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कामतानाथ संकलित कहानियां

कामतानाथ

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6427
आईएसबीएन :978-81-237-5247

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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...


बच्चे के मां-बाप के साथ, इस बार, पैसेज में खड़े यात्री भी गलमुच्छड़ की यह मुद्रा देखकर घबरा गए। आखिर इन पुलिसवालों का क्या भरोसा, बच्चा हो या बूढ़ा, इन सालों की आंख में शील और हृदय में रहम या दया नाम की चीज तो होती नहीं, कौन ठीक बच्चे को गोली मार ही दे। कह देगा बच्चा बगल में बैठा बंदूक से खेल रहा था, वही जाने कैसे उसका घोड़ा दब गया और गोली बच्चे के सीने में जा लगी। अतः बच्चे का बाप अपने दोनों हाथ जोड़े हुए अपनी शक्ल जितनी भी दयनीय बना सकता था, उतनी दयनीय बनाते हुए गलमुच्छड़ की ओर बढ़ा। गलमुच्छड़ ने, जो पेटी से बंदूक को अलग करने मे लगा था, बच्चे के बाप पर एक वक्र दृष्टि डाली और बोला, 'चुपचाप अपनी जगह खड़ा रह। मैं इस साले से निपट लूंगा। पिद्दी न पिद्दी का शोरवा, साला मेरी इज्जत पर हाथ डालेगा। टोपी उछालेगा मेरी। तेरी तो साले...।'

'अबै बच्चा आय। का समझै...।' बच्चे के बाप ने मिमियाते हुए कहा और गलमुच्छड़ की टोपी फर्श से उठाकर अपनी धोती में रगड़कर उसकी धूल झाड़ने के पश्चात अपनी दोनों हथेलियों में उसे इस तरह रखकर उसकी ओर बढ़ाया, जिस तरह द्वारचार के समय बढ़िया कीमती ट्रे में रखा हुआ बढ़िया शाल या सूट का कपड़ा दोनों पक्षों के बीच पूर्व निश्चित रकम के साथ, लड़की का बाप लड़के के बाप (बाप न हुआ तो ताऊ या चाचा) की ओर बढ़ाता है।

गलमुच्छड़ ने बच्चे के गावदी बाप की हथेलियों पर रखी उत्तर प्रदेश प्रशासन के मछलियों के जौड़े वाले मोनोग्राम वाली, जिसे उसने आज ही घर से चलने से पहले ब्रासो से रगड़कर चमकाया था, टोपी पर तिरस्कार भरी एक ऐसी दृष्टि डाली, जिसका एक ही अर्थ हो सकता था कि इज्जत तो मेरी मिट्टी में मिल ही गई, अब इसका क्या मैं अचार डालूंगा, तब टोपी को बिना हाथ से छुए बच्चे के बाप से बोला, 'रख दे यहीं। पहले इस साले से निपट लूं।' इतना कहकर उसने बंदूक को, जिसे वह अब तक पेटी से खोल चुका था, एक अजीब भाव से देखा, गोया सोच रहा हो कि बंदूक की बोहनी इस बच्चे के कत्ल से करना कहां तक उचित होगा और तब कुछ सोचकर उसे सीट से टिकाकर रखते हुए बच्चे से बोला, 'तेरे ऊपर एक गोली भी क्यों बरबाद की जाए? तुझे तो मैं वैसे ही गला दबाकर मार डालूंगा।' इसी के साथ वह अपने दोनों हाथ की उंगलियों को मरोड़कर, हाथ के पंजो को अर्धवृत्ताकार फैलाकर होठों को सिकोड़कर, दांत किटकिटाते हुए बच्चे की ओर बढ़ा। बच्चा, जो अब तक अप्रत्याशित रूप से खामोश था, गलमुच्छड़ की इस प्रकार बिगड़ी हुई मुखाकृति देखकर मुस्कराया, तब सहसा झपटकर अपने ऊपर झुक आए गुलमुच्छड़ की दाढ़ी अपने दोनों हाथों से दबोच ली।

'अबे छोड़, छोड़, छोड़। गलमुच्छड़ जोर से चिल्लाया और बच्चे के हाथ से अपनी दाढ़ी छुड़ाने का प्रयत्न करने लगा।

अब तो वहां खड़े सारे यात्री, (बच्चे के मां-बाप को छोड़कर) जो यह दृश्य देख रहे थे, बेसाख्यता हंसने लगे। हां, इस बात पर जरूर लोगों का अलग-अलग मत था, जिसे उन्होंने एक-दुसरे से व्यक्त नहीं किया कि बच्चा वास्तव में कृष्ण का अवतार है या फिर गलमुच्छड़ केवल बच्चे से खेल रहा है, उसे मारने का उसका कोई इरादा नहीं है। जो भी हो, गलमुच्छड़ जब अपनी दाढ़ी किसी तरह बच्चे के हाथ से छुड़ाने में सफल हुआ तो बच्चे के हाथ में उसकी दाढ़ी के चार-छह बाल दूर से ही झलक रहे थे जो इस बात का प्रमाण थे कि गलमुच्छड़ की दाढ़ी पर बच्चे की पकड़ खासी मजबूत थी और निश्चय ही उसके द्वारा उसे पकड़ने और गलमुच्छड़ द्वारा उसकी पकड़ से मुक्ति पाने की पूरी प्रक्रिया के दौरान गलमुच्छड़ को खासा कष्ट हुआ होगा।

