गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
'महाराज चले गये। कर्तव्यका पालन हमने दृढ़तासे पूर्ण श्रद्धापूर्वक करना प्रारम्भ कर दिया। गंगाजलका प्रबन्ध किया। सोंठ ही लेता रहा। पाठ नित्य-नियमित रूपसे चलता रहा। मेरे आश्चर्यकी सीमा न रही, जब मैंने उस चिकित्सा का चमत्कार देखा। मुझे पहले जल पचना शुरू हुआ। कुछ दिनके बाद टमाटर का रस पचने लगा, फिर अन्य फलोंके रस और सात पाठ समाप्त होते-होते तो टांगोंकी अकड़ाहट दूर होने लगी। भोजन ग्रहण करनेकी इच्छा भी जाग उठी। थोड़ा-थोड़ा मैं बिना सहारे चलने लगा। जैसे-जैसे दशा सुधरती, मेरी श्रद्धा उत्तरोतर बढ़ती गयी। मैं पूरी निष्ठासे पाठ करता रहा। 'रामायण' का पाठ मेरे दैनिक जीवनका एक अंग बन गया। अब तो मेरी ऐसी आदत हो गयी है कि प्रतिदिन 'रामायण' का पाठ किये बिना कुछ ग्रहण नहीं करता। दस पाठ करते-करते मेरी अवस्था ठीक हो गयी। निर्बलता घटती रही, साथ ही दवाई भी चली और आज भी चल रही है और मैं अपने-आपको पूर्ण स्वस्थ पा रहा हूँ।
इस समय उपर्युक्त दैवी चिकित्साके बलसे मैं यह जीवनका प्रकाश देख रहा हूँ। जिन पाँवोंसे मैं कभी चलतक नहीं पाता था, आज उन्हींसे पैदल बदरी और केदारनाथकी यात्राएँ करके सानन्द लौट रहा हूँ। 'रामायण' को मैं मानव-मुक्ति, स्वास्थ्य-आनन्द और सुख-सन्तोष देनेवाला दैवी ग्रन्थ मानता हूँ। अपनी यात्राके सिलसिलेमें मैं उन महात्माको खोजता रहा हूँ। हर स्थानपर साधुओंको ध्यानसे देखता हूँ पर मुझे उनके दर्शन नहीं मिले है। कुरुक्षेत्रमें सूर्यग्रहणके अवसरपर भी मैं उनकी खोजमें गया और स्थान-स्थानपर उन्हें ढूँढ़ा, किन्तु सब निष्फल रहा। यदि उपर्युक्त महात्माजी मेरे इस अनुभवको पढ़ें तो अवश्य पत्र लिखें अथवा दर्शन देनेकी कृपा करें तो मैं बड़ा अनुगृहीत होऊँगा। यह अनुभव कलिकालकी भौतिक चिकित्सा-पद्धतिको एक चुनौती है। दैवी श्रद्धा वह अनमोल औषध है, जिसे मनमें धारण करनेसे दैवी शक्ति प्रकट होती है।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य