गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
हमारे मानस-प्रदेशकी दो ही मुख्य भूमिकाएँ है-एक उच्च, दूसरी निम्न। वास्तविक सुखके लिये और क्षुद्रतम दुःखोंसे मुक्तिके लिये सदा-सर्वदा इस उच्च भूमिकामें रमण करते रहो, वहींपर तुम सर्वोत्तम विचारों और सामर्थ्यको पाओगे। आत्माके बिलकुल पास उससे सटी हुई ही मनकी सर्वोंच्च भूमिका है, वहीं अप्रतिम वस्तुओंका अखण्ड सद्भाव रहता है। मनकी निम्न भूमिकामें कष्ट तथा नीच-से-नीच विचार होते है। ये नीच विचार उच्च विचारोंकी अपेक्षा अधिक आकर्षक होते हैं, किंतु उच्च विचारोंके शिखरस्थलमें निरन्तर विहार करनेवाले व्यक्तिको न तो ये किसी प्रकार शिथिल ही कर सकते हैं और न अपनी वर्तमान स्थितिसे असंतुष्ट ही। निरन्तर मनकी उच्च भूमिकामें विहार करनेसे हम आत्माका स्पर्श करनेयोग्य बनते है, तभी हममें सच्चा बल आता है।
सुख तथा दुःख हमारे मनकी दो विभिन्न अवस्थाएँ है। सुख-दुःखकी अनुभूति हमारे मनकी स्थिति, स्थिरता, शान्ति एवं संतुष्टि पर निर्भर है। सुख वह मानसिक दशा है, जिसमें हमारा मन शान्त और स्थिर रहता है। हम संतोषका अनुभव करते है। चित्तका संतुलन ठीक रहता है। मनमें आह्लाद छाया रहता है मुद्रा प्रसन्न रहती है।
दुःख वह मनःस्थिति है जिसमें हमारा मन अशान्त, अस्थिर एवं असंतुष्ट रहता है। जितनी देर हम दुःखी रहते है, उतनी देर अतृप्त रहते हैं। मन चंचल है, तो असंतोषकी आँधी सर्वत्र उठा करती है, इच्छाओंकी प्रतिक्रिया सर्वत्र छायी रहती है, जब मन अशान्त है तब निश्चय ही हम दुःखका अनुभव करेंगे। जितने अंशोंमें मन अशान्त और चञ्चल है उतने ही अंशोंमें हम दुःखी तथा क्षुब्ध रहते है। इस प्रकार सुख-दुःख इस जगत्में या सांसारिक वस्तुओंमें नहीं प्रत्युत हमारे मनमें हैं। हमारा अन्तःकरण ही सुख-दुःखका आगार है।
हमारी वृत्ति कुछ ऐसी बन गयी है कि हम धन तथा संसारकी विभिन्न वस्तुओंमें मनकी शान्ति (अर्थात् सुख) ढूँढ़ा करते है। धन तथा सांसारिक वस्तुएँ वे चीजें है, जिनसे हमें अस्थायी शान्ति प्राप्त होती है। आप मासिक वेतन पाते हैं। यह वेतन क्या है? आप यह समझते है कि इस रुपयेसे एक मासतक आपको शान्ति प्राप्त होगी आप संतुष्ट रहेंगे। मासिक आय सुखका साधन है अवश्य, किंतु वह केवल एक ही मासके लिये हुआ। यह इस सुखकी मर्यादा हुई। इसी प्रकार प्रत्येक सांसारिक सुखकी कुछ अवधि या मर्यादा है। उसके बाहर वह आपको सहायता नहीं कर सकता या सुख नहीं दे सकता।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य