गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
मनुष्यमें एक कमजोरी यह है कि वह अपनी भूलों और गलतियोंकी ओर तो ध्यान नहीं देता, दूसरोंका दोष-दर्शन करता है। दूसरोंका दोष निकालना एक ऐसी कमजोरी है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी कमजोरियोंपर पर्दा डाले रखना चाहता है। यदि हमसे कोई भूल हो भी जाती है तो भी हम उसका उत्तरदायित्व दूसरोंपर ही डाले रखना चाहते है। कभी अपनी भूलोंको ही उपयोगी या आवश्यक सिद्ध करनेका दुःसाहस करते है। ये सभी रूप मृणित है। विचारवान् वे है, जो दूसरोंकी भूलें न देखकर पहले स्वयं अपने दोष और दुर्गुणोंकी निकालनेका प्रयत्न करते हैं।
थोड़े-से पाप, जरा-सा झूठ, तनिक-से मानसिक वासनामय चिन्तन-तकको मनमें न आने दीजिये। एक-एक बूँदसे पापका घड़ा भर जाता है। थोड़ी-थोड़ी पापकी बात सोचनेसे ही मनुष्य कुछ समयमें पापके पंकमें डूब जाता है। सावधान!
पुरानी भूलोंको लेकर अधिक पछताना, दिनभर दुःखी रहना, अपनेको पतित समझना छोड़ दीजिये। आप तो भविष्यमें ईमानदारी का जीवन व्यतीत करनेका संकल्प कीजिये।
परिस्थितियोंके जालमें फँसकर यदि मनुष्य कोई अपराध कर बैठता है तो वह वास्तवमें पापी नहीं होता।
पुरानी भूलोंके प्रति सच्चे हृदयसे पश्चात्ताप कीजिये। सबके सामने पूरे साहससे भूलको स्वीकार कर लीजिये। वे उदारतापूर्वक आपको क्षमा कर देंगे। भूल स्वीकार करनेसे आत्मसंतोष मिलेगा। भविष्यमें आप उस मार्गसे न जायँगे। आगे बढ़नेवाले कभी पीछे फिरकर नहीं देखा करते।
एक विद्वान्ने सत्य ही लिखा है, 'आप कठिनाइयों से बचना या छुटकारा प्राप्त करना चाहते है तो अपने भीतरी दोषोंको ढूँढ़ डालिये और उन्हें नष्टकर बाहर निकालनेमें जुट जाइये। दुर्गुणरूपी काँटोंको हटाकर उनके स्थानपर अपने हृदय-उद्यानमें सद्गुणोंके पुष्पमय पौधे लगाइये। जिस अनुपातमें आप यह कार्य कर सकेंगे, उसके अनुसार ही आप विपत्तिसे छूटकर स्थायी उन्नतिकी ओर अग्रसर होते जायेंगे।
भगवान् करुणामय है। वे बड़े-से-बड़े पापीकी भूलोंतकको सहर्ष क्षमा कर देते है। यदि हम आर्तभावसे सच्चे हृदयसे उनसे अपने पापोंकी क्षमा माँगें तो वे उदारतापूर्वक क्षमा कर देते है। पापी, दुरात्मा, वेश्याएँ चोर-सभी सच्चे हृदयसे क्षमा माँगनेपर सद्गृहस्थका पवित्र जीवन प्रारम्भ कर सकते हैं। निष्कलुष जीवन व्यतीत करनेमें ही आत्मसंतोष प्राप्त होता है।
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