जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
हमारे छोटे-से काम की उस समय तो बडी स्तुति हुई। इससेहिन्दुस्तानियो की प्रतिष्ठा बड़ी। 'आखिर हिन्दुस्तानी साम्राज्य के वारिस तो है ही ' इस आशय के गीत गाये। जनरल बुलर ने अपने खरीते में हमारी टुकड़ीके काम की तारीफ की। मुखियो को युद्ध के पदक भी मिले।
इससे हिन्दुस्तानी कौम अधिक संगठित हो गयी। मैं गिरमिटिया हिन्दुस्तानियो केअधिक सम्पर्क में आ सका। उनमें अधिक जागृति आयी। और हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,मद्रासी, गुजराती, सिन्धी सब हिन्दुस्तानी है, यह भावना अधिक ढृढ हुई।सबने माना कि अब हिन्दुस्तानियो के दुःख दूर होने ही चाहिये। उस समय तोगोरो के व्यवहार में भी स्पष्ट परिवर्तन दिखायी दिया।
लड़ाई में गोरो के साथ जो सम्पर्क हुआ वह मधुर था। हमें हजारों टॉमियो के साथ रहनेका मौका मिला। वे हमारे साथ मित्रता का व्यवहार करते थे, और यह जानकर कि हम उनकी सेवा के लिए आये है, हमारा उपकार मानते थे।
दुःख के समय मनुष्य का स्वभाव किस तरह पिघलता है, इसका एक मधुर संस्मरण यहाँ दिये बिनामैं रह नहीं सकता। हम चीवली छावनी की तरफ जा रहे थे। यह वही क्षेत्र था,जहाँ लॉर्ड रॉबर्टस के पुत्र को प्राणघातक चोट लगी थी। लेफ्टिनेंट रॉबर्टसके शव को ले जाने का सम्मान हमारी टुकड़ी को मिला था। अगले दिन धूप तेज थी। हम कूच कर रहे थे। सब प्यासे थे। पानी पीने के लिए रास्ते में एकछोटा-सा झरना पड़ा। पहने पानी कौन पीये? मैंने सोचा कि पहले टॉमी पानी पी ले, बाद में हम पीयेंगे। पर टॉमियों में हमे देखकर तुरन्त हमसे पानी पीनेलेने का आग्रह शुरू कर दिया, और इस तरह बड़ी देर तक हमारे बीच 'आप पहले,हम पीछे' का मीठा झगड़ा चलता रहा।
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