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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मनुष्यका यह स्वभाव है कि जब कोई भूल हो जाती है, तब वह उसे छिपाये रखना चाहता है। एक झूठा, कपट, रिश्वत या बेईमानी को छिपाये रखने के लिये दो-चार और झूठ बोलता है। अपनी की हुई गलतियों या अन्यायको गुप्त रखनेके लिये बहुत व्यय करता है। पूँजीपति विलासी व्यक्ति अपने धनका दुरुपयोग कर वासनापूर्तिके साधन एकत्र करते है; फिर पापोंको गुप्त रखनेके लिये हजारों रुपये व्यय करते है। फिर भी देर-सबेर पाप प्रकट होकर ही रहता है। कहीं अग्नि भी घरमें छिपायी जा सकती है? रुई कबतक अंगारेको ढके रहेगी? अतः कभी-न-कभी कलई खुल ही जाती है और अप्रतिष्ठा का कारण बनती है। इससे उत्तम तो यही है कि हम स्वयं ही अपनी भूलोंको सबके सामने स्वीकार कर पश्चात्ताप कर ले। भविष्यमें न करनेका प्रण करें।

स्मरण रखिये, छिपानेसे आपकी छोटी-सी भूल भी बड़ी बनती जाती है; क्योंकि उसमें एकके बाद दो-चार और भी कपट मिलते और एकत्र होते रहते है। मामला और भी पेचीदा होता जाता है। जैसे गन्दी वस्तुको छिपाकर रखनेसे दुर्गन्ध उत्पन्न हो जाती है। फिर उसे स्वच्छ कर सूर्यकी रोशनी देनेसे दुर्गन्ध दूर होती है। नयी स्वच्छ हवा उस स्थानको स्वच्छ कर देती है, इसी प्रकार भूलरूपी गंदगीको प्रकट कूर देनेसे आत्माका भार दूर हो जाता है, मानसिक उलझनें दूर हो जाती है।

प्रत्येक छिपाया हुआ पाप, भूल, कपट, मिथ्याचार, रिश्वत, झूठ, फरेब आपके मनके गुप्त प्रदेशमें छिपा रहकर जीवनको पेंचीदा और दम्भपूर्ण बनाता है। यह दुराव मनमें ग्रन्थियोंके रूपमें बराबर बना रहता है। स्वप्नोंमें प्रकट होता है। हमारे जीवनके विचित्र अनियन्त्रित व्यवहारोंका कारण बनता है। इससे अधिकांश शारीरिक रोग-नासूर, भगंदर, दमा, बवासीर, खाँसी, संग्रहणी-इत्यादि हो जाते है। चिरस्थायी रोग प्रायः गोपनीय मनोवृत्तिके कारण उत्पन्न होते हैं।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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