गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
श्रीलक्ष्मीजी धन-धान्य और समृद्धिकी देवी है। अर्थ-शक्तिका मूर्तरूप लक्ष्मीकी प्रतिमामें प्रस्तुत किया गया है। धनको भी देवीका रूप इसलिये दिया गया है कि लोग उसकी पवित्रताको समझ सकें और वैध रूपोंसे ही अर्थका अर्जन करें। लक्ष्मीजीका रूप ऐसा है, जिससे सर्वसमृद्धि प्रकट हो रही है। वैभव स्पष्ट हो रहा है। लक्ष्मीको उलूक-वाहिनी कहा गया है अर्थात् उल्लू उनका वाहन है। उल्लू मूर्खको कहते है, धनका ऐसा स्वभाव है कि वह अशिक्षित मूढ़ व्यक्तियोंके पास एकत्रित हो जाता है। धनपति, पूँजीपति प्रायः अशिक्षित ही होते है। पर यदि शिक्षित भी हों तो धन आते ही वे प्रायः उसके नशेमें अंधे होकर मूर्ख-उल्लू बन जाते है! धनके इसी स्वभावको लक्ष्मीका वाहन उल्लू प्रकट कर देता है।
सरस्वती विद्या और ज्ञानकी देवी है। ललित कलाओं-विशेषतः संगीतका प्रादुर्भाव उन्हींसे है। उनका स्वभाव है-उचित, अनुचित, भले-बुरेकी पहचान। जो व्यक्ति विद्या पढ़ लेता है, उसे नीर-क्षीर-विवेक आ जाता है। वह अपने अच्छे-बुरेको समझने लगता है और सत्यके मार्गका अनुसरण करता है। अतः उनका वाहन हंस माना गया है। हंसका गुण ही नीर-क्षीर-विवेक है। वह दूध-का-दूध और पानी-का-पानी कर देता है। जो व्यक्ति सरस्वतीकी साधना करेगा, वह हंसके गुणोंको अपने व्यक्तित्वमें विकसित करेगा-हंसकी तरह स्वच्छ और सुन्दर बनेगा।
शिव कल्याणकारी है। सृष्टिका कल्याण करते हैं। इस कल्याणकी भावनाको वाहनद्वारा कैसे प्रकट किया जाय? कौन-सा ऐसा पशु हो सकता है, जो मानवमात्रके लिये कल्याणकारी हो! सोचते-सोचते भारतीय धर्माचार्योंको बैल ऐसा पशु मिला, जो सबसे अधिक कल्याणकारी और उपयोगी है। बैलसे खेती और अन्नकी उत्पत्तिका विधान है। बैल न हो तो कृषकके जीवनका ही अन्त हो जाय। अतः शिव-जैसे कल्याणकारी देवताका वाहन बैल चुना गया। बैलको देखकर ही साधारण व्यक्ति समझ सकता है कि वह कल्याणके देवताकी उपासना कर रहा है।
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- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
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- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
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- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
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- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य