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कामतानाथ संकलित कहानियां

कामतानाथ

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6427
आईएसबीएन :978-81-237-5247

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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...


गरमी भर दो-दो कूलर चलते हैं। लेकिन अंदर नहीं सोएंगे। बाहर खुले में लेटेंगे। वह भी बान की चारपाई पर। तीन-तीन फोल्डिंग हैं घर में। लेकिन उस पर नहीं लेटेंगे। बान की चारपाई पर ही लेटेंगे, वह भी बिना कुछ बिछाए। पानी में भिगोकर, नंगे बदन पड़े रहेंगे। कोई देखे तो यही कहेगा कि घर का नौकर होगा, तभी तो बेचारा बिना बिस्तर के पड़ा है।

एक और खब्त सवार रहती है। बिजली बेकार न हो। न हो भाई। इससे कौन असहमत हो सकता है। यह तो सरकार भी कहती है। रेडियो-दूरदर्शन पर विज्ञापन आते हैं, लेकिन अब ऐसा भी नहीं हो सकता कि आदमी बेडरूम से टॉयलेट जाए तो बत्ती-पंखा बंद करके जाए, कि घंटी बजने पर बाहर निकल कर देखने जाए तो कमरे की बत्ती गुल करके जाए। लेकिन इनका यही मतलब है कि एक सेकंड भी बत्ती बेकार न जले। किचन में दाल चढ़ाकर पकाने वाला कि पकाने वाली बाहर कमरे में सब्जी काटने बैठे तो वहां की बत्ती गुल कर दे। फिर चाहे वहां बिल्ली टहले या छ दर । बाथरूम की बत्ती खुली देखेंगे तो दरवाजा खोलकर झांकने लगेंगे कि कोई अंदर है या ऐसे ही बत्ती जल रही है। जहां भी कोई बत्ती जलती देखी और किसी को वहां नहीं पाया, फौरन बत्ती ऑफ कर देंगे। पंखा चलता देख लिया कहीं और किसी को आसपास नहीं पाया, फौरन बंद कर देंगे। एक बार पानी की मोटर खुली रह गई। अब पता नहीं किसने खोली थी। बहरहाल, रह गई तो रह गई। मगर नहीं साहब, क्यों रह गई? हफ्तों इन्क्वायरी करते रहे। बस चलता तो जांच कमीशन बिठा देते।

बैठे-बैठे बेमतलब की चीजों से उलझते रहते हैं। उस दिन खामख्वाह का बखेड़ा खड़ा कर दिया। बाथरूम के फ्लश की टंकी कुछ दिनों से लीक कर रही थी। कास्ट आयरन की पुराने जमाने की टंकी, कहीं हो गई होगी क्रैक। ऐसा नहीं कि मैंने नहीं देखा। आखिर मैं भी इसी घर में रहता हूं, लेकिन अलादीन का चिराग तो किसी के पास है नहीं कि घिसा नहीं कि जिन्न हाजिर, 'बोलिए मेरे आका, क्या हुक्म है?' 'टंकी ठीक होनी है भाई' 'लीजिए, हो गई।' प्लंबर को पकड़कर लाना पड़ेगा। वह देखेगा तब बताएगा कि क्या गड़बड़ी है। इसी में मरम्मत हो जाएगी कि बदलनी पड़ेगी। सो दो बार मैं जा चुका था, लेकिन यह प्लंबर आप जानते हैं; छोटे-मोटे कामों के लिए तो आसानी से राजी होते नहीं। सौ बार दाढ़ी में हाथ लगाओ, तब कहीं सत्तर नखरे करके आएंगे। वैसे, ऐसी कोई आफत भी नहीं थी। टायलेट इस्तेमाल करने से पहले फ्लश कर दो या फिर टंकी का नल नीचे से बंद कर दो। और इस सबकी भी क्या जरूरत है। दूसरा टायलेट भी तो है घर में। उसको इस्तेमाल करो तब तक। मगर नहीं। हो गई खब्त सवार इनको कि टंकी ठीक होनी ही है। सो, इस बीच किसी दिन टीवी पर एम. सील का कोई विज्ञापन देख लिया। बस, फिर क्या था, बांधी तहमद और बाजार जाकर खरीद लाए एक पैकेट। घुस गए बाथरूम में स्टूल लेकर। तभी जाने क्या हुआ, स्टूल पर से पैर फिसला कि भगवान जाने क्या हुआ, नीचे आ रहे। तीन दिन से अस्पताल में पड़े हैं। एक्सरे हुआ तो पता चला, कूल्हे की हड्डी टूट गई है। ऑपरेशन करना पड़ेगा। लोहे की रॉड डाली जाएगी तब चलने-फिरने लायक होंगे। कम से कम पंद्रह हजार का लटका है। ऑफिस की क्रेडिट सोसाइटी और पी. एफ. दोनों से लोन अप्लाई कर दिया है। मिल जाएगा तो ठीक, नहीं तो बीवी के जेवर बेचने पड़ेंगे। बेचूंगा। और रास्ता भी क्या है?

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