गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
श्रीलक्ष्मीनारायणजी बृहस्पतिने गणेशजीके वाहन चूहेपर जो कुछ लिखा है, वह भी विचारणीय है। देखिये-
'गजके समान विशाल मानवशरीरका वाहन सूक्ष्म मनरूपी चूहा ही है। वाहनकी स्वच्छन्दताकी स्थितिमें वाहनारूढ़का अस्थिर हो जाना स्वाभाविक है, किंतु नियन्त्रित कर दिये जानेपर मनकी एकाग्रता हो जानेपर संसारके सभी सुखोंकी प्राप्तिसे लेकर भगवत्मासितक की जा सकती है। मन ही मनुष्यके बन्धन और मोक्षका कारण है। इस तरह मनरूपी चूहेके वास्तविक स्वरूपका ज्ञान हो जानेपर मनुष्यको अपना आत्मिक ज्ञान होनेमें देर नहीं लगती। कम-से-कम वह आत्मज्ञानका अधिकारी तो अवश्य हो जाता है। मनरूपी चूहेका असली स्वरूप सामने आते ही उसकी चंचलता पलायमान हो जाती है और उसे बाध्य होकर स्थिर हो जाना पड़ता है। स्थिर मन ही संसारकी समस्त साधनाओंको सफलीभूत करनेका साधन है।
चूहा बुद्धिमान् और चपल होता है। यह गुण विघ्नविनाशक गणेशमें भी मूर्तिमान् है।
दुर्गा भगवती शक्तिकी प्रतीक देवी है। उनके आठ हाथ है; जिसका तात्पर्य यह है कि उनमें चार व्यक्तियोंके समान शारीरिक शक्ति और सामर्थ्य है। उनके प्रत्येक हाथमें शक्तिसूचक कोई-न-कोई हथियार रखा गया है-तलवार, कुल्हाड़ी, चक्र, शंख, गदा, ढाल इत्यादि। दुर्गा क्षत्रियोंकी मुख्य देवी है। जब क्षत्रिय अपने सामने दुर्गाका चित्र या प्रतिमा रखकर पूजन करता है, तब वह वास्तवमें अपनी गुप्त शक्तियोंको जाग्रत् करता है; रोम-रोममें शक्तिका प्रादुर्भाव करता है। वह मनमें यह अनुभव करता है, जैसे दुर्गाकी समस्त शक्ति उसके अंग-प्रत्यंग में प्रविष्ट हो रही हो, वह बलवान् बनता जा रहा हो।
दुर्गाका वाहन सिंह है। सिंह सब पशुओंका राजा, अतुल शारीरिक शक्तिका भण्डार, अपूर्व बलशाली वन्य पशु है। उसके चेहरेपर भयानकता विद्यमान है, जिसे देखकर साधारण मनुष्य डर जाता है। पूँछ ऊँची उठाये वह दुर्गाको अपने शरीरपर धारण किये हुए है। दुर्गाका वाहन सिंह इसलिये रखा गया है कि मोटी बुद्धिवाला भक्त भी इस प्रतीकका गुप्त अर्थ समझ सके और शक्तिका आह्वान कर सके। दुर्गामें सर्वत्र शक्ति-ही-शक्तिका समावेश है। उनके मुखमण्डलपर शक्तिका तेज प्रकट हो रहा है; अंग-अंग से शक्ति स्पष्ट हो रही है।
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