कहानी संग्रह >> कामतानाथ संकलित कहानियां कामतानाथ संकलित कहानियांकामतानाथ
|
221 पाठक हैं |
आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...
"क्यों, क्या बात है?"
"बात तो कोई नहीं, क्रानिक गैस्ट्रिक ट्रबल है। वही इधर बहुत बढ़ गई है।
कमजोर भी बहुत हो गई हैं और इधर कुछ दिनों से पेशाब होता है थोड़ी-थोड़ी देर
में।"
"कोई बात नहीं, हम लोग सब देख लेंगे।"
"नहीं, दादा, उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब है।"
"तुस फिकर न करो, आज ही मैं डॉक्टर गुप्ता को ले आता हूं। तीन दिन में ठीक हो
जाएंगी।"
"मेरा जाना नहीं हो पाएगा...मिसेज की डिलिवरी भी होनी है।"
"उसमें तुम क्या करोगे? फर्स्ट डिलिवरी तो है नहीं, जो कोई परेशानी वाली बात
हो।"
"फिर भी घर में रहना पड़ेगा। बच्चों का इम्तिहान हो रहा है।"
"मैं अपनी लड़की को भेज दूंगा। तुम्हारे यहां रह जाएगी।"
"उससे नहीं चलेगा, दादा। आप तो जानते हैं, मेरे अलावा घर में और कोई है
नहीं।"
“तुम नहीं जाओगे, तो स्ट्राइक भी नहीं हो सकती। मैं आज ही तार दिए देता हूं
कि यहां कोई भी प्रोग्राम नहीं हो सकता।" दास गंभीर हो गए।
वह चुप हो गया।
श्यामलाल नोवलजीन ले आया था। साथ में एक गिलास पानी भी लेता आया था। वह
नोवलजीन लेने लगा। दास ने सिरगरेट सुलगा ली।
"शाम की मीटिंग में देखा जाएगा।" उसने कहा।
"नोटिस घुमा दिया?" दास ने पूछा।
"मैंने खान को दे दिया था घुमाने के लिए।"
"हो चुका फिर।" दास उठकर खड़े हो गए, “युनियन में ताला डाल दो।" उन्होंने कहा
और सिगरेट पीते हुए चले गए। आल इंडिया का पत्र उसकी मेज पर पड़ा था। वह जानता
था, दास का एसोसिएशन से बेहद लगाव है। इसी कारण वह अकसर इस तरह की बातें करते
हैं। परंतु उनमें एक बहुत बड़ी खामी है। वह चाहते हैं, जैसा वह कहें, वैसा ही
हो।
उसने जल्दी-जल्दी एक्सचेंज वाला पत्र पूरा करके, उसे अर्जेण्ट मार्क करके
चपरासी के हाथ टाइप के लिए भिजवा दिया। तभी उसे ध्यान आया, लाल साहब तो है
नहीं।
"इस पर हस्ताक्षर कौन करेगा?" उसने पकड़ासी से पूछा।
"रायजादा से करवा लो...लाल साहब कह गए हैं।" पकड़ासी ने उत्तर दिया।
वह उठ कर खान को फोन करने लगा। खान ने बताया, अभी कुल सात आदमियों के
हस्ताक्षर हो पाए हैं। सोलह में सात! उसने घड़ी देखी। साढ़े तीन बजे थे। उसे
खीज हुई। उसने खान से कहा, नोटिस मेरे पा भिजवा दो। मैं करवा लूंगा।"
चपरासी नोटिस लाकर उसे दे गया। वह उठकर खड़ा हो गया।
"लेटर टाइप होकर आ जाए", उसने पकड़ासी से कहा, "तो जरा कम्पेयर करके रायजादा
से दस्तखत करवा लेना। मैं काम से जा रहा हूं।"
"डिस्पैच कौन करेगा?" पकड़ासी ने पूछा।
"वह भी तुम्ही कर देना, भाई। मुझे जरा जरूरी काम है।"
“ठीक है, जाओ।" पकड़ासी ने बुझी हुई बीड़ी को दोबारा सुलगाते हुए सिर से
इशारा किया।
वह नोटिस लेकर और सदस्यों के हस्ताक्षर लेने चला गया। लौटकर आया, तो पौने
पांच बजे थे। पकड़ासी घर जाने की तैयारी में अपना चश्मा आदि थैले में रख रहा
था। टेलीफोन एक्सचेंज वाला पत्र उसकी मेज पर रखा था। हस्ताक्षर भी नहीं हुए
थे उस पर।
"अरे। यह चिट्ठी तुमने भेजी नहीं?" उसने पकड़ासी से कहा।
“भेजता क्या, अभी थोड़ी देर हए तो आई है टाइप से।"
"दस्तखत भी नहीं कराए?"
