लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

201 पाठक हैं

आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


उनकी एक और पुस्तक The Apple and Spectroscope (दि ऐपिल एण्ड स्पेक्ट्रास्कोप) भी मैं अपने साथ ले गया था; उस पर उन्होंने अपने हाथ से मेरा नाम लिख दिया था H. R. Bachchan (Discipulo) नीचे अपना पूरा नाम Tom Rice Henn लिख दिया था लैटिन Discipulo, अंग्रेज़ी Disciple, हिन्दी शिष्य।

फिर भी मैं स्मरण करना चाहूँगा तुलसी का एक दोहा,

हौंहु कहावत सब कहत राम सहत उपहास।
साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास॥

हेन ने जीवनपर्यन्त मेरे प्रति अपना गुरुत्व निभाया।

वे बराबर मेरी गतिविधि जानने को मुझे पत्र लिखते रहे-मैं कैसा हूँ, कहाँ हूँ, क्या कर रहा हूँ, क्या लिख रहा हूँ-मेरी कौन पुस्तक प्रकाशित हो रही है?

केम्ब्रिज से लौटने के ग्यारह वर्ष बाद, ईट्स की जन्म-शताब्दी पर जब मैंने अपनी थीसिस पुस्तक रूप में प्रकाशित की तो उन्होंने बड़ी खुशी से उसकी भूमिका लिखी। कभी आपको अवसर मिले तो उस भूमिका को देखें, मूल पुस्तक तो आपको रुचिकर न लगेगी, जब तक आप ईट्स की रचनाओं से पूर्णतया भिज्ञ न हों। मेरी पुस्तक को जो महत्त्व उन्होंने दिया, उसमें मेरे प्रति उनकी कृपा और उदारता ही अधिक बोलती है। ऐसे महान् व्यक्ति का कृपापात्र होना ही क्या कम महत्त्व की बात है!

भूमिका में एक स्थान पर वे लिखते हैं-

Dr. Bachchan is himself a Hindi poet of reputation and (so far as one may judge in translation) there is a striking similarity of approach particularly as regards images and symbols as between his own technique and that of Yeats.

(डा० बच्चन स्वयं हिन्दी के प्रख्यात कवि हैं, और जहाँ तक अनवादों को देखकर कोई निर्णय कर सकता है, यह कहना गलत न होगा कि काव्य के प्रति दृष्टिकोण में, विशेषकर रूपकों और प्रतीकों के उपयोग में, उनकी और ईट्स की तकनीक में अद्भुत समानता है।)

मेरे ऊपर शोध-कार्य करने वाले भारत की कई युनिवर्सिटियों में मेरी कविता की मिट्टी पलीद कर रहे हैं। काश, उनमें से कोई हेन की इस स्थापना को लेकर कुछ तत्त्व की बात कहता। खैर।

शताब्दी-वर्ष में ही जब मैंने ईट्स की 100 कविताओं का अनुवाद हिन्दी में करके छपाया, 'मरकत द्वीप का स्वर' के नाम से, तब उन्होंने उसकी एक प्रति मुझसे मँगाई, हालाँकि वे हिन्दी का एक अक्षर भी नहीं पढ़ सकते थे। उन्होंने मुझे लिखा था, 'अब तो केम्ब्रिज युनिवर्सिटी में हिन्दी विभाग भी खुलने वाला है और यहाँ बहुत-से हिन्दी जानने वाले होंगे, मैं किसी से पढ़वाकर तुम्हारा अनुवाद सुनूँगा।'

1970 में एक जम्बो जेट दिल्ली से न्यूयार्क तक की अपनी प्रथम उड़ान पर जा रहा था। ऐसे अवसर पर ऐसी प्रथा है, भारत सरकार कुछ जाने-माने नागरिकों को अतिथि-रूप में यात्रा करने के लिए आमन्त्रित करती है। तेजी को भी निमन्त्रण मिला था। तेजी लौटते समय लन्दन से मेरे पूर्व शिष्य ओंकारनाथ श्रीवास्तव को साथ लेकर, जो वहाँ बी० बी० सी० में उन दिनों काम करते थे, केम्ब्रिज गयीं। केम्ब्रिज पहुँचकर तेजी सेंट कैथरीन्स कॉलेज गर्दी और वहाँ से हेन को फोन किया। उन्होंने फोन पर कहा, 'आप जहाँ हैं, वहीं रुकें, मैं आ रहा हूँ।' और वे अपनी कार लेकर फौरन कॉलेज आये और तेजी और ओंकार को अपनी गाड़ी में बिठाकर सारा केम्ब्रिज दिखाया, एक-एक जगह दिखाई, जहाँ मैं रह चुका था, लाइब्रेरी, कॉलेज का अपना कमरा, जहाँ-जहाँ मैंने काम किया था, फिर अपने घर, अपनी स्टडी में लिवा ले गये, जिसे दिखलाकर श्रीमती हेन ने कहा, 'इसी कमरे में आपके और मेरे पति ने न जाने कितनी शामों को घण्टों बैठकर काव्य और साहित्य की चर्चा की है।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book