गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
मोहादबर्धं यः कृत्वा पुनः समनुतप्यते।
मनःसमाधिसंयुक्तो न स सेवेत दुष्कृतम्।।
यथा यथा मनस्तस्थ दुष्कृतं कर्म गर्हत।
तथा तथा शरीरं तु तेनाधर्मेणण मुच्यते।।
यदि विप्राः कथयते विप्राणां धर्मवादिनाम्।
ततोऽधर्मकृतात् क्षिप्रमपराधात् प्रमुच्यते।।
यथा यथा नरः सम्यगधर्ममनुभाषते।
समाहितेन मनसा विमुञ्चति तथा तथा।।
(ब्रह्म० २१८। ४-७)
'ब्राह्मणो! जो मोहवश अधर्मका आचरण कर लेनेपर उसके लिये पुनः सच्चे हृदयसे पश्चात्ताप करता है और मनको एकाग्र रखता है, वह पापका सेवन नहीं करता। ज्यों-ज्यों मनुष्यका मन पापकर्मकी निन्दा करता है; त्यों-त्यों उसका शरीर उस अधर्मसे दूर होता जाता है। यदि धर्मवादी ब्राह्मणके सामने अपना पाप कह दिया जाय तो वह उस पापजनित अपराधसे शीघ्र मुक्त हो जाता है। मनुष्य जैसे-जैसे अपने अधर्मकी बात बार-बार करता है, वैसे-वैसे वह एकाग्रचित्त होकर अधर्मको छोड़ता जाता है।'
अच्छे-बुरे, सखे और गलत कार्योंसे मनुष्यको संसार विषयक ज्ञान प्राप्त होता है। हम पग-पगपर गलती करते है और प्रकृति हमें प्रत्येक गलतीके लिये सजा देती है। प्रकृतिके दरबारमें कोई माफी नहीं। भूल की और तुरंत उसकी सजा मिली-यही विधान है। समाज तथा परिवार के क्षेत्रों में भी हमारी अल्पज्ञता के कारण भूलें, गलतियाँ अशिष्टताएँ और अनैतिकताके कार्य हो जाना सहज स्वाभाविक बात है। अल्पज्ञ मनुष्यका जीवन ही भूलोंसे भरा है। कदाचित् ही ऐसा कोई मानव-प्राणी हो, जिसका जीवन भूलोंसे मुक्त रह सके। जाने-अनजानेमें, प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्षरूपसे गलती हो ही जाती है। कभी-कभी तो ऐसी भयानक गलतियाँ हो जाती है कि उनके लिये हमें जीवनपर्यन्त पछताना पड़ता है।
भूल छोटोंसे, अपढ़ और अशिक्षितोंसे ही हो सकती हो, सो बात नहीं है। समाजमें ऊँची पद-प्रतिष्ठा पाये हुए साधु, उपदेशक, पण्डित, नेता, विद्वान् आदिसे लेकर साधारण परिवारवाले गृहस्थ, मुंशी, क्लर्क, नौकर, व्यापारी, अफसर-सभी भूलें कर बैठते है। भूल एक मानसिक गलतीका दुष्परिणाम है। जिस समय हम भूल करते है, उस समय हमारा मन एक गलत दिशामें सोचा-विचारा करता है। हम वैसी ही क्रिया कर बैठते हैं। अतः बड़े-से-बड़ा व्यक्ति भी भूल कर बैठता है। बड़ोंकी भूलकी हानि तथा बुरा प्रभाव दूर-दूरतक फैलता देखा गया है। राजा, शासक, नेता आदिकी भूलोंके दुष्परिणामस्वरूप कभी-कभी सारे देशको सजा भुगतनी पड़ती है; युद्ध ठन जाते है, प्रान्त कुचले जाते है, गोलियाँ चल जाती हैं और हिंसा-रक्तपात तक का अवसर आ जाता है। दूर-दूरतक यह दुष्परिणाम फैलता जाता है और बुरा वातावरण बना डालता है।
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