गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
मृत्यु का सौन्दर्य
मुझे तो बहुत बार ऐसा लगता है कि जन्मकी अपेक्षा मृत्यु अधिक अच्छी चीज होनी चाहिये। जन्मसे पूर्व माँके गर्भमें जो यातना भोगनी पड़ती है, उसे तो मैं छोड़ देता हूँ; परन्तु जन्मते ही जो यातना प्रारम्भ होती है, उसका तो हमें प्रत्यक्ष अनुभव है। उस समयकी पराधीनता कैसी है? और वह तो सबके लिये एक-सी होती है। मृत्युमें, यदि जीवन स्वच्छ हो तो पराधीनता-जैसी चीज कुछ नहीं रहती। बालकमें ज्ञानकी इच्छा नहीं होती और न उसमें किसी तरह ज्ञानकी सम्भावना ही होती है। मृत्युके समय तो ब्राह्मी स्थितिकी सम्भावना है। इतना ही नहीं, बल्कि हम जानते है कि बहुत लोगोंकी मृत्यु ऐसी स्थितिमें होती है। जन्मका अर्थ तो दुःखमें प्रवेश है ही, मृत्युमें सम्पूर्ण दुःख-भक्ति हो सकती है। इस प्रकार मृत्युके सौन्दर्यके विषयमें और उसके लाभके विषयमें हम बहुत कुछ विचार कर सकते हैं और इसे अपने जीवनमें सम्भवनीय बना सकते हैं। (गाँधीजी)
कई दिनों तक वस पहिनने के पश्चात् आप मैले वस्त्रोंको त्यागकर धोबीके धुले नये सफेद वस्त्र धारण कर लेते हैं, आपका आत्मा गंदगीको स्वीकार नहीं करता। उसका स्वभाव सात्त्विक है। वह स्वच्छ निर्मल वातावरणमें रहना चाहता है। जैसे हम मैले, फूटे-पुराने या जले-गले वस्त्रोंको त्यागकर नये वस्त्र धारण कर लेते है, उसी प्रकार हमारा आत्मा पुराने शरीररूपी फटे हुए वस्त्रोंको त्यागकर नये वस्त्र धारण करता है। जैसे कपड़ोंमें उलट-फेर कर देनेसे शरीरपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि नये वस्त्र पहिनकर वह और भी निखर उठता है, वैसे ही शरीरकी उलट-पलटका आत्मापर कोई प्रभाव नहीं होता। नया शरीर पाकर आत्मा नये रूपसे फिर पृथ्वीपर अवतीर्ण हो जाता है।
मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि वह तो एक अनिवार्य स्थिति है। यदि जीवन प्रश्र है तो मृत्यु उसका उत्तर! जितने श्वास आपको मिले हैं उनसे एक भी अधिक मिलनेवाला नहीं है। मृत्युकी अनिवार्यताको समझते हुए जो-जो महत्त्वपूर्ण कार्य आपको करने हैं, शीघ्र ही कर लेने चाहिये।
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