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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


आज अखबार में यह पढ़कर मुझे बहुत दुख हुआ कि वहाँ के स्वामी नारायण के मन्दिर को हरिजनों के लिए खोलने से जब वहाँ के महाराज ने इनकार किया, तो सारी मिलें बन्द हो गई। देखो, हमारा दिमाग कहाँ तक चलता है। एक मन्दिर खोलने में कोई आर्थिक सवाल या मजदूरों की तहरीक का भी कोई सवाल नहीं है। उसके लिए बस एक दिन की डेमौस्ट्रेशन (प्रदर्शन) करो। उसमें सोशिलिस्ट, कम्यूनिस्ट सबको मिला लो। करो हड़ताल। कपड़ा तो है नहीं मुल्क में। गरीब लोग भूखे मरते हैं। उससे किसी को फायदा नहीं है। इससे अहमदाबाद में मजदूरों का संगठन इतना गिरा कि मुझको चोट लगी कि यह क्या हुआ। वहाँ कांग्रेस यह क्या करती है, यह मुझे कांग्रेस को भी कहना पड़ा।

इस तरह जो स्ट्राइक हो तो कांग्रेस हमारे हाथ से चली जायगी, यह मेरा निचोड़ है। क्योंकि मैं इस तरह से काम नहीं करता। थोड़े दिन हुए, मैं कलकत्ते गया था। वहाँ भी यही तरीका है। पाँच तारीख को एक दिन की स्ट्राइक करो। उसमें कम्यूनिस्ट, सोशलिस्ट, एंटीकांग्रेस जितने थे, सब मिल गए। एक दिन की स्ट्राइक करो। मैं वहाँ गया तो, दस-बारह लाख आदमी जमा हो गए। तीन तारीख को मैंने मीटिंग की। बहुत लोग आए। मैंने सब लोगों को समझाया कि क्या आप पसन्द करते हो कि स्ट्राइक हो और कलकत्ता जैसे सिटी में एक दिन की स्ट्राइक करने से आप समझते हो कि पुलिस और गवर्नमेंट के ऊपर क्या बोझ पड़ता है? उसमें से कोई फिसाद हो गया तो उसका क्या नतीजा निकलेगा? और किस चीज के लिए आप हड़ताल कर रहे हैं? उससे आपका क्या फायदा होगा? जब लोग समझ गए, तो मैंने कहा कि आप लोगों का कर्त्तव्य यह है कि जब इस तरह स्ट्राइक होने का समय आए, तो आप खुले तौर से उसका विरोध करें। तब आपको घरों में नहीं बैठे रहना चाहिए। सब लोग यह चाहते हैं कि हड़ताल न हो। परन्तु मजदूरों के साथ कौन झगड़ा करे। मजदूरों में काम करनेवाले तूफानी लोग कहते हैं कि वे फिसाद करेंगे, मोटर पर हमला करेंगे, घर पर हमला करेंगे, पत्थर डालेंगे। इस से डरकर अपने काम पर मत जाओ, घर में बैठ रहो। इस तरह काम नहीं चल सकता। इस तरह से अपने स्वराज्य में आप अपनी जिम्मेवारी पूरी नहीं करेंगे। हर आदमी का फर्ज है कि वह सिटीजनशिप (नागरिकता) के अधिकार और जिम्मेवारी दोनों को अदा करें और अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो देश का बहुत बड़ा नुकसान होगा। आज तो एक दिन की स्ट्राइक हो जाएगी, क्योंकि मजदूरों को इतना ही तो कहना है कि एक दिन घर बैठो, आराम मिलेगा छुट्टी मिलेगी, तनख्वाह भी मिलेगी। परन्तु यह लीडरशिप की बात नहीं है। यह तो पागलपन है। इससे किसी का कोई फायदा नहीं होगा। तो कलकत्ता वालों ने मान लिया। फिर भी कई लोगों ने ट्रामें रोकने की कोशिश की। ट्रामों पर पर बम डाला, कुछ गड़बड़ भी की। लेकिन सब लोगों ने विरोध किया कि यह नहीं चलेगा, तो स्ट्राइक नहीं हुई। यानी आप लोगों को स्ट्राइक पसन्द न हो तो आपको भी उसी तरह से करना चाहिए।

अब आज मैं आया तो मेरे पास सोशलिस्ट लीडर अशोक मेहता की एक चिट्ठी आई कि पोर्ट ट्रस्ट में तीन हफ्ते हड़ताल चली है। अब आप इस चीज में इन्साफ कराने के लिए मदद कीजिए। अब मैं क्या करूँ? अब मैं उसे चिट्ठी लिखनेवाला हूँ कि यह तो गवर्नमेंट आफ इंडिया का काम है। यह प्रान्तीय गवर्नमेंट का काम नहीं है। इसलिए हम उनको बराबर इन्साफ देंगे। वयोंकि हमारे कम्यूनिकेशन के मिनिस्टर डा० जान मथाई मजदूरों की तरफ काफी हमदर्दी रखते हैं। लेकिन वह भी तंग आ गए हैं और वह भी कहते हैं कि अब तो कोई रास्ता निकालना चाहिए। मैंने कहा कि एक ही रास्ता है, वह यह कि निश्चय कर लो कि स्ट्राइक तो हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे। तब यह काम होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक हम गलत रास्ते पर चलते रहेंगे। यह यूटिलिटी सर्विस (जनोपयोगी सेवा) है और जाहिर काम के लिए पोर्ट ट्रस्ट है। मजदूरों के लिए ही तो वहाँ अनाज आता है। लोग भूखों मरते हैं, राशन शाप पर अनाज हमें पहुँचाना ही है। मजदूर हड़ताल करके बैठें तो बाहर से आनेवाला अनाज बोट में ही पड़ा रहेगा। तो हम क्या करें? क्या हम बैठे रहें? सोशलिस्ट भाई की बात मान लें? तो हमने मजदूरों की एक नई लेबर फौज भर्ती कर ली, और उनसे कहा कि आप लोगों को काम करना पड़ेगा। इस तरह हमने एक छोटी-सी फौज बनाई है। हमने उन लोगों को भेज दिया कि जाओ काम करो। अब काम तो चलता है। लेकिन अब यह चिट्ठी आई है, तब हमें क्या करना चाहिए? तब मैंने सोचा कि अब एक ही जवाब देना चाहिए कि यह जो मजदूर स्ट्राइक करने गए हैं, उनकी जगह हम दूसरों को भर्ती करनेवाले हैं। उनको निकाल देंगे तो उसका बोझ आप पर पड़ेगा। क्योंकि या तो हमको गवर्नमेंट आफ इंडिया छोड़ देनी चाहिए। बम्बई गवर्नमेंट चाहे, तो छोड़ सकती है, हम नहीं छोड़ेंगे। हम ऐसा नहीं करेंगे। यह बहुत बुरा काम है, यह लीडरशिप नहीं है। इसी तरह की बातों से हिन्दुस्तान का सत्यानाश होनेवाला है।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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