गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
ईमानदारीके मार्गके साथ आपको आत्माकी दैवी शक्तियोंका भी सहयोग मिलता रहेगा। सच्चे व्यक्तिको कभी किसी गुप्त भेदके प्रकट होनेका कोई भय नहीं रहता। वह तो खरा है। चाहे किसी कसौटीपर चढ़ा लीजिये, सदैव चमकता ही रहेगा। सत् चित् आनन्दस्वरूप आत्मा इसीलिये इस भूमण्डलपर भेजा गया है कि वह सत्यका ही व्यवहार करे, असत्य या झूठके अन्धकारसे बचा रहे। जो व्यक्ति यह समझता है कि बेईमानीसे, लोगोंकी आँखोंमें धूल झोंककर बढ़ता रहेगा, वह वास्तवमें बड़ी भूल करता है। बेईमानी, चोरी, रिश्वत तो एक प्रकारकी अग्नि है। वह कब छिपती है? उसे चाहे सौ कपड़ोंमें लपेटकर रखा जाय, एक-न-एक समय कपड़ोंको जलाकर प्रकट हो ही जाती है। ईश्वरने आपको 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' से युक्त आत्मा (अर्थात् अपना दिव्य अंश) इसीलिये दिया है कि आप असत्यसे बचकर सत्यके, ईमानदारीके, प्रकाशके मार्गको ही ग्रहण करें।
बेईमानी चार दिन ही फलती-फूलती-सी दीखती है। वास्तवमें वह अवनतिका तो रूप होती है। दीपक जब बुझनेको होता है, तब तेजीसे चमककर शान्त हो जाता है। इसी प्रकार बेईमानकी दौलतसे, रिश्वतके धनसे घर-परिवार क्षणभरके लिये समृद्ध प्रतीत होते है; पर चोरीके प्रकट होते ही वे ऐसे गहरे खड्डेमें गिर पड़ते है, जिससे निकलना असम्भव हो जाता है। वे दीर्घकालतक असत्यके अन्धकारमें भटकते रहते है। अतः पहलेसे ही ईमानपर टिके रहनेका व्रत ले लेना चाहिये।
बेईमानीकी दौलत उसीके साथ नष्ट हो जाती है। क्या आपने किसी बेईमानकी संतानको फलते-फूलते देखा है? अगर बेईमान फलते-फूलते रहते तो इस संसारमें सभी बेईमानी, ठगी और चोरीपर आ जाते। सत्य संसारसे लुप्त हो जाता, केवल पाप ही रहते। चोरों, ठगों, डकैतों और राक्षसोंका नित्य राज्य हो जाता। हमारा समाज निठल्ले कामचोरोंसे भर जाता। पर ईश्वरका नियम ही कुछ ऐसा है कि सच्चे और ईमानदार गरीब होकर भी पूजे जाते हैं; झूठे और बेईमान अमीर होकर भी तिरष्कृत होते है। चोरकी झोपड़ीपर कभी फूँसतक नहीं रहता।
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