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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

श्रीलक्ष्मीनारायणजी बृहस्पतिने गणेशजीके वाहन चूहेपर जो कुछ लिखा है, वह भी विचारणीय है। देखिये-

'गजके समान विशाल मानवशरीरका वाहन सूक्ष्म मनरूपी चूहा ही है। वाहनकी स्वच्छन्दताकी स्थितिमें वाहनारूढ़का अस्थिर हो जाना स्वाभाविक है, किंतु नियन्त्रित कर दिये जानेपर मनकी एकाग्रता हो जानेपर संसारके सभी सुखोंकी प्राप्तिसे लेकर भगवत्मासितक की जा सकती है। मन ही मनुष्यके बन्धन और मोक्षका कारण है। इस तरह मनरूपी चूहेके वास्तविक स्वरूपका ज्ञान हो जानेपर मनुष्यको अपना आत्मिक ज्ञान होनेमें देर नहीं लगती। कम-से-कम वह आत्मज्ञानका अधिकारी तो अवश्य हो जाता है। मनरूपी चूहेका असली स्वरूप सामने आते ही उसकी चंचलता पलायमान हो जाती है और उसे बाध्य होकर स्थिर हो जाना पड़ता है। स्थिर मन ही संसारकी समस्त साधनाओंको सफलीभूत करनेका साधन है।

चूहा बुद्धिमान् और चपल होता है। यह गुण विघ्नविनाशक गणेशमें भी मूर्तिमान् है।

दुर्गा भगवती शक्तिकी प्रतीक देवी है। उनके आठ हाथ है; जिसका तात्पर्य यह है कि उनमें चार व्यक्तियोंके समान शारीरिक शक्ति और सामर्थ्य है। उनके प्रत्येक हाथमें शक्तिसूचक कोई-न-कोई हथियार रखा गया है-तलवार, कुल्हाड़ी, चक्र, शंख, गदा, ढाल इत्यादि। दुर्गा क्षत्रियोंकी मुख्य देवी है। जब क्षत्रिय अपने सामने दुर्गाका चित्र या प्रतिमा रखकर पूजन करता है, तब वह वास्तवमें अपनी गुप्त शक्तियोंको जाग्रत् करता है; रोम-रोममें शक्तिका प्रादुर्भाव करता है। वह मनमें यह अनुभव करता है, जैसे दुर्गाकी समस्त शक्ति उसके अंग-प्रत्यंग में प्रविष्ट हो रही हो, वह बलवान् बनता जा रहा हो।

दुर्गाका वाहन सिंह है। सिंह सब पशुओंका राजा, अतुल शारीरिक शक्तिका भण्डार, अपूर्व बलशाली वन्य पशु है। उसके चेहरेपर भयानकता विद्यमान है, जिसे देखकर साधारण मनुष्य डर जाता है। पूँछ ऊँची उठाये वह दुर्गाको अपने शरीरपर धारण किये हुए है। दुर्गाका वाहन सिंह इसलिये रखा गया है कि मोटी बुद्धिवाला भक्त भी इस प्रतीकका गुप्त अर्थ समझ सके और शक्तिका आह्वान कर सके। दुर्गामें सर्वत्र शक्ति-ही-शक्तिका समावेश है। उनके मुखमण्डलपर शक्तिका तेज प्रकट हो रहा है; अंग-अंग से शक्ति स्पष्ट हो रही है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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