गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
एक सज्जन लिखते है, 'मेरा एक अभिन्न हृदय सखा बहुत दिनोंसे उद्विग्न-सा रहता था।' एक दिन मैंने उससे एकान्त में पूछा, 'मित्रवर! मंस तुम्हें चिरकालसे उदास-मुख तथा कुछ चिन्तित-सा देख रहा हूँ। यदि कोई मानसिक व्यथा हो और उसे बतानेमें कोई आपत्ति न हो तो उसका रहस्य बताकर मेरा कौतूहल अवश्य दूर कर दो।'
सुहृदि निरन्तर चित्ते गुणवति पृत्येऽनुवर्तिनि कलत्रे।
स्वामिनि शक्तिसमेते निवेद्य दुःखं सुखी भवति।।
उसने अपनी व्यथा-गाथा सुनाते हुए कहा-'गत दो वर्षोंसे मेरा एक जीव-विशेष (सम्भवतः किसी नारी) से प्रेम था; वह प्रेम मोहमें, मोह आसक्तिमें परिणत हो गया। फलतः उसके देखे बिना चित्तमें चैन नहीं आता था। कभी-कभी उसके न मिलनेपर मैं मन-ही-मन रो बैठता था और मानसिक अशान्ति इतनी बढ़ जाती थी कि मैं आत्महत्या तकके लिये उद्यत हो जाता था। अन्ततोगत्वा चारों ओरसे निराश हो गया...अब मेरा उस दुःखद व्यक्तिके साथ वार्तालाप और लगाव छूट गया है। मैं नहीं चाहता कि उससे मिलूँ, सम्पर्क बढ़ाऊँ और नैतिक मर्यादाएँ तोड़कर यों अशान्त रहूँ। अपनी ओरसे मैं यह प्रयत्न करता रहता हूँ कि उसके अशुभ दर्शन न हों, जिससे मेरा मन फिर उधर दौड़े। पर मैं एक विचित्र मानसिक स्थितिमें हूँ। गत दो वर्षोंसे उस स्मृति ने मुझे महान् मानसिक रोगसे पीड़ित कर रखा है। मैं स्वयं इस अज्ञानजन्य क्लेशके कारण ऐसा घृणित जीवन बिताता रहा हूँ। बहुत प्रयत्न करता हूँ कि किसी प्रकार वह गुप्त बन्धन छूट जाय; फिर भी साधारणतया उस दुःखप्रद व्यक्तिका स्मरण हो आता है तो मेरा ध्यान बरबस उस ओर चला जाता है। ऐसा क्यों हो रहा है? मैं कैसे इस मानसिक व्यथासे मुक्त हो सकता हूँ? आपका मनोविज्ञान और धर्म क्या मुझे इस अशान्तिसे किसी प्रकार मुक्त कर सकते है? दिनमें चलते-फिरते, उठते-बैठते तो मनका संतुलन ठीक रहता है, चित्तवृत्ति शान्त रहती है; परंतु संध्योपासनाके समय मनमें अवाच्छनीय विचारधाराका प्रबल आक्रमण क्योंकर होता है? इस विषयमें आपका सत्परामर्श अपेक्षित है। कुछ उपाय बतलाइयेगा?'
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य