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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

३-स्वस्थ मानसिक जीवन-निर्माणके संकेत या सजेशन

नये संस्कारोंका निर्माण संकेत-पद्धति-(System of Auto Suggestion) से होता है। रोगीको नये स्वस्थ संकेत अपने गुप्त मनको बार-बार देने पड़ते है। रोगी पूर्ण निष्ठा और विश्वासपूर्वक शान्तचित्तसे कुछ स्वस्थ विचारोंको मुँहसे उच्चारण करता है, बार-बार उनके निगूढ़ अर्थोंपर विचार करता है और उनमें इतना तन्मय हो जाता है कि अन्तमें वे उसके गुप्त मनका भाग बनने लगते है। उपर्युक्त रोगीको प्रतिदिन सायं और शयनसे पूर्व ये संकेत अपने गुप्त मनको देनेका आदेश दिया गया-

'मुझे अनुभव हो गया है कि जहाँ वासनाकी कालिमा है, वहाँ शान्ति नहीं है। जहाँ विवेकका राज्य है, वहाँ वासना कैसे ठहर सकती है? इसलिये मैं वासनासे चिपटा नहीं रहता। मेरे मनमें अब शान्ति और संतुलन आ रहा है। जहाँ शान्ति और संतुलन है, उस जगह वासना कदापि नहीं ठहर सकती। जब ज्ञानका प्रकाश हो रहा है, तब वासनाका अन्धकार कैसे ठहर सकेगा?

'वासनासम्बन्धी कलुषित विचारोंका मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं तो विवेकशील, शान्त, स्थिरचित्त आत्मा हूँ। अपवित्र और कुत्सित वासनाके विचार मुझे अपने मायाजालमें नहीं फँसा सकते।

'मेरा हृदय वासनारहित है। मैं निर्विकार हूँ। हाड़-मास, मल-मूत्रके शरीरमें मुझे अब आकर्षण नहीं दीखता। मैं तो इन विकारोंपर दृढ़ नियन्तण रखता हूँ। दुष्ट विचार मुझे मेरे उच्च सात्त्विक मार्गसे विचलित नहीं कर सकते।

'मुझे विवेक हो गया है कि वासनाओंके बढ़ाने और तृप्त करनेमें परम सुखकी प्राप्ति नहीं होती। मैं तुच्छ विकारोंका दास नहीं हूँ। क्षणभंगुर पदार्थोंके पीछे अब मैं नहीं छटपटाता फिरता हूँ। सांसारिक भोग-विलासकी वासनाके स्थानपर मुझे आध्यात्मिक सम्पत्ति में अधिक सुखका अनुभव होता है।'

प्रतिदिन प्रातः अथवा सायंकाल एकान्त स्थानमें शान्तचित्त हो नेत्र मूँदकर बैठ जाइये और शरीर तथा मनको शिथिलकर सब विचारोंको हटाकर उपर्युक्त भावनामें दस मिनिट चित्तकी एकाग्र कीजिये। इस प्रकारका अभ्यास करनेसे मन स्वस्थ दिशामें लगता है और क्षुद्र वासनासे मुक्ति मिल जाती है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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