कहानी संग्रह >> कामतानाथ संकलित कहानियां कामतानाथ संकलित कहानियांकामतानाथ
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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...
"इकहत्तर, नहीं, वहत्तर की बात है। मां की बीमारी की वजह से मैं जा नहीं रहा
था। लेकिन दास दादा माने नहीं। वह उन दिनों प्रेसीडेंट हुआ करते थे। उन्हीं
के जोर देने से चला गया था मैं। इधर मैं गया और उधर मां की हालत और बिगड़ गई।
मैं कलकत्ता पहुंचा ही था कि- टेलेक्स मिला। तुरंत लौटना पड़ा।"
"हवाई जहाज से आए थे न आप शायद।"
"हां इतनी मेहरबानी की थी आल इंडिया ने कि प्लेन का किराया सैंक्शन कर दिया
था।"
"क्या हुआ था मां को?" एक नए सदस्य ने पूछा।
"ब्लड यूरिया था। इलाज चल रहा था। मगर हालत बिगड़ती ही गई। डायलेसिस का यहां
कोई इंतजाम है नहीं। वह होता तो शायद बच जातीं। मैं लौटा हूं उसी के तीसरे
दिन डेथ हो गई। अरे यार जमानत तुम गए नहीं अभी।"
"बोल भी आया मैं।" जमानत ने कहा और सिगरेट का पैकेट निकाल कर मेज पर रख दिया।
"अच्छा कामरेड अब बताइए क्या फैसला हुआ।"
उसने अटैची से फाइलें आदि निकालीं। उन्हें देखते हुए बोला, “छः सौ साठ
प्वाइंट तक तो डी. ए. का मर्जर मांगा है हम लोगों ने। असिस्टेंट तक रनिंग
स्केल की मांग की है। एल. एफ. सी. ढाई हजार किलोमीटर तक साल में एक बार।
मेडिकल एक हजार रुपये सालाना। गोहाटी, भुवनेश्वर, जम्मू आदि के लिए
डिस्टर्बेन्स एलाउन्स, तीन सौ रुपये महीना। इसी तरह फेस्टिवल एडवांस,
कंज्यूमर लोन, हाउसिंग लोन में उचित वृद्धि की मांग की है।" तब तक लड़का चाय
ले आया। सब लोग चाय पीने लगे।
"हाउसिंग लोन कितना डिमांड किया है कामरेड ?" कपूर ने पूछा। उसने प्लाट ले
रखा था और जल्दी से जल्दी मकान बनवा लेना चाहता था।
"ढाई लाख मांगा है हम लोगों ने।" "हो जाएगा?" "हो जाना चाहिए। न होगा ढाई तो
दो तो हो ही जाएगा।"
"ग्रेचुएटी और पेंशन के बारे में आपने कुछ नहीं बताया।" शुक्लाजी ने कहा। वह
तीन-चार साल में रिटायर होने वाले थे।
"ग्रेचुएटी नब्बे हजार की मांग की है हमने। एडीशनल ग्रेचुएटी के अलावा। और
पेंशन के बारे में तो आपको मालूम है। कमेटी की रेक्मेंडेशन्स सरकार के पास
एप्रूवल के लिए गई हैं।" उसने बताया।
"यह तो कई महीनों से सुन रहे हैं।" शुक्लाजी ने कहा।
वह हंसा। “सरकारी हिसाब तो आप जानते ही हैं।"
द्विवेदी जब से आया था तभी से खामोश था। एल. एफ. सी. बिल के एक
चक्कर में वह सस्पेंड चल रहा था। तीन महीनों से अधिक हो रहे थे। द्विवेदी के
कंधे पर हाथ रखते हुए उसने कहा, "तुम्हारे केस के बारे में मैंने पटवर्धन से
बात की थी। उसने वायदा किया है कि वह हेड ऑफिस में बात करेगा। सब ठीक हो
जाएगा। तुम चिंता न करो।"
"इंक्वायरी के लिए लेटर मिल गया है।" द्विवेदी ने कहा।
