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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मैं साधारण हैसियतका व्यक्ति, भला बम्बई या विलायत जानेकी स्वप्न में भी क्या आशा कर सकता था? जो कुछ जहाँ मिला खाया, डाक्टरोंसे बहुत दवाई करायी। अन्ततः निराश, निरुपाय, थका-हारा अपने घर नजीबाबाद लौट आया। मैं कमजोर होते-होते ऐसा हो गया था कि चारपाईपर ही शौचादिसे निवृत होता था। एक-एक दिन मृत्युकी प्रतीक्षा कर रहा था। जीवन-दीप टिमटिमा रहा था। एक डाक्टर साहबने तो यहाँतक भविष्यवाणी की कि यह सावन आप न देख सकेंगे। यह आषाढ़ के महीनेकी बात है।

'मैने सोचा, जब मरना ही है के परहेज भी क्यों किया जाय। सब इच्छाएँ पूर्ण करूँ। जिस चीजको मन करे, खाऊँ।' अतः सब कुछ छोड़ अन्तिम दिनकी प्रतीक्षा होने लगी।

'एक दिन देवीके मन्दिरमें गया। बैठकर जीवन-मरणपर विचार कर रहा था। मृत्यु क्या है? कैसी है? आत्माका स्वरूप क्या है? अनेक छोटे-बड़े प्रश्र मनमें तूफान मचा रहे थे। इतनेमें क्या देखता हूँ कि एक साधु-महात्मा मन्दिर में प्रविष्ट हो इधर आ रहे है।'

'उन्होंने मुझसे चिन्ताका कारण पूछा। मैंने अपनी बीमारीकी सम्पूर्ण कहानी आदिसे अन्ततक सच-सच कह सुनायी। वे दयार्द्र हो उठे।'

बोले, 'सब कुछ तुम कर बैठे, पर एक डाक्टरकी दवा शेष रह गयी है। उसका भी इलाज कर देखो। बड़ा चमत्कारी डाक्टर है। ऐसे-ऐसे आश्चर्यजनक कार्य करता है कि असाध्य रोगतक ठीक हो जाते हैं। उस डाक्टरकी प्रसिद्धि सर्वत्र फैल रही है।'

'मैंने का, 'वह कौन डाक्टर है?'

उन्होंने कहा, वह डाक्टर है भगवान्। भगवान्का इलाज भी कर देखो।'

मेरे पास कोई उत्तर न था? मैंने सिर झुका दिया।

'उन्होंने चिकित्सा-विधि बतलायी, 'जलके स्थानपर प्रत्येक बार गंगाजलका ही सेवन कीजिये। जब प्यास लगे, गंगाजल लीजिये और उसके साथ तीन माशे पिसी हुई सोंठ खाते रहिये। २१ दिनतक कोई भोजन न खाइये। आपका भोजन केवल सोंठ और गंजाजल ही है।'

'यह कहकर वे चले गये। मैं मन्दिरसे बाहर आ चबूतरे पर बैठ गया। विचार निरन्तर एक-दूसरेसे टकरा रहे थे। सोचा कि अवश्य यह दवा करूँगा, अन्तिम बार इसे भी आजमा देखूँ।'

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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