गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
मनुष्यो! भविष्यमें शुभ समय आनेवाला है। वर्तमानकी बुराइयोंका शोधन होकर अन्याय, भ्रष्टाचार-अनैतिकताका अन्त होकर नयी सुखद व्यवस्था स्थापित होगी। सत्ययुग आ रहा है। अपने समस्त आकर्षकसे-शान-शौकतसे आ रहा है। उसके स्वागतके लिये हमें तैयार रहना चाहिये।
भविष्यमें पाप घटेंगे और उनका स्थान पुण्य लेगा, यह बिलकुल निश्चित है। मनुष्य सुस्थिर और विवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करनेको एक अदृश्य सत्ता द्वारा बाध्य किये जायँगे। वर्तमान के आर्थिक संकट, पूँजीवाद द्वारा गरीब जनताका शोषण, रोग-शोक-दुःख इत्यादि नष्ट हो जायँगे।
नया युग कब आता है? युग-परिवर्तन कब होता है? जब पाप, मिथ्याचार, स्वार्थ, लिप्सा, मद, वासना-पूर्ति, विलास-इत्यादि की वृद्धि हो जाती है, पापके भयसे पृथ्वी काँपने लगती है; मनुष्य अपने ईश्वरत्वको भूलने लगता है; सच्चाई और ईमानदारीका हास्य हो जाता है; आसुरी प्रलोभन बढ़ जाते हैं और मनुष्य इन्द्रियलालसा-तृप्तिको ही जीवनका मूल आदर्श समझने लगता है, तब युग-परिवर्तन होता है। सत्य मानव-देहमें ईश्वरका अवतार होता है। नास्तिकताको दूरकर पुनः आस्तिकताका राज्य फैलता है। सत्य, न्याय, प्रेम, सहानुभूतिका प्रकाश फैलता है। आत्माका जाज्वल्यमान तेज सर्वत्र छा जाता है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमथर्मस्य तदाङत्मानं सृजाऽऽहम्।।
(गीता ४। ७)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्मवामि युगे युगे।।
(गीता ४। ८)
अर्थात् हे भारत! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्म (पाप, झूठ, मिथ्याचार, पैशाचिक आकांक्षाएँ आसुरी प्रलोभनों) की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने स्वरूपको रचता हूँ और साधु पुरुषोंका उद्धार करनेके लिये और दूषित करनेवालोंका नाश करनेके लिये तथा धर्म (सत्य, विवेक, प्रेम, न्याय, देवत्व) स्थापन करनेके लिये युग-युगमें प्रकट होता हूँ।
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- निवेदन
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- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
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- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य