"उससे क्या फर्क पड़ता है। इंक्वायरी अपनी जगह है।"
द्विवेदी फिर खामोश हो गया।
"तो कल मीटिंग होगी न कामरेड?" जमानत ने पूछा।
"हां, बिल्कुल होगी।"
“सर्कुलर निकालना होगा।"
"जरूर।"
"आप बना दीजिए। मैं जाकर बाजार से स्टैंसिल कटवा लाता हूं।"
"अरे यार बाजार में खामखाह पैसे खर्च होंगे और ठीक कटेगा भी नहीं। आप
नहा-धोकर वहीं चलिए कामरेड, यूनियन ऑफिस। मैं वर्मा को बुलाए लाता हूं। वह
स्टैंसिल काट देगा।" किसी और ने कहा।
"ठीक है तुम लोग बैठो। मैं आध घंटे में तैयार हो जाता हूं।" तभी बंटी आ गया।
"कहां गए थे तुम?" उसने बंटी से पूछा।
"पढ़ने।"
"कितने बजे गए थे?" "सुबह गया हूं। छः बजे के करीब।"
"रात दस बजे से तो मैं हूं यहां और तुम कर रहे हो सुबह छः बजे गए हो तुम।"
"छः बजे तो मास्टर साहब के यहां गया था। रात में एक लड़के के यहां गया था
पढ़ने।"
"तो रात में कहां रहे तुम?"
"देर हो गई तो उसी लड़के के यहां रुक गया था।"
"और मम्मी के साथ नागपुर क्यों नहीं गए?"
"मुझे पता ही नहीं चला मम्मी कब गईं। उन्होंने मेरा इंतजार ही नहीं किया।"
"तुम्हारा इंतजार करें या गाड़ी का वक्त देखें। विजय गया तो था तुम्हें कॉलेज
में बुलाने। तुम मिले ही नहीं।"
"मैं तो वहीं था।"
"अच्छा अब बहस मत करो। जाकर हम लोगों के लिए चाय बनाकर लाओ।"
"अरे बाजार से ले आते हैं न, कामरेड।" जमानत ने कहा।
"बाजार की चाय में मजा नहीं आया भाई। यह बना लेगा।" उसने कहा।
"अच्छा चलो मैं बनाता हूं चलकर। तुम खाली सामान बता दो कहां रखा है।" जमानत
ने कहा और उठकर किचन में चला गया।
“दूध के लिए पैसे दे दीजिए।" बंटी ने किचन से लौटकर कहा।
उसने पैसे दे दिए।
कोई एक घंटे में वह यूनियन ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया। जाते-जाते उसने
बंटी से कहा, "देखो यहीं रहना, घर में। कहीं जाना मत और हां, सब्जी ले आना
बाजार से। और एक चूहेदानी भी ले आना। तार वाली मत लाना। टीन की पत्ती वाली
लाना। यह लो पैसे।" उसने पचास का एक नोट निकाल कर बंटी को दिया और यूनियन के
सदस्यों के साथ चल दिया।
यूनियन ऑफिस में आकर वह दूसरे दिन की मीटिंग के लिए सर्कुलर बनाने लगा। एक
साथी वर्मा को बुलाने चला गया। लेकिन वर्मा घर पर मिला नहीं। वह वापस चला
आया।
"अब? आज तो इतवार है। बाजार में भी स्टैंसिल कटना मुश्किल है।" किसी ने कहा।
"लो, यह तो मुझे ध्यान ही नहीं था।" जमानत ने कहा, "फिर भी लाइए देखता हूं
जाकर। शायद कोई दुकान खुली हो।"
"अरे यार, इधर लाओ।" उसने सर्कुलर जमानत के हाथ से ले लिया। “स्टैंसिल तो है
न यहां?"
किसी साथी ने स्टैंसिल निकाल कर उसे दे दिया।
उसने उसे टाइपराइटर पर लगाया और एक उंगली से ही स्टैंसिल काटने लगा।
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