'हमका दइ देव अब ईका। इस बार बच्चे की मां ने गलमुच्छड़ से विनती की।

'तुमको दे दें इसको?' गलमुच्छड़ ने बच्चे की मां को घूरा, "ई साला हमारी यह दुर्दशा कर रहा है और हम इसको बिना सजा दिए तुमको दे दें! बैठ वहीं अपनी जगह।' कहकर वह फिर बच्चे की ओर मुड़ा, 'चल साले यही सही, उसने कहा, 'तुझको जो करना हो, पहले कर ले। मौत तो तेरी आज मेरे हाथों लिखी ही हुई है। लेकिन चला ले तू जितने दांव-पेंच आते हों तुझे। और यह भी सुन ले, मैं क्या करूंगा तेरे साथ अब। यह गाड़ी देख रहा है न, जिसमें बैठा है तू? इसी चलती गाड़ी से तुझे बाहर नहीं फेंका तो यह समझना, अपने बाप से नहीं पैदा हूं मैं? हरामी की औलाद हूं।' (कहना उसे सिर्फ 'हरामी' चाहिए था, लेकिन कहा उसने 'हरामी की औलाद' जिसका अर्थ यह निकलता था कि वह तो जो है सो है ही, उसका बाप भी अपने बाप से पैदा नहीं था।)

जो भी हो, उसकी इस बात से यात्रियों के मन में फिर शंका हुई कि अब जब वह कसम खा चुका है और वह भी ऐसी कसम, जिसका ताल्लुक उसकी मां के चरित्र से तो है ही, उसकी दादी तक का चरित्र संदेह के घेरे में आ जाता है तो वह अपने कौल को निभाने के लिए कुछ न कुछ तो करेगा ही और अगर चलती ट्रेन से नीचे न भी फेंका तो यह तो कर ही सकता है कि अगले स्टेशन पर या जहां भी गाड़ी रुके, वहां इस बच्चे को लेकर उतर जाए और गाड़ी दोबारा चलने पर उसे प्लेटफार्म पर या कहीं भी इधर-उधर छोड़कर वापस आ जाए।

यही डर संभवतः बच्चे की मां के हृदय में भी जागा। अतः उसने अपने भय को अपनी आंखों से ही व्यक्त करते हुए अपने बौड़म पति की ओर देखा, जो स्वयं काफी डरा हुआ था, और गलमुच्छड़ द्वारा डपट दिए जाने के बाद, उसकी टोपी बगल में रखकर अपने स्थान पर खड़ा, अपनी तलब और अधिक न रोक पाने के कारण या फिर हाई पिच पर पहुंच गए अपने टेंशन को कम करने के उद्देश्य से, बीड़ी जलाकर धकाधक कश मारने में जुटा था। इस बीच बच्चा अपने स्थान पर खामोश बैठा गलमुच्छड़ की ओर न देखकर सामने वाली बेंच पर बैठे उसके दूसरे साथी को निहार रहा था जो किताब के बीच अपनी उंगली फंसाए समुद्र के नीचे बने विलेन के शीशे के महल (जो बुलेटप्रूफ शीशे का बना था और इसीलिए हीरो यानी विश्वविख्यात जासूस अल्फ्रेड दलाल द्वारा विलेन पर गोली चलाए जाने पर निशाना चूक जाने के कारण गोली दीवार में लगने के बावजूद उसमें सूराख नहीं हुआ था)

के बारे में सोच रहा था कि भला ऐसा महल समुद्र के नीचे नींव खोदकर बनाया होगा या फिर उसे जमीन पर बनाकर बड़े-बड़े क्रेनों की सहायता से समुद्र के तल में उतार दिया गया होगा, क्योंकि पुस्तक के लेखक ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी।

बच्चे द्वारा गलमुच्छड़ के साथी को इस तरह घूरने के साथ ही पैसेज में खड़े यात्रियों का ध्यान भी उधर गया और उनमें कुछ, जो अब तक बच्चे को कृष्ण नहीं तो बलराम का अवतार तो मान ही चुके थे, मन ही मन यह सोचने लगे कि गलमुच्छड़ और बच्चे के बीच छिड़े इस युद्ध में जिसे उनके अनुसार अभी अपनी तार्किक परिणति पर पहुंचना बाकी था, गलमुच्छड़ के साथी की क्या भूमिका हो सकती है। शायद बच्चा यदि उसमें सोचने की इतनी क्षमता होती है (मनोवैज्ञानिकों के अनुसार तो नहीं होती, लेकिन इस देश में, जहां बाल कृष्ण ने बड़े-बड़े पराक्रमी राक्षसों को साधारण से साधारण भेष बदलकर आने पर भी दूर से ही उन्हें पहचान कर क्षणांश में ही पछाड़ दिया हो, कुछ भी संभव है) तो वह भी यही सोच रहा था और यह तय नहीं कर पा रहा था कि पहले गलमुच्छड़ की पूरी दुर्दशा वह कर ले, तब उसके साथी से निपटे या साथ ही साथ एक-दो हाथ उसके भी लगाता चले। तभी गलमुच्छड़ के साथी ने गलमुच्छड़ से कहा, 'टोपी पहन लो अपनी। इज्जत तो मिट्टी में मिल ही गई तुम्हारी।'

