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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच

मनुजी का कथन है-
सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम्।
योऽर्थे शुचिर्हि स शचिर्न मृद्वारिशचिः रुचिः।।

आज मानव-समाजमें जो अशान्ति दिखायी दे रही है, उसका एक महान् कारण अर्थशौचका अभाव है। हमारा जीविकोपार्जन शुचि अर्थात् पवित्र तरीकोंकोंसे नहीं हो रहा है। 'अर्थशौच' का अर्थ है कि हम जो धन कमाये, वह पवित्रता, सचाई, ईमानदारी और परिश्रमसे ही कमायें। धनका उपार्जन धार्मिक दृष्टिसे ही हो। उसमें अनुचित उपायोंका अवलम्बन न किया जाय। सद्गृहस्थको यह ध्यान रखना चाहिये कि कहीं उसकी कमाईमें कोई अधर्मका पैसा न आ जाय। अधर्मकी कमाई ही दुःखोंकी जड़ है। अधर्मका पैसा एक प्रकारकी अग्नि है, जो ईमानदारीकी कमाईको भी नष्ट कर देती है।

एक बारकी बात है, एक दूधवाला दूधमें पानी मिलाकर बेचा करता था। आधा दूध तो आधा पानी। उसे सच्चा समझकर लोग उसका दूध खरीदते थे। दों-एक बार किसीको संदेह भी हुआ; उसे सावधान भी किया गया; किंतु वह न माना। उसकी कपड़ेकी थैली रुपयोंसे भरती गयी। उसे देख-देखकर वह बड़ा प्रसन्न होता। प्रायः चुपचाप अपने रुपयोंको गिना करता। एक दिन संयोगवश थैलीको एक बंदर उठा भागा और एक वृक्षपर जा बैठा। वृक्ष एक नदीके किनारे लगा हुआ था। दूधवाला बहुत चीखा-चिल्लाया, भागा-दौड़ा। बंदरको बहुत-से प्रलोभन दिये गये, पर वह न माना। एक मुट्ठी रुपये ग्वालेकी ओर फेंक देता, दूसरी मुट्ठी नदीमें फेंक देता। यह क्रम बहुत देरतक यों ही चलता रहा। ग्वाला नदी-किनारे खड़ा-खड़ा रोता रहा। अन्तमें सारी थैली खाली हो गयी। ग्वाले के पास आधी रकम ही शेष रही। यह उसकी वह कमाई थी जो वास्तवमें उसे मिलनी चाहिये थी। धर्मकी कमाई ही बचती है।

हमें एक परचून के दूकानदारने अपनी आर्थिक हालतके बारेमें सुनाते हुए कहा था-'आजकल मेरी यह छोटी-सी दूकान आप देखते है, किंतु मैंने अपने जीवनमें बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव देखे है। हजार-हजार रुपये कमाये और खर्च किये हैं।'

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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