"डिस्पैच नहीं हो सकती तो दस्तखत करा कर क्या करता।" पकड़ासी ने अपनी ड्रार
में ताला लगाते हुए कहा।
"तुम्हें पेरी मेसन पढ़ने से फुरसत मिले तब तो। जानते हो, कितना अर्जेण्ट
लेटर था।"
"मारो गोली अर्जेण्ट को। कल हो जाएगा।"
"तुमको नहीं करना था, तो बता देते।"
"तुम तो खामखाह की झक लड़ा रहे हो। मैंने बताया न, टाइप से ही देर में आया
है।"
वह चुप हो गया। "मित्तल आया?" उसने पूछा।
“आया था, चला गया।"
"क्या बात बता रहा था?"
"कुछ नहीं, पतंग-वतंग के चक्कर में छत पर चढ़ रहा था। वही सीढ़ी से गिर
पड़ा।"
"ज्यादा चोट लगी?"
"पता नहीं। टांके-वांके लगे हैं शायद।"
"कितना बड़ा है?"
"होगा यही दस-बारह साल का।"
चपरासी सामान बांधने लगा। “यह टाइप्ड लेटर फाइल में लगाकर सबसे ऊपर रख देना।"
उसने कहा और अपना बैग आदि संभालने लगा। सिगरेट के लिए उसने जेब में हाथ डाला,
तो देखा, सिगरेट समाप्त हो चुकी थी। उसने सोचा, एसोसिएशन के कमरे में जाने के
पहले वह सिगरेट ले ले। परंतु उसे भय था कि दास वहां जाएंगे और कमरा खुला ना
पाकर उस पर बिगड़ेंगे, अतः वह सीधे एसोसिएशन ऑफिस की ओर आ गया। बत्ती जलाकर
पंखा खोल दिया। मेज पर तमाम कागज इधर-उधर बिखरे पड़े थे। उसने उन्हें कायदे
से लगाकर पेपरवेट के नीचे दबा दिया। टाइपराइटर का कवर अलग पड़ा था। उसे लेकर
उसने टाइपराइटर को ढक दिया। कमरे से इधर-उधर जो कूड़ा था, उसे पैर से ही
किनारे किया। झाड़न लेकर मेज-कुर्सी आदि झाड़ी और बैठकर किसी के आने की
प्रतीक्षा करने लगा, ताकि जाकर सिगरेट ला सके।
कोई-पच्चीस मिनट तक वह अकेला बैठा रहा। तब दो-एक सदस्य आए। संभवतः वे लोग चाय
की दुकान से चाय आदि पीकर आ रहे थे। उन्हें बैठने को कहकर वह सिगरेट लेने चला
आया। सिगरेट के पैसे निकालने के लिए उसने जेब से कागज आदि निकाले, तो उसमें
मां के पेशाब टेस्ट कराने का पर्चा भी था। पर्चा देखकर उसे ध्यान आया कि उसे
डॉक्टर के यहां जाना है। उसने कहा था, सात बजे तक दुकान खुली रहती है। उसने
घड़ी देखी। साढ़े पांच बजे थे। जल्दी-जल्दी उसने सिगरेट ली। सिर का दर्द अभी
गया नहीं था। उसने पान वाले से एक सेरिडान भी ले ली। उसकी इच्छा हुई कि एक कप
चाय भी पी ले, परंतु फिर उसे लगा. कि देर न हो जाए कहीं, अतः वह टाल गया और
जल्दी-जल्दी एसोसियेशन-रूम लौट आया। दस-पंद्रह मिनट फिर भी उसे लगे होंगे।
केवल सात सदस्य वहां थे। दास भी बैठे थे।
“मीटिंग शुरू करें?" उसने पूछा।
"शुरू करो।" दास ने कहा।
उसने मिनिट्स बुक निकाली और सबके हस्ताक्षर कराने लगा। आल इंडिया से. आए तार
और पत्र आदि के बारे में उसने सबको सूचित किया तथा सी. इ. सी. की मीटिंग की
नोटिस पढ़कर सुनाया। सी. ई. सी. के लिए डेलीगेट चुनने तथा वहां इस यूनिट का
क्या मत होगा, इस बारे में उसने सदस्यों को राय देने के लिए कहा।
दास ने उसे बीच में ही टोक दिया, "डेलीगेट चुनने का प्रश्न ही नहीं उठता। सी.
ई. सी. की मीटिंग में सदा ही सेक्रेटरी जाता है। उसे ही इस बार भी जाना
होगा।" उन्होंने कहा, "हां, इस यूनिट के स्टैंड के बारे में आप लोग चर्चा कर
लीजिए।"
"बात यह है कि मैं कुछ घरेलू कठिनाईयों तथा मां की बीमारी आदि के कारण जा
नहीं पाऊंगा।" उसने कहा।
"तो आज की मीटिंग कैंसिल कीजिए। आप लोग जाइए।" दास अपना बैग लेकर उठने लगे।
|