इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
मैं पहले अनाज का मसला लेता हूं। जब हमने अनाज के बारे में, फूड कंट्रोल (अन्न नियंत्रण) के बारे में, एक पौलिसी (नीति) तय की, तो यह कोई आसान मामला तो था नहीं। उसमें बहुत मतभेद था। हमारे आपस में भी बहुत मतभेद था। लेकिन आखिर तीन-चार साल से कंट्रोल चलता है और चारों तरफ से शिकायत आती है तो उसका किसी-न-किसी तरह से फैसला तो करना ही है। गान्धी जी ने बहुत जोर दिया कि कंट्रोल निकाल देना चाहिए। कई और लोगों की भी यही राय थी और देहातों में तो सब लोग यही कहते थे। हमने बार बार प्रान्तीय सरकारों में मिनिस्टरों को बुलाया, उनकी कांफेंसें कीं। आखिर हमने एक कमेटी बनाई, जिसमें बड़े-बड़े समझदार लोग थे। सर पुरुषोत्तम दास को इस कमेटी का चेयरमैन (अध्यक्ष) बनाया और इस कमेटी से कहा कि भाई इस चीज को तलाश करके हमें सलाह दो कि हमें क्या करना चाहिए। उसमें हमारे सोशलिस्ट भाई राममनोहर लोहिया को भी रख लिया, क्योंकि हम सब की राय लेना चाहते थे। अब इस कमेटी ने फैसला किया कि कंट्रोल को हटा देना चाहिए। उस फैसले पर जब अमल करने का वख्त आया, तब फिर हमने प्रान्तों के मिनिस्टरों को बुलाया। फिर उनकी राय ली। सब लोगों की राय थी कि अब इसे हटाना ही चाहिए। हमारी आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने भी यही फैसला दिया कि हां, हटाओ। अब हम लाचार हो गए, क्योंकि चन्द जिम्मेवार लोग उसके खिलाफ थे। हमारे सब आफीसर उसके खिलाफ थे। लेकिन हमने यह फैसला कर लिया। फैसला करके इधर से चले गए और हम सोचते रहे कि अब क्या करेंगे। हमारे सोशिलिस्ट भाइयों ने प्रस्ताव किया कि यह बहुत गलत काम किया गया है, बहुत बुरा किया गया है। जो सोशिलिस्ट कांग्रेस में हैं, उनका प्रतिनिधि तो हमने ले लिया था और हमारे फूड मिनिस्टर डा० राजेन्द्र प्रसाद ने जयप्रकाश नारायण से भी कहा था कि अपना एक आदमी भेजें या खुद ही आ जाएँ। तो उन्होंने कहा था कि हमें फुर्सत नहीं है। हम अपना प्रतिनिधि भेज देंगे, और उन्होंने ही राममनोहर लोहिया को भेज दिया था। इस सब के बाद इन लोगों ने इस प्रकार किया।
दूसरी कान्फ्रेंस डाक्टर श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने बुलाई। हमारे यहाँ कपड़ा भी कम पैदा होता है, उसको किस तरह से बढ़ाया जाए और उसके कंट्रोल के बारे में क्या किया जाए और किस तरह किया जाए, यह इस कांफ्रेंस को सोचना था। उसमें मजदूरों के प्रतिनिधि को भी बुलाया और जो उद्योग के प्रतिनिधि थे उनको भी बुलाया। सबको बुलाकर एक जल्सा किया गया। इसमें लेबर के प्रतिनिधि, कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट सभी थे। वहाँ हमारे प्राइममिनिस्टर पं. नेहरू ने इन लोगों को सब कुछ समझाया और सबने उनकी राय मान ली। सब ने एक राय से फैसला किया कि हाँ, ठीक है। अब तीन साल तक कोई हड़ताल नहीं करनी चाहिए। मैं चिल्ला-चिल्लाकर बहुत दिनों से कह रहा था कि पाँच साल तक जमकर काम करो। सब झगड़ा छोड़ दो। नहीं तो, हमारा हमारे हिन्दोस्तान का कुछ भी भविष्य नहीं है। तो हमें इधर शान्ति चाहिए। इसलिए जमकर हम कुछ काम करें, तब तो काम होगा। जब फैसला किया, तो उसमें सब शरीक थे। लेकिन जब फैसला करके इधर आए, तो दूसरे या तीसरे ही दिन सोशलिस्ट पार्टी ने रेज्योल्शन (प्रस्ताव) पास किया कि गवर्नमेंट आफ इंडिया ने ट्रूस (सन्धि) का जो फैसला किया है, उसको हम पूरा नहीं मान सकते हैं। एक रोज के लिए तो हमें बम्बई में हड़ताल करनी ही है।
मैं पूछता हूँ कि एक दिन के लिए टोकन स्ट्राइक क्यों? क्या लीडरशिप सिद्ध करने के लिए? उसे भी तो सिद्ध करना है। अरे भाई, इतना ही झगड़ा था, तो हमसे कहना था। हम ही लिख देते कि लीडरशिप आपकी है। लेकिन यह भी कोई तरीका है! अब कांग्रेस में भी तो आप हैं। आपका प्रतिनिधि वहाँ जाकर कबूल करके आया है और आप कहें, कि नहीं हमें तो ट्रूस नहीं माननी है। एक दिन की स्ट्राइक तो हम जरूर करेंगे। अब हम क्या करें? मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि जिन लोगों पर हम आखिर को गवर्नमेंट चलाने का बोझ डालनेवाले हैं, वह इसी तरह से काम करेंगे, तो कौन-सी गवर्नमेंट चलेगी। और ऐसा ही रहा तो हिन्दुस्तान के स्वराज्य का क्या भविष्य है? हमारे हाथ अब कहाँ तक यह चीज़ रहनेवाली है और कहाँ तक हम इसे रख सकते हैं? तो हमको बड़ा दर्द हुआ। हो सकता है कि उनका पूरा काबू मजदूरों पर हो। मुझे तो यह कभी समझ में नहीं आया कि इस प्रकार कोई लीडरशिप कैसे सिद्ध होती है, क्योंकि मजदूरों को लीडरशिप तो तब सिद्ध होती है कि जो चीज मजदूरों को पसन्द न हो, वह चीज उनसे करवा कर दिखाओ। वह चीज अहमदाबाद में ही होती है। दूसरी जगह पर नहीं होती। और अहमदाबाद में भी यदि हम सावधान नहीं रहेंगे, तो वहां से भी चली जाएगी।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950