गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
|
7 पाठकों को प्रिय 341 पाठक हैं |
प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
पापकर्म क्या-क्या हैं?
महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय १३ में उन पापमय वृत्तियोंका उल्लेख किया गया है, जिन्हें छोड़ देना चाहिये। हमारी भूलोंकी जड़में प्रायः ये ही दुष्ट आसुरी कुप्रवृत्तियों रहती है-
प्राणातिपातः स्तैन्यं च परदारा तथापि च।
त्रीणि पापानि कायेन सर्वतः परिवर्जयेत्।।
पापमूल हिंसा, चोरी, परस्त्रीगमन-ये तीन शरीरके पाप है। हमें नाना प्रलोभनों, भूलों, गलतियोंमें खींचनेवाले है। अतः इनको त्याग देना।
असत्प्रलापं पारुष्यं पैशुन्यमनृतं तथा।
चत्वारि वाचा राजेन्द्र न जलपेन्नानुचिन्तयेत्।।
व्यर्थ का बकवाद, कटुभाषण, चुगलखोरी तथा झूठ बोलना-ये चार मनुष्यकी वाणीके पाप हैं। इनको त्याग देना चाहिये। इतना ही नहीं, मनसे इनका चिन्तन या कल्पना तक नहीं करनी चाहिये। इनसे भूल होने की सम्भावना बनी रहती है।
अनभिध्या परस्वेषु सर्वसत्त्वेषु सौहृदम्।
कर्मणः फलमस्तीति त्रिविधं मनसा चरेत्।।
दूसरेका धन लेनेकी इच्छा न करना, प्राणिमात्रका शुभचिन्तक होना, कर्मोंका फल अवश्य ही मिलता है-ऐसी भावना रखना-ये मनके तीन पुण्य है। इनके विपरीत पराये धनको चाहना, दूसरेका बुरा चाहना, नास्तिक बुद्धि रखना, त्यागने योग्य पाप है। जो उपर्युक्त पापोंको मन, वाणी, कर्म और बुद्धिसे नहीं करता, वही महात्मा है।
|
- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य