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कामतानाथ संकलित कहानियां

कामतानाथ

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6427
आईएसबीएन :978-81-237-5247

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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...



आप उससे कहिए, दुकान खोले। अगर, जैसा आप कहते हैं, वह कोई गलत काम नहीं करता, तो पुलिस उसे तंग नहीं करेगी।"

हम वापस चले आए। उसी दिन शाम से उसकी दुकान दोबारा खुल गई। लेकिन एक महीने के अंदर ही पुलिस कालीचरन को दोबारा पकड़ ले गई। इस बार उस पर मालगाड़ी के डिब्बों से कपड़े की गांठें चुराने का इल्जाम लगा। उसे पुलिस हिरासत में बुरी तरह पीटा भी गया। जमानत भी बड़ी मुश्किल से हुई। कोई एक महीना उसे जेल में रहना पड़ा।

एक बार फिर हम पुलिस अधीक्षक से मिले। लेकिन इस बार उसने ठीक से बात तक नहीं की। उल्टे बेढंगे किस्म के सवाल हमसे करने लगा कि हम उसे कैसे जानते हैं, दुकान के लिए उसे कर्ज दिलाने में हमारा क्या स्वार्थ है, आदि-आदि। अंत में उसने हमसे कहा, "देखिए, वह पुराना मुजरिम है। पुलिस के रिकॉर्ड में उसकी पूरी केस हिस्ट्री है। इसलिए अगर आप अपना भला चलते हैं तो इस पचड़े में न पड़ें।"

व्यवस्था के खिलाफ अपना सारा रोष मुंह में जमी लार के साथ अपने पेट में उतार कर हम वहां से अपना-सा मुंह लेकर लौट आए।

हाईकोर्ट से जमानत होने के बाद कालीचरन जब जेल से छूट कर आया, तो इतना बदल गया था कि उसे पहचानना मुश्किल था। दुबला तो वह हो ही गया था, एक पांव से लंगड़ाने भी लगा था। इस बीच किसी ने उसकी दुकान का ताला तोड़ कर सारा सामान भी साफ कर दिया था। केवल लकड़ी का ढांचा रह गया था। उसके बच्चों के नाम भी स्कूल से कट गए थे और अगर हमने उसकी पत्नी की इस बीच दो-एक बार पैसों से मदद न की होती, तो उनके भूखों मरने की नौबत भी आ चुकी होती।

कालीचरन के जेल से छूटने पर हम उसे जेल के गेट पर ही मिले। लेकिन, हाथ जोड़कर हमसे नमस्ते करने के अलावा न तो उसने हमसे कोई बात की न ही हमारी हिम्मत उससे कुछ कहने की हुई। वहां से हम तीनों चुपचाप उसके घर चले आए। उसकी पत्नी भी इस बार उसे देखकर प्रसन्न होने के बजाय फूट-फूटकर रोने लगी। शायद प्रसन्नता के ही आंसू रहे हों। हमें वहां अधिक देर रुकना उचित नहीं लगा। अतः हम वहां से चुपचाप लौट आए।

हमने तय किया कि हम उसे अपने परिवार के साथ रहने और मानसिक रूप से सहज होने के लिए कुछ समय दें। अतः कोई एक हफ्ते तक हम उससे मिलने नहीं गए। तभी एक दिन हम उससे मिलने गए, तो वह घर पर नहीं था।

"कहां गए?" कार्तिक ने उसकी पत्नी से पूछा, तो उसने उत्तर दिया, "बगिया में होंगे।"

"कौन बगिया?" कार्तिक ने प्रश्न किया।


"गंगाकटरी वाली। जानत तो हो आप लोग।" उसने कहा।

हम अमरूद के उसी बाग की ओर चल दिए जहां कालीचरन से हमारी पहली मुलाकात हुई थी। दूर से ही हमने देखा, एक दुबला-पतला व्यक्ति छप्पर के नीचे पड़े तख्त पर बैठा बीड़ी पी रहा है। निकट जाने पर हमने पाया, वह कालीचरन ही था। थोड़ी ही दूर पर उसके दोनों बच्चे एक पेड़ के नीचे ब्लाडर से शराब निकाल कर ग्राहकों को दे रहे थे।

हमें देखते ही कालीचरन उठकर खड़ा हो गया और लड़कों के पास से हमारे . लिए गिलासों में शराब ले आया। गिलास लाकर उसने तख्त पर रख दिए। हमने एक बार गिलासों की ओर और फिर कालीचरन की ओर देखा। लेकिन हमारी निगाह उसकी ओर मुड़ते ही वह दूसरी ओर देखने लगा और दूसरे ही क्षण उठकर चला गया। थोड़ी ही देर में वह कुछ दालमोठ बगैरह लेकर लौटा। इस बीच हम गिलास होंठों से लगा चुके थे। हमारे कहने पर कालीचरन भी अपने लिए एक गिलास ले आया।

कार्तिक ने उस दिन बहुत पी। लेकिन मैंने देखा कि वह अपने स्वभाव के प्रतिकूल बहुत ही खामोश था। तभी अचानक वह फूट-फूट कर रोने लगा। उसे रोता देख कालीचरन भी रोने लगा। देर तक दोनों एक-दूसरे से गले मिलकर रोते रहे। तभी कार्तिक अपने आंसू पोंछते हुए बोला, "मैं हार गया कालीचरन।" और देर तक इस वाक्य को दोहराता रहा। थोड़ा संयत होने पर वह बोला, "यह मेरी जिंदगी की पहली हार है।" और दूसरे ही क्षण वह फिर रोने लगा।

उस दिन उसकी मोटरसाइकिल हमें वहीं छोड़नी पड़ी। बड़ी मुश्किल से रिक्शे पर लादकर मैंने उसे उसके घर पहुंचाया।

कुछ ही दिनों में स्थितियां फिर सामान्य हो गईं। कालीचरन के दोनों केस भी, जैसा कि उसने हमें बताया, खत्म हो गए। दुकान औने-पौने किसी के हाथ बेच दी गई। बैंक का कर्ज अभी बाकी है, जो कार्तिक खुद भरने को कहता है।

अब हम फिर पुराने दिनों की तरह अकसर ही शाम को उधर निकल जाते हैं। पिकनिकों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। लेकिन कार्तिक के अंदर अब भी कुछ है, जो उसे बराबर मथता रहता है। दो-एक गिलास पीकर ही वह बहकने लगता है और दारोगा को गोली मारने की बात करने लगता है।

आज भी मैं जानता हूं, जहां दो-ढाई गिलास इसके गले से नीचे उतरेंगे, यह पुलिस को गालियां देने लगेगा। दारोगा को गोली मार देने की बात करेगा। और दारोगा ही क्यों, पूरी कोतवाली को बम से उड़ा देने की बात करेगा। और तब थोड़ी और पीने पर रोने लगेगा। फूट-फूट कर रोएगा और यहीं जमीन पर लुढ़क जाएगा।

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