता है। एक इच्छाकी तृप्ति हजार नयी इच्छाओंको जन्म देती है। इच्छाओं तथा नाना वासनाओंका दुष्ट चक्र निरन्तर चलता है। जो व्यक्ति भोगमार्गको तिलाञ्जलि देता है, वह संसारके सबसे बड़े खंदकको पार करता है। मस्तिष्कमें निर्बलता, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, उद्वेग, अरुचि, भ्रम, व्याकुलता आदि दुष्ट भावनाओंके फलस्वरूप ही उत्पन्न होते हैं। अहितकर सांसारिक भोगमार्गको त्यागकर सत्-मार्गका अवलम्बन करना ही स्वर्गकी ओर यात्रा प्रारम्भ करना है।
जब हृदयसे अपवित्र, अशुभ वासनाएँ नष्ट हो जायँगी और उनके स्थानपर शुभ संकल्पोंका निर्माण होने लगेगा, तभी मनुष्यको वासनाशुद्धि प्राप्त होगी। इसीको 'मुक्ति' पद समझना चाहिये, फिर विशुद्ध जीवनकी तीव्रतासे प्रगति प्रारम्भ हो जाती है।
'परमपद' आत्मविकासका वह स्तर है, जिसमें मनुष्य संसारमें रहता हुआ भी जलमें कमलवत् संसारके क्षणिक प्रलोभनों, कष्टों, मोह, क्षोभकारक चिन्ताओंसे ऊपर रहता है। मनोविकारोंकी आँधी आती है और ऊपरसे निकल जाती है। रुपये-पैसेके मोह आते हैं किंतु परमपद-प्राप्त व्यक्ति विचलित नहीं होता। दुःख-पीड़ा आती है किंतु उसके ऊपर बिना कोई असर डाले ही चली जाती हैं। परमात्माकी अतुलशक्ति, आत्मज्योति, निर्मल बुद्धि एवं सत्येरणाके मंगल प्रकाशमें वह निरन्तर स्थिर रहता है। उसकी वाणीमें परमात्मा बोलता है। उसके कान भव्य वाणीको ही सुनते हैं। उसकी त्वचासे पवित्र वस्तुका ही स्पर्श होता है। वह परमात्माका होकर जीता है। परमात्मासे ही उसकी सत्ता होती है। वह जो श्वास लेता है, वह ब्रह्मरूप चेतन अमृत और दिव्य प्राण है। ऐसे दिव्य आयोजनवाला व्यक्ति सांसारिक कर्म कर्तव्य समझकर करता है, किंतु वह जीवन को परमात्माकी इच्छा-पूर्तिका एक साधन समझता है। वह धन्य है। उसका मन सत्य-शिव संकल्पमय है।
|
- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य