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नारी विमर्श >> मंजरी

मंजरी

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6387
आईएसबीएन :0000000000

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आशापूर्णा देवी का मर्मस्पर्शी उपन्यास....


मंजरी के हाहाकार करते सूने मन में भयंकर एक लोभ तृषित हो उठा। अगर ऐसा करना संभव होता? अगर इस स्नेह के धन को पास रख पाती? 
जा सकता है। रखा जा सकता है।
विवेक को चुप रखकर ऐसा किया जा सकता है। मंजरी इसे लेकर भाग जाए तो सुनीति का कौन सा नुकसान होगा? और होता है तो होने दो।
सुनीति की जरा सी अवहेलना के कारण मंजरी के जीवन में कितना बड़ा नुकसान हो गया, सोचा है कभी सुनीति ने? मंजरी नाम की एक नादान लड़की एक भंयकर तूफान के थपेड़ों से छिटककर उसके पास आश्रय मांगने आई थी तब उसे हताश होकर लौटना पड़ा था। उसी कारण दुःख और अभिमान से निरूपाय हो उसने जलती आग में कूदकर आत्महत्या की थी-यह बात सोचकर सुनीति कभी अनुतप्त हुई है क्या?
नहीं, नहीं हुई थी। होती, तो एक पत्र लिखकर खोज-खबर ले सकती थी सुनीति, किसी दुर्बल क्षण में टेलीफोन का रिसीवर उठाकर डॉयल कर सकती थी। मंजरी कोई छिपकर भाग नहीं गयी थी कि उसे ढूंढना मुश्किल था। सुनीति ने मंजरी की तलाश न करके और पांच जनों की तरह धिक्कारा था। तब फिर मंजरी क्यों उस पर दया करे? क्यों न बदला ले? मन को कठोर बनाते हुए मंजरी ने कहा, "अच्छा, मुझे दो एक दिन सोच लेने दे और तू भी ठीक से सोच समझ ले। अगर सचमुच मेरे साथ जाना चाहती है तो बुधवार शाम...हां बुधवार की शाम को फिर यहां आना।"
"जरूर आऊंगी देखना। एकदम सामान-वामान लेकर..."
"सामान लाने की तुझे जरूरत नहीं है...देखना कितना कुछ है...यह सब मैं तुझे दे दूंगी।"
"अहा !"
फिक से हंस दी चंचला। मौसी जरूर मजाक कर रही हैं।
"लेकिन मैं सोच रही हूं तू सचमुच आ भी सकेगी? दीदी को पता चल गया तो...''
"किसी को पता नहीं चलेगा। वह जो लड़का है न, उसने कहा है कि मुझे सिनेमा की एक्ट्रेस बनने में हर तरह की मदद करने को तैयार है।"
लगातार चमत्कृत होती मंजरी ने विवेक को सांत्वना दी। अगर मंजरी प्रतिहिंसा को बढ़ावा न दे तो क्या इस मूर्ख लड़की की रक्षा कर सकेगी? सुनीति अपने वैधव्य और निर्लिप्त उदासीनता के कारण अपने ही बनाए दायरे में बंधी बैठी रहेगी और 'जाने कैसी होती चली जायेगी' और पुरुषहीन घर की दो तरुणियों का जीवन अव्यवस्थित कर डालेगी।

