जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
बार-बार अपने को याद दिलाता हूँ, अपनी कविताओं के बारे में कम-से-कम कहना है, पर क्या करूँ, केम्ब्रिज का कमरा याद आये तो वे कविताएँ कैसे भुलाई जायें जो उसमें लिखी गयी थीं और वे गीत याद आयें तो वह कमरा कैसे भुलाया जाये जिसमें ये गीत लिखे गये थे। आखिरकार यह संस्मरण है।
केम्ब्रिज छोड़ने को अब फकत दो दिन हैं।
समय लेकर मि० हेन से विदा लेने गया।
हेन का मुझ पर बहुत बड़ा ऋण है। निर्देशक-शोधार्थी का औपचारिक सम्बन्ध तो हफ ने भी निभाया था, निश्चय मेरे व्यावहारिक हित को ध्यान में रखकर, पर एक फासला बनाये हुए। उनके प्रति मैं कृतज्ञ हूँ, पर हेन के प्रति मैं ऋणी हूँ। जिस दिन से मैं उन्हें मिला था उसी दिन से उन्होंने मुझे अपने विश्वास में . लिया था, मेरे अन्दर छिपी शोध-प्रकृति को पहचाना था, उसे विकसित करने में हार्दिक रुचि ली थी, मुझे जैसे एक बड़े और अनुभवी का स्नेह-संरक्षण दिया था, मुझे अपनाया था।
मुझे अनेक ऐसे अवसर याद हैं जब अपने अवसाद, निराशा या चिन्ता के क्षणों में-प्रवास में इनकी कमी तो नहीं रही-मैंने उनके सान्निध्य में विश्रांति पायी थी, सहारा पाया था, बल संचय किया था।
एक घटना का जिक्र करूँ?
'53 के अन्तिम और '54 के आरम्भिक महीनों में इंग्लैण्ड में भीषण जाड़ा पड़ा, तापमान ज़ीरो से कई डिग्री नीचे चला गया। इतनी बर्फ पड़ी कि मकानों की छतें ढक गयीं, पेड़ों की नंगी डालें बर्फ से सफेद हो गयीं, हर खुली जगह पर बर्फ की परतें जम गयीं। अखबारों में निकला कि पिछले पच्चीस वर्षों में ऐसी ठण्ड नहीं पड़ी। और ठण्ड बढ़ते-बढ़ते इस हद तक पहुँची कि एक दिन केम्ब्रिज की कैम नदी जम गयी। जमी नदी की कल्पना आप शायद ही ठीक से कर सकें। लगता है, नदी मर गयी और कफन ओढ़कर पड़ी है-'जब नदी मर गयी-जब नदी जी उठी' शीर्षक से मेरी एक कविता है मेरे किसी संग्रह में।
धन्य हैं इंग्लैण्ड के लोग, जो ऐसी भीषणता को भी त्यौहार में बदल देते हैं। बच्चे जमी नदी पर दौड़ने को निकल पड़े, नवयुवकों ने अपनी सहेलियों के साथ उस पर नृत्य किया, बहुतों ने उस पर स्केटिंग की। कुछ दुर्घनाएँ भी हुईं एकाध जगह, बर्फ पाँवों के नीचे धसक गयी और बच्चे नीचे चले गये और लापता हो गये।
मैं अपनी डिग से चला, कुछ दूर पर एक पुल पारकर मुझे हेन के कमरे में जाना था, पर यह देखकर कि कई लोग नदी पर स्केटिंग कर रहे हैं, मैंने सोचा नदी पर चलकर मैं भी पार हो जाऊँ, यह भी अद्वितीय अनुभव रहेगा।
उस सर्वथा नवीन अनुभव से उद्वेलित, हेन के कमरे में पहुँचकर उन्हें प्रसन्नचित पा मैंने कहा, 'श्रीमन, आज तो मैं नदी के ऊपर चलकर आपके पास आया हूँ...'
हेन की मुद्रा बदल गयी, भौंहें तन गयीं, फिर अपने क्रोध को क्वचित् नियन्त्रित कर उन्होंने व्यंग्य से कहा, 'तो अब आप दूसरे क्राइस्ट के रूप में माने जायेंगे।' ...(क्राइस्ट ने एक बार पानी पर चलने का चमत्कार दिखाया था)। और फिर वे अपने को रोक न सके, बरस ही पड़े, 'तुमने यह क्या बेवकूफी की, तुम बीवी-बच्चे वाले आदमी, मैंने तो समझा था तुममें कुछ अक्ल है, दुर्भाग्यवश बर्फ टूट जाती तो तुम्हारा पता न मिलता, कुछ सोचा, तुम्हारे बीवी-बच्चों पर क्या गुज़रती...मैं तुमसे बहुत नाराज़ हूँ।'
उस दिन उनकी डाँट से मुझे जैसी आत्मीयता का अनुभव हुआ था, वैसी उनके मीठे वचनों से नहीं। केम्ब्रिज में मुझे कोई डाँटने वाला तो है, अपना समझकर। अपने पर ही क्रोध भी किया जाता है, गैर की तो उपेक्षा की जाती है।
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