गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
|
7 पाठकों को प्रिय 341 पाठक हैं |
प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
पाठ का दैवी प्रभाव
'आत्मश्रद्धा वह तत्त्व है जो मनुष्यकी गुप्त आध्यात्मिक शक्तियोंका द्वार खोककर आश्चर्यजनक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ कराता है और चिन्ताओंको दूर करता है। हम श्रद्धापूर्वक जो कार्य करते है, उसमें हमें दैवी सहायता प्राप्त होती है। बिना श्रद्धाके पूजा, अर्चना, प्रार्थना, पाठ, भजन इत्यादिका कोई अर्थ नहीं। सब निष्फल ही रह जाते है। जिन व्यक्तियोंको इन आध्यात्मिक प्रक्रियाओंमें श्रद्धा नहीं है, उन्हें इनको करनेसे भी कोई लाभ नहीं होता। जिन्होंने अटूट श्रद्धासे इन शक्तियोंसे लाभ उठाया है, उनके अनुभव बड़े प्रेरक है। एक ऐसी ही आध्यात्मिक वृत्तिवाले महानुभावका अनुभव मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
इन महोदयका नाम श्रीसूरजबल शर्मा है। आप नजीबाबाद-(जिला बिजनौर, यू. पी०) के निवासी है। आयु ५५ वर्षके लगभग है। ७ जून, १९५५ को वे अपनी बदरीनाथ और केदारनाथकी यात्रासे वापस आकर एक दिनके लिये हमारे अतिथि बने थे। उन्होंने अपने जीवनकी एक आपबीती इस प्रकार सुनायी-
शर्माजी बोले, 'दो वर्ष पूर्वकी बात है। पिछले दिनों मैं भयंकर मानसिक और शारीरिक आधि-व्याधियोमेंसे होकर निकला हूँ। सन् १९५१ में चार मास बीमार रहनेके पश्चात् मेरे एक पुत्रकी अकस्मात् मृत्यु हो गयी। मनपर गहरा आघात लगा। उसकी चिकित्सा करानेमें यत्र-तत्र बहुत दिनोंतक मारा-मारा फिरा था। व्यय भी बहुत किया था, किंतु उसे न बचा सका। भागदौड़ और निरन्तर मानसिक तनावके कारण स्वयं बीमार पड़ गया।
'पेटकी बीमारी थी। पहले भूख कम होने लगी। घटते-घटते एक स्थिति ऐसी आयी कि जो खाता उल्टी हो जाती। कुछ भी हजम होना कठिन हो गया। यहाँतक कि जो जल पीता वह भी हजम नहीं होता था। शरीरमें जब कुछ न पहुँचा, तो यह कृश होता गया। मैं अस्थिपंजर मात्र रह गया। फिर भी पेटमें दर्द रहा। चिकित्सा बहुत की। डाक्टरोंका मत था कि यह अँतड़ियोंकी टी० बी० (तपेदिक) हो गयी है तथा उसकी चिकित्साके लिये किसी बड़े विशेषज्ञके पास जाना चाहिये।
'एक टी० बी० विशेषज्ञ लैन्सडाउन में रहते थे। उन्हींके पास जानेकी सलाह दी गयी। मरता क्या न करता। बहुत व्यय हो चुका था, पर जीवनमें बड़ा मोह है। मैं उनके पास गया। जनवरीका महीना था। ठन्डक बहुत पड़ रही थी। इधर मैं बीमार आदमी, उसपर निर्बल। उनकी चिकित्सा चल ही रही थी कि एक दिन अचानक जगा तो मालूम हुआ, जैसे पाँव नहीं हिल रहा है। मेरे पाँवको क्या हुआ? मैं आश्चर्यमें था। डाक्टरने बतलाया, उस टाँगपर लकवेका प्रभाव है। उफ! तो क्या मैं लकवेसे मर जाऊँगा। एक ओर पेट ही परेशान किये हुए था, उसपर लकवा। अब भला जीनेकी क्या आशा थी?
डाक्टरोंने कहा, 'बम्बई जाइये। वहाँ इस रोगके विशेषज्ञ है। विलायत में इसकी चिकित्सा होती है।'
|
- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य