गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
३-स्वस्थ मानसिक जीवन-निर्माणके संकेत या सजेशन
नये संस्कारोंका निर्माण संकेत-पद्धति-(System of Auto Suggestion) से होता है। रोगीको नये स्वस्थ संकेत अपने गुप्त मनको बार-बार देने पड़ते है। रोगी पूर्ण निष्ठा और विश्वासपूर्वक शान्तचित्तसे कुछ स्वस्थ विचारोंको मुँहसे उच्चारण करता है, बार-बार उनके निगूढ़ अर्थोंपर विचार करता है और उनमें इतना तन्मय हो जाता है कि अन्तमें वे उसके गुप्त मनका भाग बनने लगते है। उपर्युक्त रोगीको प्रतिदिन सायं और शयनसे पूर्व ये संकेत अपने गुप्त मनको देनेका आदेश दिया गया-
'मुझे अनुभव हो गया है कि जहाँ वासनाकी कालिमा है, वहाँ शान्ति नहीं है। जहाँ विवेकका राज्य है, वहाँ वासना कैसे ठहर सकती है? इसलिये मैं वासनासे चिपटा नहीं रहता। मेरे मनमें अब शान्ति और संतुलन आ रहा है। जहाँ शान्ति और संतुलन है, उस जगह वासना कदापि नहीं ठहर सकती। जब ज्ञानका प्रकाश हो रहा है, तब वासनाका अन्धकार कैसे ठहर सकेगा?
'वासनासम्बन्धी कलुषित विचारोंका मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं तो विवेकशील, शान्त, स्थिरचित्त आत्मा हूँ। अपवित्र और कुत्सित वासनाके विचार मुझे अपने मायाजालमें नहीं फँसा सकते।
'मेरा हृदय वासनारहित है। मैं निर्विकार हूँ। हाड़-मास, मल-मूत्रके शरीरमें मुझे अब आकर्षण नहीं दीखता। मैं तो इन विकारोंपर दृढ़ नियन्तण रखता हूँ। दुष्ट विचार मुझे मेरे उच्च सात्त्विक मार्गसे विचलित नहीं कर सकते।
'मुझे विवेक हो गया है कि वासनाओंके बढ़ाने और तृप्त करनेमें परम सुखकी प्राप्ति नहीं होती। मैं तुच्छ विकारोंका दास नहीं हूँ। क्षणभंगुर पदार्थोंके पीछे अब मैं नहीं छटपटाता फिरता हूँ। सांसारिक भोग-विलासकी वासनाके स्थानपर मुझे आध्यात्मिक सम्पत्ति में अधिक सुखका अनुभव होता है।'
प्रतिदिन प्रातः अथवा सायंकाल एकान्त स्थानमें शान्तचित्त हो नेत्र मूँदकर बैठ जाइये और शरीर तथा मनको शिथिलकर सब विचारोंको हटाकर उपर्युक्त भावनामें दस मिनिट चित्तकी एकाग्र कीजिये। इस प्रकारका अभ्यास करनेसे मन स्वस्थ दिशामें लगता है और क्षुद्र वासनासे मुक्ति मिल जाती है।
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- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
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- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
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- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
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- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
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- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
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- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य