नारी विमर्श >> मंजरी मंजरीआशापूर्णा देवी
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आशापूर्णा देवी का मर्मस्पर्शी उपन्यास....
चंचला सुरेश्वर की तरफ देखकर लज्जित हंसी हंसने लगी। वास्तव में, पिछली रात
खाने की मेज पर और सुबह तक में सुरेश्वर उसके लिए अभिमन्यु से ज्यादा सगा बन
बैठा था।
सुरेश्वर गंभीर भाव से बोला, "हमें तो किसी बात से आपत्ति नहीं है...वह तो
आपका मामला है।"
"चलो, यह बात तुम्हारी समझ में तो आ गई।" अभिमन्यु कुर्सी से उठकर बालकनी में
जाकर खड़ा हो गया।
सुरेश्वर भी उठकर आया। अभिमन्यु के बगल में खड़े होकर गंभीर भाव से बोला,
"अभिमन्यु, पहले सोचा करता था आप देखतुल्य इंसान हैं...वह भ्रम भंग हो गया
मेरा।"
उसकी तरफ देखकर अभिमन्यु मुस्कराया, "गलत धारणाएं जितनी जल्दी भंग हो जाए
उतना ही अच्छा है। इसी में मंगल है।"
"अब देख रहा हूं आप एक पाखंडी हैं।"
"ज्ञानचक्षु का उन्मिलित होना और भी मंगलकारी है।"
मजाक में हर बात को टालने की कोशिश मत कीजिए। छि-छि:। चंचला से सारी बातें
सुनकर मैं तो अवाक् रह गया। एक जीते जागते इंसान को 'मृत' करार देकर आप मस्ती
से घूम रहे हैं?"
अभिमन्यु ने मुंह पर पहले जैसी मुस्कराहट बनाए रखते हुए कहा, "मृत्यु भी तो
नाना रूप की होती है सुरेश्वर।"
"हुं। वह आपके लिए मृत हैं आप यही कहना चाहते हैं न? लेकिन क्यों?"
"चंचला ने जब तुम्हारे सामने अपने मन का द्वार खोला है तब आशा करता हूं सभी
कुछ बताया होगा।"
इस बार सुरेश्वर को हंसी आ गई। हंसकर बोला, "हां, बताया तो है उसने। उसकी
सहेली का भाई फिल्म एक्ट्रेस के अलावा और किसी से शादी नहीं करेगा इसीलिए
बेचारी अपनी मौसी का आंचल पकड़कर सिनेमा एक्ट्रेस बनाने वाले कारखाने में आ
धमकी है यह बात उसने बताई है। लेकिन बात यह नहीं है। बात है भाभीजी को
त्यागने का कोई अर्थ नहीं है। सिनेमा में काम करना, मजलिसों में गाना गाना,
रेडियो में गाना या टॉक देना, यह सब तो इस युग 'की चीजें हैं। इस बात के लिए
आप पत्नी का त्याग करेंगे? छि:, आप इतने पुराने ख्यालों वाले हैं यह तो मैं
सोच ही नहीं सकता हूं।"
"देखो सुरेश्वर," अभिमन्यु ने उदास गंभीर स्वरों में कहा, "इस कर्मदेह में
सूक्ष्म कारण रूपी आत्मा करती है जानते हो न? जिसे हम देख नहीं सकते हैं।
लेकिन चंचला की बात सुनकर तो ताज्जुब हो रहा है। यह 'सब क्या है? वह चीज है
कहां?''
