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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....


अतः इस लेखमें वर्णित रोगीको आरोग्य और आनन्दमय जीवन बनाने और मानसिक रोगसे बचनेके लिये निम्न सुझाव दिये गये-

१-स्थान परिवर्तन

प्रत्येक विचार या वासनाका सम्बन्ध स्थान-विशेषसे होता है। एक विशेष स्थानमें रहनेसे हमारे मनमें एक विशेष प्रकारकी इच्छाएँ पैदा होती है। स्थानके इर्द-गिर्द एक प्रकारके विचारोंका गुप्त वातावरण छाया रहता है। मन्दिरमें जानेसे पवित्र विचारोंका प्रवाह स्वतः आने लगता है। इसके विपरीत दूषित स्थानोंमें एक बार गुजरनेमात्रसे मन गंदी वासनाओंसे भर जाता है। अतः उपर्युक्त रोगीको यह सलाह दी गयी कि वे उस व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित स्थान का परित्याग करके किसी रमणीय धार्मिक स्थान, तीर्थस्थान या प्रकृतिके रमणीय प्रांगणमें स्थित किसी सुरम्य वाटिकामें निवास करें। नये स्थानकी नयी परिस्थितियोंमें नये-नये स्वस्थ विचार उत्पन्न होंगे। गंदी वासनाएँ फीकी पड़ जायँगी। भोग-भावना कम होगी। यज्ञ तथा विद्वानोंके भाषणोंसे पवित्र की हुई भूमिमें उत्तम और पवित्र विचार ही उत्पन्न होते हैं। कुछ वर्ष दूसरे स्थानमें इस प्रकार निवास करनेसे मानसिक संस्थान नये रूपमें बनने लगता है। पुरानी वासनाएँ फीकी पड़कर उनके स्थानपर नयी भाव-भूमिका निर्माण होता है।

२-नये स्वस्थ विचारों का विकास

जिस गंदे विचार या वासनाको दूर करना है, उसे दबानेके स्थानपर उसके विरोधी शुभ भाव या विचार विकसित करने चाहिये। क्रोधको दूर करनेके लिये प्रेम और शान्त भावोंका विकास करना चाहिये। इसी प्रकार अति उत्तेजक वासनासे सताये हुए व्यक्तिको वैराग्य और ईश्वरके प्रति भक्ति-भावनाके पवित्र भावोंकी वृद्धि करनी चाहिये। शोक-विषादको मिटानेके लिये भगवान्के आनन्दमय रूपका ध्यान करके सर्वत्र आनन्दकी भावना करनी चाहिये। भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, विवेकके शुभ विचारोंमें निरन्तर रमण करने, पुनः-पुनः उन्हें मनमें भरे रखने और वैसे ही विचारोंमें अधिक समय बितानेसे व्यक्तित्वके इस अंगका धीर-धीरे विकास होने लगता है और वासनाओं या तुच्छ इच्छाओंका प्रभाव क्षीण हो जाता है। तुलसीदासजीने भक्तिका मार्ग ही पक्का था। अपने आराध्य रामकी भक्तिमें वे इतने तन्मय हो गये थे कि सारी आसुरी वासनाएँ दग्ध हो गयीं। भक्तिका प्रकाश उनके मनमें फैल गया। उन्हें प्रतीत हुआ कि असली सुख, शान्ति और भक्तिका भण्डार तो राम है और वे राम आत्माके रूपमें मेरे भीतर ही विराजमान है। प्रेम, भक्ति, दया और करुणाके प्रतीक राममें वे ओत-प्रोत हो गये। वासनाका कल्मष बह गया। स्वच्छ, निर्लेप आत्मा अपने सत्-चित्- आनन्दरूपमें निखर आयी। विषय-सुखकी निस्सारता प्रकट हो गयी।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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