नारी विमर्श >> मंजरी मंजरीआशापूर्णा देवी
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आशापूर्णा देवी का मर्मस्पर्शी उपन्यास....
"मैं? मैं आई हूं छोटी मौसी के साथ?"
"किसके साथ?" अपने कानों पर विश्वास न कर सका अभिमन्यु। इसीलिए उसने प्रश्न
पूछा।
हिम्मत बटोरकर चंचला एक ही सांस में बता गई, "छोटी मौसी के साथ। वह, वहां!
वहां बैठी हैं छोटी मौसी...अरे, कहां गई?''
फिर पागलों की तरह पीछे की तरफ भागी चंचला।
सुरेश्वर ने अवाक् होकर पूछा, "मामला क्या है अभिमन्यु दा?"
अभिमन्यु अपने सामने फैले सूनेपन की तरफ देखकर अजीब सी हंसी हंसा, "शायद
भाग्यचक्र।"
"मौसाजी।'' वापस लौट आई चंचला। रुंधी आवाज में बोली।
"कहीं भी नहीं दिखाई पड़ रही हैं। टैक्सी वाला भी गायब है।"
"टैक्सी? वह कहां खड़ी थी?''
"उस जगह पर खड़ी थी।"
मन की समस्त शक्ति संग्रहित कर, कंठ स्वर को शांत रखकर अभिमन्यु बोला,
"तुम्हें छोड़कर भाग गई वह?''
इस शांत व्यंगोक्ति पर अचानक चंचला की आंखें भीग उठीं। बेचारी ने गर्दन झुका
ली।
अभिमन्यु चंचला की मानसिक हालत को समझ रहा था लेकिन यह बात उसकी समझ में नहीं
आ रही थी कि चंचला मंजरी के पास कैसे आई। वह भी कलकत्ते से इतनी दूर। क्या
अचानक सुनीति इतनी प्रगतिशीला हो गई हैं? या शुरू से ही अभिमन्यु से छिपाकर
मंजरी से संपर्क बनाए रखा था उन्होंने?
यही संभव है।
इसके अलावा और क्या होगा।
मंजरी के बारे में सारी चिंताएं मन से हटा देने पर भी, सपने में भी अभिमन्यु
यह नहीं सोच सकता था कि दीदी की लड़की को चुराकर ले आई है मंजरी।
"तुम लोग रहती कहां हो? माने, पता क्या है?''
कितना भी अजीब हालात क्यों न हो, इस प्रत्याशित घटना के आघात से उसका खून
कितना ही क्यों न उछलकूद करे, इस लड़की को बह, रात के वक्त यहां अकेली छोड़कर
चले जाने की बात सोच ही नहीं सकता था। जबकि मंजरी ने यह काम किया कैसे? हो
सकता है इसके अलावा वह कर भी क्या सकती थी?
चंचला रुंधी आवाज में बोली, "पता नहीं।"
"तुम्हें पता नहीं मालूम है? कितने दिन हुए हैं आए?''
"बहुत दिन। दो तीन महीने।"
"पता क्यों नहीं मालूम है ?"
"बहुत मुश्किल मुश्किल शब्द हैं-भूल जाती हूं।"
"घर में चिट्ठी नहीं लिखती हो?"
खिसककर रो उठी चंचला, "नहीं।"
कुछ पल चुप रहने के बाद गंभीर भाव से अभिमन्यु ने पूछा, "घर से भाग-वाग तो
नहीं आई हो?"
इस बात का कोई उतर नहीं मिला।
अनरुकी हिचकियां ही इसका उत्तर थीं।
"क्यों आईं?"
मूर्ख लड़की डर के कारण एक झूठी बात बोल बैठी। बोली, "छोटी मौसी के लिए मन
उदास हो रहा था, उन्हें देखने गई थी। वह बोली, "बंबई चलेगी?"
"उसने कहा और तुम चली आईं? बड़ी दीदी माने तुम्हारी मां राजी हो गईं?"
फिर मुंह पर ताला पड़ गया चंचला के। बहुत सारे प्रश्नवाण छोड़ने पर भी नहीं।"
अभी तक सुरेश्वर तीक्ष्ण दृष्टि और तीखा कर्ण का प्रयोग कर इन दोनों की बातें
बड़े ध्यान से सुन रहा था। अब दबी आवाज में बोला, "मामला क्या है अभिमन्यु
दा?''
"पूरी बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है। जितना समझ सका हूं तुम्हें
बताने में वक्त लग जाएगा।"
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