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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


इस बीच परिस्थितियाँभी अपना काम कर रही थी। बोअरों की तैयारी, ढृढता, वीरता इत्यादि अपेक्षा से अधिक तेजस्वी सिद्ध हुई। सरकार को बहुत से रंगरुटो की जरूरत पड़ी औरअन्त में हमारी बिनती स्वीकृत हुई।

हमारी इस टुकड़ी में लगभग ग्यारह सौ आदमी थे। उनमें करीब चालीस मुखिया थे। दूसरे कोई तीन सौस्वतंत्रहिन्दुस्तानी भी रंगरुटो में भरती हुए थे। डॉ. बूथ भी हमारे साथ थे। उसटुकड़ी ने अच्छा काम किया। यद्यपि उसे गोला-बारुद की हद के बाहर ही रहकरकाम करना होता था और 'रेड क्रॉस' का संरक्षण प्राप्त था, फिर भी संकट केसमय गोला-बारुद की सीमा के अन्दर काम करने का अवसर भी हमे मिला। ऐसे संकटमें न पड़ने का इकरार सरकार ने अपनी इच्छा से हमारे साथ किया था, परस्पियांकोप की हार के बाद हालत बदल गयी। इसलिए जनरल बुलर ने यह संदेशाभेजा कि यद्यपि आप लोग जोखिम उठाने के लिए वचन-बद्ध नहीं हैं, तो भी यदिआप जोखिम उठा कर घायल सिपाहियों और अफसरो को रणक्षेत्र से उठाकर औरडोलियों में डालकर ले जाने को तैयार हो जायेंगे तो सरकार आपका उपकारमानेगी। हम तो जोखिम उठाने को तैयार ही थे। अतएव स्पियांकोप की लड़ाई केबाद हम गोला-बारुद की सीमा के अन्दर काम करने लगे।

इन दिनो सबको कई बार दिन में बीस-पचीस मील की मंजिल तय करनी पड़ती थी और एक बार तोघायलो को ड़ोली में डालकर इतने मील चलना पड़ा था। जिन घायल योद्धाओ को हमे ले जाना पड़ा, उनमें जनरल वुडगेट वगैरा भी थे।

छह हफ्तो के बाद हमारी टुकड़ी को बिदा दी गयी। स्पियांकोप और वालक्रान्ज की हार के बादलेडी स्मिथ आदि स्थानो को बोअरों के घेरे में से बड़ी तेजी के साथ छुडाने का विचार ब्रिटिश सेनापति में छोड दिया था, और इग्लैंड तथा हिन्दुस्तान सेऔर अधिक सेना के आने की राह देखने लगे तथा धीमी गति से काम करने का निश्चयकिया था।

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