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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


विदा-भेंट के रूप में मैं सफेद और लाल गुलाबों के दो गुच्छे ले गया था। मैंने कहा, 'प्राचीन भारत में जब शिष्य गुरु से विदा होने जाता था तो उसे दक्षिणा प्रदान करता था। वही परम्परा निभाने के रूप में मैं दो पुष्प-गुच्छ लाया हूँ, सफेद आपके लिए हैं, लाल श्रीमती हेन के लिए। इस समय और कुछ के लिए मेरी असमर्थता तो आप...।' मुझे कुछ भावुक होते देख हेन हँसे, 'देखो जी, प्राचीन भारत में शिष्य को फीस तो नहीं देनी पड़ती थी। कॉलेज तो तुमसे फीस लेता रहा है, वह दक्षिणा तो हुई ही। ये फूल ही बहुत हैं, धन्यवाद, लेकिन दूसरा गुच्छा तुम जाकर वीवियन को खुद दो, इससे वे ज़्यादा प्रसन्न होंगी और तुम्हारे केम्ब्रिज से जाने के पहले वे तुम्हें अपने हाथ से बनाई एक प्याली चाय ज़रूर पिलाना चाहेंगी।'

उन्होंने मुझसे कहा, 'केम्ब्रिज की डॉक्टरेट अकादमिक दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है, इससे तुम्हारे कैरियर में भी उन्नति होगी, योरोप और अमरीका में अंग्रेज़ी तो लोग हिन्दुस्तानियों से नहीं पढ़ेंगे, पर जापान, हांगकांग, नैरोबी और अफ्रीका के कई नगरों से केम्ब्रिज-शिक्षित-दीक्षित अंग्रेज़ी के अध्यापकों की माँग बराबर रहती है, सर्विस कण्डिशन्स बहुत अच्छी, तुम जाना चाहो तो मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ।' मैंने कहा, 'हिन्दी का छोटा-मोटा लेखक भी होने के नाते अपने भाषा-क्षेत्र से दूर जाना मेरे लिए हितकर न होगा, फिर मेरे बच्चे ऐसी अवस्था में हैं, जिसमें मैं चाहूँगा कि वे देश के ही संस्कारों में पले-बढ़ें।' वे मेरे विचार से सहमत हुए।

हेन की प्रसिद्ध पुस्तक The Lonely Tower (द लोनली टावर) मैंने बहुत पहले खरीदी थी, साथ लेता गया था कि इस पर उनके हस्ताक्षर ले लूँगा। मैंने पुस्तक उनकी ओर बढ़ा दी। और उन्होंने जो उस पर लिखा, उससे वे मेरी दृष्टि में बहुत ऊँचे उठ गये।

With gratitude for many wrong things which the owner has pointed out in this book !—Tom Rice Henn.

(इस पुस्तक के मालिक ने इसमें जो बहुत-सी गलतियाँ दिखलाई हैं उसके लिए मैं आभार प्रकट करता हूँ :-टाम राइस हेन)

पाठकों को स्मरण होगा कि अपनी किसी स्थापना को सही साबित करने के लिए मि० हेन की किसी स्थापना को मुझे गलत साबित करना पड़ा था। इसके लिए मेरे मन में बड़ा संकोच था, बड़ा भय भी था, उनकी नाराज़गी का; अपने से छोटों, अपने से कम योग्यों द्वारा अपनी आलोचना कौन सहन करेगा-उनके सामने मेरी हस्ती ही क्या थी!-सहन ही नहीं करेगा, उसके लिए कृतज्ञ होगा? वही, जो तथाकथित नहीं वास्तव में बड़ा होगा, बड़े जिगरे वाला होगा, और इस बात से आश्वस्त होगा कि वह ऐसी जगह बड़ा है, जहाँ उसके बड़प्पन को चुनौती नहीं दी जा सकती।-हेन कहे जा रहे थे, 'किसी गुरु के लिए इससे अधिक हर्ष और गर्व का अवसर नहीं हो सकता कि उसका शिष्य उसकी भूलों को देख सकें और उन पर उँगली रखने का साहस कर सके।' कौन कह सकता है कि हेन उन महान् गुरुओं की परम्परा में नहीं थे जिन्होंने यह उद्घोषणा की थी-शिष्यात्पुत्रादिच्छेद पराभवम्!

केम्ब्रिज की पी-एच० डी० की डिग्री बहुत बड़ी है।

आप चाहें तो कह सकते हैं, और मैं उस पर आपत्ति नहीं करूँगा कि इसे पाने का मुझे गर्व है।

पर आप इसे सच मानें कि इस पर मुझे अधिक गर्व है कि केम्ब्रिज में मैं हेन जैसे गुरु का शिष्य रहा।

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