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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मृत्यु का सौन्दर्य

मुझे तो बहुत बार ऐसा लगता है कि जन्मकी अपेक्षा मृत्यु अधिक अच्छी चीज होनी चाहिये। जन्मसे पूर्व माँके गर्भमें जो यातना भोगनी पड़ती है, उसे तो मैं छोड़ देता हूँ; परन्तु जन्मते ही जो यातना प्रारम्भ होती है, उसका तो हमें प्रत्यक्ष अनुभव है। उस समयकी पराधीनता कैसी है? और वह तो सबके लिये एक-सी होती है। मृत्युमें, यदि जीवन स्वच्छ हो तो पराधीनता-जैसी चीज कुछ नहीं रहती। बालकमें ज्ञानकी इच्छा नहीं होती और न उसमें किसी तरह ज्ञानकी सम्भावना ही होती है। मृत्युके समय तो ब्राह्मी स्थितिकी सम्भावना है। इतना ही नहीं, बल्कि हम जानते है कि बहुत लोगोंकी मृत्यु ऐसी स्थितिमें होती है। जन्मका अर्थ तो दुःखमें प्रवेश है ही, मृत्युमें सम्पूर्ण दुःख-भक्ति हो सकती है। इस प्रकार मृत्युके सौन्दर्यके विषयमें और उसके लाभके विषयमें हम बहुत कुछ विचार कर सकते हैं और इसे अपने जीवनमें सम्भवनीय बना सकते हैं। (गाँधीजी)

कई दिनों तक वस पहिनने के पश्चात् आप मैले वस्त्रोंको त्यागकर धोबीके धुले नये सफेद वस्त्र धारण कर लेते हैं, आपका आत्मा गंदगीको स्वीकार नहीं करता। उसका स्वभाव सात्त्विक है। वह स्वच्छ निर्मल वातावरणमें रहना चाहता है। जैसे हम मैले, फूटे-पुराने या जले-गले वस्त्रोंको त्यागकर नये वस्त्र धारण कर लेते है, उसी प्रकार हमारा आत्मा पुराने शरीररूपी फटे हुए वस्त्रोंको त्यागकर नये वस्त्र धारण करता है। जैसे कपड़ोंमें उलट-फेर कर देनेसे शरीरपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि नये वस्त्र पहिनकर वह और भी निखर उठता है, वैसे ही शरीरकी उलट-पलटका आत्मापर कोई प्रभाव नहीं होता। नया शरीर पाकर आत्मा नये रूपसे फिर पृथ्वीपर अवतीर्ण हो जाता है।

मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि वह तो एक अनिवार्य स्थिति है। यदि जीवन प्रश्र है तो मृत्यु उसका उत्तर! जितने श्वास आपको मिले हैं उनसे एक भी अधिक मिलनेवाला नहीं है। मृत्युकी अनिवार्यताको समझते हुए जो-जो महत्त्वपूर्ण कार्य आपको करने हैं, शीघ्र ही कर लेने चाहिये।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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