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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

मध्यवर्ग सुख से दूर

मध्यवर्गके व्यक्ति चिड़ियोंके इस जोड़ेकी तरह सांसारिक है। वे विवाहित जीवनमें अविवेकी होकर संतानके भारसे, उनकी छोटी-बड़ी असंख्य आवश्यकताओंकी पूर्तिमें व्यस्त रहते हैं। संतान निरन्तर वृद्धिपर है, जो उन्हें अधिकाधिक संघर्षमें फँसाती जाती है। यह लीजिये, अब भार इतना अधिक हो गया कि ईमानदारीसे पोषण सम्भव नहीं है। महँगाई है, दिखावा करना है, टीप-टाप है; दूसरोंसे बढ़ा-चढ़ाकर शान जमानेकी कामना है। जीभ वशमें नहीं रहती। उसके सुखके लिये प्रातःसे सायंकालतक बीसों तरहकी सुस्वादु वस्तुएँ चाहिये। आइसक्रीम, चाय, शराब, सिगरेट, मांस, बढ़िया मिठाइयाँ नमकीन, सोडावाटर, चुसकी, कीमती अचार, मुरब्बे चाहिये। स्पर्श सुख के लिये उन्हं  बढ़िया मकान, सुन्दर वेश-भूषा, गद्दे, काउच, सोफासेट चाहिये। घ्राण-सुखके लिये इत्र-फुलेल, सुगन्धित तेल चाहिये। इस प्रकारकी अनेक कृत्रिम आवश्यकताएँ उनके पीछे लगी है। अपने बच्चोंकी आवश्यकताओंकी पूर्ति करते है, तो पत्नीकी फरमाइशें आ जाती है। उन्हींको पूर्ण करते-करते जीवनका सब कुछ नष्ट कर देते हैं। एक-एक पैसेके लिये झूठ-कपट, मिथ्याचारका आश्रय लेते हैं। कुछ व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओंमें इतने बँध गये है कि उन्हें उच्च विषयोंपर सोचने-विचारनेके लिये जरा भी अवकाश नहीं है। प्रातःसे सायंकालतक बनाव-श्रृंगारमें ही समय व्यतीत होता है।

हम प्रायः पूछा करते है-'क्यों भाई! तुम्हारे पास रुपये, मकान, अच्छा परिवार सब है। तुम सुखी तो हो?' इसका उत्तर हमें कभी संतोषजनक नहीं मिलता। अनेक मित्र ऊँची स्थितिमें होते हुए भी कुछ-न-कुछ आवश्यकताओंकी गिना जाते हैं जो अपूर्ण हैं।

जो प्राप्त है, उसीमें सुख ढूँढ़िये

अतृप्तिका एक कारण यह है कि मनुष्य जो-जो वस्तुएँ उनके पास है, उनका सुख प्राप्त करना नहीं चाहते। उधरसे बेखबर हैं; या जानते-बूझते आँख मूँदे बैठे हैं। जो उनके पास नहीं है, उसकी प्राप्तिके लिये सिर-पैरका परिश्रम कर रहे हैं। एक सज्जन कहने लगे, 'मित्र! क्या बतायें बैंकके मैनेजर साहबने तो मोटर खरीद ली है, हम ताँगेपर ही फिरते है या साइकलसे ही पैर तोड़ते है।' इनके पास परमेश्वरका दिया सब कुछ है, पर मोटरकी अतृप्त इच्छा एक आवश्यकता बनकर इनके आन्तरिक मनपर दुष्प्रभाव डाल रही है। इस श्रेणीके असंख्य व्यक्ति है, जिनकी कृत्रिम आवश्यकताएँ अपूर्ण बनी हुई है।

जीवनका सच्चा रस वह व्यक्ति प्राप्त करता है जो अपने पास रहनेवाली चीजोंका सुख लूटता है। उसका अच्छी चीजके लिये प्रयत्न जारी रहता है, पर उसकी कल्पनामें वह हाथकी चीज नहीं छोड़ता। परमेश्वरने जो दिया है, पहले उसका आनन्द तो ले लिया जाय, फिर आगे बढ़ें।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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