बात इतनी मासूमियत से कही गई थी कि वह व्यंग्य में कही गई है अथवा ललकार-स्वरूप, गलमुच्छड़ के स्वाभिमान को जगाकर उसके अंदर अतिरिक्त शक्ति का संचार कराने के उद्देश्य से, ठीक से नहीं कहा जा सकता था। जो भी हो, गलमुच्छड़. ने सीट पर रखी अपनी लाल पैच वाली खाकी टोपी उठाई और थोड़ा बांकपन से, जैसा कि पुलिस की टोपियों में या फिर छंटे शातिर खद्दरदारी बदमाशों की टोपियों में देखने को मिलता है, अपने सिर पर लगा ही रहा था कि बच्चा एक हाथ से सीट की दीवार का सहारा लेकर खड़ा हुआ और दूसरा हाथ इतनी जोर से गलमुच्छड़ के सिर पर मारा कि टोपी दोबारा जमीन पर आ गिरी। और लोग तो हंसे ही, इस बार बच्चा भी अपनी इस कामयाबी पर जोरों से खिलखिलाकर हंसा, जिससे गलमुच्छड़ ने पहली बार उसके मुंह के ऊपर के चार और नीचे के दो नन्हे, सफेद, चमकदार दांत देखे। साथ ही यह भी देखा कि ऊपर के किनारे वाले दो दांत कुछ ज्यादा ही नुकीले हैं।

'अच्छा तो साले, दांत भी निकाल लिए हैं' गलमुच्छड़ ने कहा, 'यह साला जरूर राक्षस का अवतार है। इसके किनारे वाले दांत बता रहे हैं। इतने लंबे दांत आदमी के बच्चे के हो ही नहीं सकते। खोल मुंह खोल, देखें। तेरी तो साले...।' और गलमुच्छड़ एक हाथ से बच्चे का सिर पकड कर दूसरे हाथ से उसका मुंह खोलने लगा, जो उसने एक बार दांत दिखाने के बाद दोबारा बंद कर लिया था। लगभग आध-पौन मिनट तक गलमुच्छड़ और बच्चे के बीच मुंह खुलवाने वाला यह संघर्ष चला होगा कि सहसा बच्चे ने अपने दोनों हाथों से गलमुच्छड़ की कलाई पकड़कर उसकी तर्जनी कसकर अपने दांतों के बीच दबा ली।

'अबे, अबे, अवे मार डालेगा क्या...?' गलमुच्छड़ जोर से चिल्लाया।

बच्चे ने घबराकर उसकी उंगली छोड़ दी, लेकिन इस बीच वह अपने दांतों से उंगली की जितनी भी दुर्गति कर सकता था, कर चुका था और गलमुच्छड़ अपनी तर्जनी दूसरे हाथ की मुट्ठी में लिए उसे अपनी जांघों के बीच दबाकर 'सी' 'सी' करने लगा। गलमुच्छड़ की इस 'सी' 'सी' का बच्चे ने, जो अभी भी बर्थ की टेक का सहारा लिए गलमुच्छड़ की ओर मुंह किए खड़ा था और जिसकी लंगोटी इस सारे प्रकरण में कुछ इधर-उधर हो गई थी, कुछ गलत अर्थ निकाला और बाकायदा धार बनाकर मूतने लगा। गलमुच्छड़ की वर्दी को भेदती हुई बालामृत की गरम-गरम धार उसके शरीर तक पहुंची तो उसने चौंक कर उधर देखा।

'अबे, अबे...सरकारी वर्दी पर...तेरी तो...।' उसने कहा और जांघों के बीच हाथ की मुट्ठी में बंद अपनी जख्मी तर्जनी को छोड़कर तुरंत उठकर खड़ा हो गया ताकि बच्चे के इस नए आक्रमण से, जो कुछ-कुछ आज के जमाने में पुलिस द्वारा भीड़ को भगाने के लिए उस पर छोड़ी जाने वाली पानी की तेज धार से मेल खाता था, बच सके और खिड़की के निकट आकर, जहां हवा का झोंका कुछ तेज था, अपनी वर्दी के भीगे हुए हिस्से को चुटकी से पकड़कर तन से अलग करते हुए सुखाने लगा।

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