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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

देखता क्या हूँ कि वे ही साधु-महात्मा फिर लौटे चले आ रहे है। तो ये क्या चाहते है? भिक्षा, रुपया, चन्दा? गोशालाके लिये दान? साधुओंसे मुझे कुछ अश्रद्धा इसलिये थी कि अनेक ठग भिन्न-भिन्न रूप बनाकर ठगते है। 

'वे बोले, 'वकील-डाक्टर जबतक फीस नहीं ले लेते, तबतक अपनी पूरी शक्तिसे कार्य नहीं करते। तुम्हें भी फीस देनी होगी।'

'मेरा संदेह पूरा हो गया। मैंने सोचा, 'रुपया ऐंठनेका नया ढंग इन महोदयने निकाला है। मैं साधारण स्थितिका बीमारी द्वारा चुसा हुआ व्यक्ति भला इन्हें क्या फीस दे सकता हूँ।'

मैं बोला, 'महाराज! मैं गरीब व्यक्ति हूँ। भला, क्या फीस दे सकता हूँ।'

 

'वे बोले, 'फीस नहीं दोगे तो भगवान्का इलाज भी पूरा नहीं होगा।' 

'भगवान् की फीस क्या हो सकती है?' मैं सोचता रहा।

मैंने कहा-'अच्छा बताइये क्या प्रस्तुत करूँ!'

वे बोले, 'भगवान् रुपया-पैसा नहीं चाहते। तुम्हें रुपया नहीं देना है। केवल अपने जीवनको भगवान्मय बना देना है। उसका साधन है 'रामायण' का नित्य-नियमित श्रद्धापूर्ण पाठ। यदि उपर्युक्त इलाजके साथ-साथ तुम नियमित श्रद्धापूर्वक रामायणका पाठ भी करते रहो तो प्रभाव जल्दी होगा, स्थायी होगा और पूर्ण आरोग्य प्राप्त होगा। भगवान् सुन्दर है। भगवान् स्वास्थ्य है। भगवान् जीवन है, प्रेम है, सत्य है! 'रामायण' के निरन्तर पाठसे उपर्युक्त औषधका दैवी प्रभाव अपनी पूरी शक्तिसे कार्य करेगा। तुम्हारी चित्त-वृत्तियाँ आरोग्य, स्वास्थ्य और सद्भावनामें केन्द्रित रहेंगी।'

'वे पूछने लगे, ' अच्छा' बोलो तुम कितने पाठ करना चाहते हो?' 

'मैने यह समझकर कि सावनमें मरना तो है ही, आवेशमें आकर कह दिया कि 'महाराज! मैं ५१ रामायणके पाठ करूँगा।'

'वे मेरे इस वचनको पक्का करनेके लिये बोले, अच्छा तो यह लो अंजलिमें जल संकल्प कर डालो। हाथमें जल ले उन्होंने विधिपूर्वक पाठ करनेका संकल्प दिया और चलते-चलते बोले, अब तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओगे। अब हम तुमसे तभी मिलेंगे, जब तुम्हारे पाठ पूर्ण हो जायँगे और तुम पूरे स्वस्थ हो जाओगे।'

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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