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नारी विमर्श >> मंजरी

मंजरी

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6387
आईएसबीएन :0000000000

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आशापूर्णा देवी का मर्मस्पर्शी उपन्यास....


सुरेश्वर समझ गया कि अभिमन्यु बात टाल रहा है। लेकिन बात की गहराई तक तो जाना ही होगा। एक शब्द उसके कानों में कांटे की तरह चुभ रहा था। उसने साफ-साफ चँचला की आनंद उत्फुल्ल पुकार सुनी थी, 'छोटे मौसाजी.' उसके बाद सुना था 'छोटी मौसी के वहां..'
यह रहस्य क्या है? कौन हैं छोटी मौसी?
पति परितक्तया? स्वामी त्यागिनी? या कि अभिमन्यु का एकाधिक विवाह हुआ है?
अभिमन्यु को घेर एक रहस्य छिपा है इस बात का संदेश सुरेश्वर को बहुत बार हो चुका था, आज लगता है उस पर से पर्दा उठ जाएगा।
सुरेश्वर को निरुत्तर देख अभिमन्यु ने फिर कहा, "मामला क्या है यह मैं तुम्हें आराम से समझाऊंगा अभी तो इस बालिका को यथास्थान पहुंचाने की व्यवस्था करनी है।"
"लेकिन ये तो पता ही नहीं जानती है।''
"यही तो मुश्किल है। यहां से कितनी दूर है चंचला?''
उदास भाव से चंचला बोली, "बहुत दूर।"
"मोटर से चले तो तुम रास्ता पहचनवा सकोगी?''
"नहीं पहचनवा सकूंगी" कहते हुए आत्मसम्मान को ठेस लगेगा इस लज्जा से गर्दन झुकाकर चंचला बोली, "हां, सकूंगी।"
यहां तो सिर्फ मौसाजी नहीं, सामने एक युवक भी खड़ा है। सोलह साल की लड़की को अपनी मूर्खता पर शर्म आ रही थी। उसने मकान का पता रट क्यों नहीं लिया था? ऐसी मूर्खों की तरह रोने क्यों बैठ गई?
"सुरेश्वर इस काम की जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंप रहा हूं भाई।"
"अरे? और आप?"
"मैं होटल वापस जा रहा हूं। तुम एक टैक्सी करके इसके बताए डाइरेक्शन से...'' चंचला जल्दी से आगे बढ़कर अभिमन्यु का एक हाथ पकड़ लेती है। उस पकड़ में एक कातर अनुरोध था। अभिमन्यु ने जरा विचलित भाव से उसके सिर को थपथापते हुए प्यार से कहा, "डर किस बात का है चंचला? ये तुम्हारे बड़े भाई जैसे हैं। और देखना, अभी एक ही मिनट में ऐसी दोस्ती हो जाएगी...'' 
"आपके न जाने का कारण है अभिमन्यु दा?''
बात को टालत हुए अभिमन्यु बोला, "कारण कुछ भी नहीं है, यूं ही तबीयत कुछ ठीक नहीं है-लग रहा है सिर दर्द कर रहा है। चलो मैं तुम लोगों को टैक्सी तक छोड़ दूं...टैक्सी के लिए कुछ दूर तक चलना होगा...''
अब सुरेश्वर सीधे चंचला से पूछ बैठा, "जिनके साथ आईं थीं, वह तुम्हारी कौन हैं?"
"मौसी।" अस्फुट स्वरों से चंचला ने बताया।
"वह इस तरह से चली क्यों गईं?''
कहना न होगा, चंचला चुप।
"अगर तुम मकान पहचनवा न सकीं तो क्या होगा?"
चंचला अब मूर्ख बनकर खड़ी रहने को तैयार नहीं हुई। सहसा चेहरा उठाकर स्पष्ट स्वरों में बोली, "उनका पता जुटाना कोई मुश्किल नहीं है-उन्हें सभी
पहचानते हैं।''
"अच्छा? ये बात है?''
"हां। वह है अभिनेत्री मंजरीदेवी। डाइरेक्टर नंदप्रकाशजी के घर में रहती?? चौंक उठा सुरेश्वर-चौंका अभिमन्यु। अभिमन्यु इतने स्पष्ट शब्दों में मंजरी का नाम सुनकर चौंका तो सुरेश्वर के चौंकने की दूसरी वजह थी।

इसके बाद सहसा तीनों ही खामोश हो गए।
खामोश रहकर काफी रास्ता तय करके और काफी देर तक खड़े रहने के बाद एक टैक्सी मिली। सुरेश्वर ने गंभीर आवाज में कहा, "आइए अभिमन्यु दा, फालतू में इस लड़की को डराने से कोई फायदा नहीं।"
बात में दम था।
रात हो गई थी, एक बिल्कुल ही अपरिचित युवक के साथ चंचला को टैक्सी पर चढ़ा देना ठीक नहीं। चुपचाप अभिमन्यु टैक्सी पर चढ़ बैठा।
चलती टैक्सी में थोड़ी-थोड़ी देर में सुरेश्वर चंचला से रास्ता पूछता। घबराई चंचला ठीक से उत्तर ही नहीं दे पाती और अंत में चक्कर काटते-काटते परेशान ड्राइवर खीजकर पूछ बैठा कि आप सबके सब पागल तो नहीं।
डाइरेक्टर नंदप्रकाशजी को चंचला भले ही श्रद्वापूर्ण दृष्टि से देखे, बंबई की जनता ऐसा नहीं करती है। लोग अपने काम के पीछे भाग रहे थे, सवाल सुनने का या जवाब देने का वक्त ही नहीं है उनके पास। अगर जवाब देते भी तो टालने के लिए ही देते।
इंसान ऐसी मुसीबत में पड़ता है कहीं?
अंत में हताश होकर सुरेश्वर बोला, "लगता नहीं है आज कुछ हो सकेगा अभिमन्यु दा...कल सुबह स्टूडियो में फोन करके जैसा होगा किया जाएगा। इसे हमारे वहां ले चलते हैं, बेचारी को भूख लग गई होगी।"
चंचला जल्दी से बोली, "भूख नहीं लगी है।"
"अरे भई, तुम्हें न सही, हम लोगों को तो लग गई है। भूख के मारे मेरा सिर चकरा रहा है।"
इतने बड़े आदमी को ऐसी बच्चों जैसी बात करते सुन सहसा चंचला हंस पड़ी। अभिमन्यु एक सेकंड चुप रहकर बोला, "तब फिर चलो। और तो कोई उपाय भी नहीं है।"

होटल की तरफ जाते-जाते अभिमन्यु सोचने लगा मंजरी ने मुझे हमेशा मुसीबत में ही डाला है। अभिमन्यु के भाग्यविधाता मजाक अच्छा कर लेते हैं।
सोचते-सोचते अभिमन्यु की चिंता ने दूसरा ही मोड़ ले लिया। क्या मंजरी मन-हीं-मन आज भी उसे स्वीकार करती है? वरना मुझे देखते ही इस तरह से, दिशाहीन सी भागी क्यों? जैसे पीछे से कोई खदेड़ रहा हो?

सुना है मंजरी बड़ी बेहया हो गई है, वाचाल हो गई है, धनलोलुप हो गई है। बड़ी बदनाम है मंजरी। तो फिर ये मंजरी कौन सी मंजरी थी? जो अंधेरे में अभिमन्यु की छाया मात्र देखकर भाग खड़ी हुई?

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