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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये

'तुम पेटको भोजन देते हो; पर देखो, कानको भी भोजन दे देना। पेट भूखा रहेगा तो शरीर क्षीण होगा और कान भूखे रहेंगे तो बुद्धि मन्द हो जायगी। श्रेष्ठ पुरुषोंके अभिवचन सुननेका जब अवसर आये तो अन्य कार्य छोड़कर भी वहाँ पहुँचो; क्योंकि उनके वचन तुम्हें वह वस्तु दे सकते हैं, जो रुपये-पैसेकी अपेक्षा हजारों गुनी मूल्यवान् होगी। जो लोग जीभसे अच्छा खाना खानेमें तो कुशल है, पर कानोंसे सदुपदेश सुननेका आनन्द नहीं जानते, उन्हें बहरा ही कहना चाहिये। ऐसोंका जीना और मर जाना एक समान है।'

(आचार्य श्रीराम शर्मा) हमारे कानोंको सदुपदेशरूपी सुधा निरन्तर प्राप्त होती रहनी चाहिये। मनुष्यका स्वभाव चञ्चल है, इन्द्रियोंकी अस्थिरता प्रसिद्ध है। यदि आत्मसुधारमें सभी इन्द्रियोंको वशमें रखा जाय तो उचित है; क्योंकि अवसर पाते ही इनकी प्रवृत्ति पतनकी ओर होने लगती है। सदुपदेश वह अंकुश है, जो मनुष्यको कर्तव्यपथपर निरन्तर चलते रहने को प्रेरित करता रहता है। सत्पथसे विचलित होते ही कोई शुभ विचार या स्वर्णसूत्र पुनः ठीक मार्गपर ले आता है।

प्रत्येक सदुपदेश एक ठोस-प्रेरक विचार है। जैसे कोयले के छोटेसे कणमंक विध्वंसकारी विपुल शक्ति भरी हुई है, उसी प्रकार प्रत्येक सदुपदेश शक्तिका एक जीता-जागता ज्योति-पिण्ड है। उससे आपको नया प्रकाश और नवीन प्रेरणा प्राप्त होती है। महापुरुषोंकी अमृतमयी वाणी, कबीर, रहीम, गुरु नानक, तुलसी, मीराँबाई, सूरदास आदि महापुरुषोंके वचन, दोहों और गीतोंमें महान् जीवन-सिद्धान्त कूट-कूटकर भरे हुए है; जिनका आधार गहरे अनुभवके ऊपर रखा गया है। आज ये अमर तत्त्ववेत्ता हमारे मध्य नहीं हैं। उनका पार्थिव शरीर विलुप्त हो चुका है। पर अपने सदुपदेशके रूपमें वे वह जीवन-सार छोड़ गये हैं, जो हमारे पथ-प्रदर्शनमें बड़ा सहायक हो सकता है।

आदमी मर जाता है, उसके साज-सामान, महल सब टूट-फूटकर नष्ट हो जाते है, परंतु उसके जीवनका सार-उपदेश और शिक्षाएँ वह अमर वस्तु है, जो युगोंतक जीवित रहती है। इसी पृथ्वीपर आजतक न जाने कितने व्यक्ति आये और मृत्युके ग्रास हुए, उनका नामनिशान तक शेष नहीं बचा है, किंतु जिन विचारकों, तत्त्व-वेत्ताओं और महापुरुषोंने अपने जीवनके अनुभव रखे हैं, वे आज भी मशालकी तरह हमें प्रकाश दे रहे हैं।

मनुष्यका अनुभव धीमी गति से बहुत धीर-धीर बढ़ता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे कड़ुवे-मीठे घूँट पीकर हम आगे बढ़ते है। अब यदि हम केवल अपने ही अनुभवों पर टिके रहें तो बहुत दिनों में जीवनके सार को पा सकेंगे। इससे अच्छा यही है कि हम विद्वानों के अनुभवों को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उन्हें अपने अनुभवोंसे परखें, तौलं् और जीवनमें ढालें। उन्होंने जिन प्रलोभनोंका उल्लेख किया है, उनसे बचें; जिन अच्छी आदतोंको सराहा है, उन्हें विकसित करें। सदुपदेशोंको ग्रहण करना अपने-आपको लाभान्वित करनेका एक सरल उपाय है। सत्यके शोधक, उन्नतिके जिज्ञासु और कीर्तिके इच्छुकका यह सर्वप्रथम कर्तव्य है कि वह केवल अपने थोड़ेसे अनुभवोंके बलपर न टिक्कर मानवताको प्रशस्त और समुन्नत करनेवाले विचारकोंके अनुभवोंसे लाभ उठाये। सदुपदेश हमारे लिये प्रकाशके जीते-जागते स्तम्भ हैं।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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