सुरेश्वर मुस्कराकर बोला, "वह कलकत्ते में हैं इससे क्या फर्क पड़ता है...वह
तो ठीक हो जाएगा। अब तो सिर्फ मौसीजी की चापलूसी करके एक्ट्रेस बन जाने भर की
बात है लेकिन मौसीजी लिफ्ट ही नहीं दे रही हैं, खैर छोड़िए, मैं तो जाकर
भाभीजी से दोस्ती कर जाऊंगा।"
अभिमन्यु बालकनी से दूर सड़क की तरफ देखकर हढ़तापूर्वक कहा, "पागलों जैसी
बातें मत करो सुरेश्वर।"
सुरेश्वर इस दृढ़वचन से घबराया नहीं। उससे भी अधिक दृढ़ता से बोला,
"पागलपन तो आप ही करते जा रहे हैं अभिमन्यु दा। दुनिया को आज भी आप पुराने
चश्मे से ही देख रहे हैं। दुनिया बदल रही है, समाज बदल रहा है, बदल रही है
जीवन की रीतियां, संस्कार। पुरानी खूंटी पकड़े बैठे रहना पागलपन नहीं तो और
क्या है? आपके मना करने पर भी मैं डरने वाला नहीं, मैं जरूर जाकर परिचय कर
आऊंगा।"
अभिमन्यु ने तिक्त हास्य से कहा, "इतना जोरदार संकल्प का कारण? कहीं चंचला का
आकर्षण तो नहीं?''
सुरेश्वर हार मानने वाला लड़का नहीं। वह भी तीखी आवाज में बोला, "इसमें
असंभव क्या है? और सच तो ये है कि मैं उसके घर से भाग आने का कारण सुनकर
मुग्ध और चमकृत हुआ हूं। जो लड़की प्रेमी के उपयुक्त बनने के लिए इतनी बड़ी
कीमत चुकाने को तैयार हो, वह तो सच में दुर्लभ लड़की हैं। हो सकता है यह एक
हास्यकर बचपना है, वह लौंडा भी हनुमान विशेष होगा लेकिन निष्ठा तो हास्यकर
नहीं।"
"सुसंवाद।" कहकर भीतर आकर अभिमन्यु ने पुकारा, "चंचला, तो फिर चलो।"
"आप भी चलेंगे?" खुश होकर चंचला ने पूछा।
"यही तो सोच रहा हूं। सुरेश्वर चल रहे हो न?"
सुरेश्वर अभिमन्यु के सहसा मत परिवर्तन पर आश्चर्यचकित तो हुआ लेकिन अपने भाव
उसे प्रकट होने नहीं दिए। उदास भाव से बोला, "सबको जाने की जरूरत क्या है?"
"वाह! घर पहचानना भी तो जरूरी है।"
"किसलिए?"
"भावी से परिचय करने के लिए।"
"नहीं।"
"क्यों? अचानक संकल्प परिवर्तन क्यों?''
"वह तो सभी का हो रहा है।"
अभिमन्यु को हंसी आ गई। बोला, "ठीक कह रहे हो। अचानक ही हुआ है। असल में, रात
के अंधेरे में इंसान कमजोर पड़ जाता है। दिन के उजाले में उसमें साहस उत्पन्न
होता है। अब लग रहा है यह छिपते फिरना, यह भागते फिरना, यह सब हास्यकर है।"
व्यग्रभाव से सुरेश्वर पास आकर बोला, "मैं भी यही कह रहा हूं अभिमन्यु दा।
दूरी का व्यवधान, क्रमश: सहज दृष्टि पर पर्दा डाल देता है। हो सकता है एक बार
मुलाकात होते ही सब कुछ सहज हो जाए। जीवन क्या इतना ही सस्ता है अभिमन्यु दा
कि आप उसे लेकर मनमानी करें?"
अंत में तीनों चले।
बाजार में पहुंचकर अभिमन्यु ने चंचला को उसकी पसंद की एक कीमती साड़ी खरीद दी।
सुरेश्वर ने बेझिझक खरीद डाला ढेर सारी चॉकलेट, टाँफी, बालों के रिबन और
पाउडर केस।
थोड़ा पीछे चलते-चलते अभिमन्यु बोला, "क्यों भाई, अंत में कहीं प्रेम तो नहीं
हुआ जा रहा है? मुझे तो शक होने लगा है।''
सुरेश्वर भी हंसा, "मुझे भी कुछ ऐसा ही शक हो रहा है।"
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