मंजरी ने पूछा, "क्यों री, तेरी मझली दीदी का क्या हाल है?''
"मझली दीदी? मंझली दीदी तो सिर्फ मां के पास बैठी रहती है और रोया करती है। मेरा ही दम घुटता है।"
"हूं। अच्छा जा उन्हें बुला ला।"
दुबला सीढ़ी का लंबा हाफशर्ट और पायजामा पहना एक लड़का और उसके पीछे उसी ढीलढौल की फ्राक पहनी एक लड़की। ऑटोग्राफ की कापी लेकर कमरे के भीतर आए दोनों।
लड़का विनय का अवतार और लड़की कुंठित, भीत, लज्जावनत। देखकर हंसी भी आई और आश्चर्य भी हुआ।
यह दीनहीन भाव और नितांत ही नाबालिग उम्र के लड़के में इतना साहस आया कहां से? इतना सा लड़का दो-दो लड़कियों को छिपाकर शहर की मशहूर अभिनेत्री के घर ले आया है?
आश्चर्य है।
लड़के को देखकर हंसी ही आ रही थी लेकिन चंचला जैसी भोलीभाली लड़कियों को मूर्ख, ऐसे लड़के ही बनाते हैं।
केवल हस्ताक्षर ही नहीं-दो चार शब्द भी चाहिए।
यथारीति शब्द वितरण कर मंजरी ने उन्हें परितुष्ट किया खिला-पिलाकर। फ्रिज खोलकर उन्हें ठंडे फल और ठंडी मलाई खिलाई। मौसी के गौरव से गौरवांविता चंचला फिर से आने का वादा करके पुलकित चित्त सवांधव विदा लेकर चली गयी।
कुछ मिनट तक मंजरी चिंता में खोई स्तब्ध बैठी रहने के बाद अचानक उठी और बड़े उत्साह के साथ एक सूटकेस में बिस्तर पर फैले कपड़े लेकर रखने लगी। वह चंचला को साथ लेकर भाग ही जायेगी। और क्यों न जाए?
किसने उसकी तरफ देखा था जो वह दूसरों की तरफ देखे? मंजरी ठीक करेगी समाज संसार का अनिष्ट करके। समाज ने अगर उसके लिए ता और विष इकट्ठा कर रखा है तो वह कहां से लाएगी अमृत? उसी विष भरे दांतों से वह समाज को डसेगी।'
कठिन-कठिन संकल्पमंत्र न जाने कैसे निक्षेज पड़ते गये। कौन-कौन सी साड़ियां चंचला पर अच्छी लगेंगी, कौन-कौन से जेवर वह चंचला को दे देगी, कितना छोटा कर लेने पर मंजरी के ब्लाउज चंचला पर ठीक होंगे-यही सब सोचना शुरू किया मंजरी ने।
अनेक द्वंद्व अनेक द्विविधा, विचार, विवेचना, वितर्क प्रचंड युद्ध से मन क्षत-विक्षत। शायद अपने को बर्बादी के रास्ते पर ले जाते वक्त भी मंजरी को इतनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी थी। पाप पुण्य, न्याय अन्याय, सत्य असत्य जैसे शब्दों का ज्यादा विश्लेषण करने का तब अवकाश भी नहीं था। उस समय तो आत्महत्या का संकल्प लेकर आग में कूछ पड़ने कर संकल्प ही था।
यह दूसरी बात है।
ये तो ठंडे दिमाग से नरहत्या है।
एक दिन लड़ाई में जय पराजय घोषित हुआ।
बंबई जाने वाली एक ट्रेन के फर्स्टक्लास के कंपार्टमेंट में चंचला दिखाई पड़ी मंजरी के बगल में।
चंचला का उतरा चेहरा, गालों पर सूखे गये आंसुओं के दाग, और आंखों में उत्साह का प्रकाश।
और मंजरी के?
उसे देखकर कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
मंजरी जो ठहरी प्रथम श्रेणी की अभिनेत्री।
जो लोग उसे ले जा रहे थे वे हर स्टेशन पर उसकी खोज खबर लेने आ रहे थे।
नहीं, उन्हें चंचला के लिए किसी तरह का आश्चर्य नहीं हुआ।
ऐसे छोटे मोटे रिश्तेदार तो बहुत लोगों के साथ आते हैं। ट्रेन दौड़ चली, उसके पीछे-पीछे एक डर खदेड़ता आने लगा।
लड़की भगाने की सजा क्या है?
लेकिन डर के साथ-साथ एक भरोसे का अहसास भी था। अभियोग कौन करेगा? सुनीति न? तो तब वह दिखाई तो पड़ेगी। पता नहीं आएगी भी या नहीं। न जाने क्या नियम है।

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