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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

सावधान रहिये, भोजन सात्त्विक वृत्तिके व्यक्तिका बनाया हुआ हो। वह तृप्त तथा स्वच्छ हो। निर्विकार हो अर्थात् रोगी न हो। वह स्नानकर, शरीरको स्वच्छकर, स्वच्छ वस्त्र धारण किये रहे और प्रेमपूर्ण मनःस्थितिमें भोजन तैयार करे। माता, पत्नी, बहिनोंके द्वारा बनाये हुए भोजनमें प्रायः ये शुभ वृत्तियाँ मिल जाती हैं।

भोजन स्वच्छ स्थानपर शान्तिपूर्वक प्रसन्न मुद्रासे ग्रहण करे। जो कुछ रूखा-सूखा प्राप्त हुआ है, उसे भगवान्का प्रसाद मानकर ग्रहण करें। भोजन जब सामने आये, तब नेत्र मूँदकर ईश्वरका चिंतन करते हुए धीरे-धीरे इस मन्त्रका उच्चारण करे-

तेजोऽसि सहोऽसि बलमसि भ्राजोऽसि देवानां धामनामासि विश्वमसि विश्वायुः। (वेद)

अर्थात् हे अन्न! तुम (तेज) वीर्य हो। तुम उत्साह हो। तुम बल हो। तुम दीप्ति हो। तुम ही चराचर विश्वरूप हो। तुम ही विश्वके जीवन हो।

 
ॐ द्यौस्त्वा परिददातु ॐ पृथिवी गृह्वातु।
अर्थात् हे अन्न! आकाश तुझे देता है और पृथ्वी तुझे ग्रहण करती है।

ॐ अन्नपतेऽन्नस्थ नो धेह्यनमीवस्य शुष्मिणः प्र प्रदातारं तारिष ऊर्जा नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे।
अर्थात् हे अन्नपते अग्ने! इस यज्ञका भाग हमें दीजिये। यह अन्न (जो हम ग्रहण कर रहे है) नीरोग और बलयुक्त हो। हे अन्नपते! हमारे परिवारके लिये और गो आदि पशुओंके लिये बलकारी अन्न दो।

अन्नं ब्रह्मा रसो विश्वर्भोक्ता देवो महेश्वरः।

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, रस विष्णु है और भोक्ता महेश्वर देव हैं।

इस प्रकार मनमें शुभ भाव धारणकर ब्रह्मार्पण करके जो भोजन किया जाता है, वह मनमें शुद्ध, सात्त्विक संस्कार उत्पन्न करता है। ईश्वरत्वके तत्त्वोंका समावेश करनेसे साधारण रूखा-सूखा भोजन भी आश्चर्यजनक शक्ति उत्पन्न करता है। ईश्वरीय वातावरण तथा मनमें सात्त्विक मनोभाव रखनेसे शुद्ध रक्त और पौष्टिक तत्त्व चारों ओर पहुँचता रहता है। यदि ईश्वरीय चिन्तन साथ है तो रूखे-सूखे भोजनमें ही सुख है, आनन्द है और सब कुछ है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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