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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


चलने लगे तो ओंकार ने हेन के पाँव छुये, 'आप तो मेरे गुरु के भी गुरु हैं।' तेजी बताती र्थी, हेन की आँखों में आँसू भर आये थे।

अमिताभ 1973 में अपने विवाह के बाद हनीमून मनाने को लन्दन गये तो केम्ब्रिज भी गये और अपनी पत्नी के साथ उन्होंने मि० हेन के दर्शन किये। वे भावविभोर हो उठे। बहुत वृद्ध हो गये थे, बैसाखी पर चलते थे। एक पारिवारिक त्रासदी ने उनकी कमर तोड़ दी थी। उनके एकमात्र लड़के का भरी जवानी में अकस्मात् देहान्त हो गया था। मुझे सूचित करते हुए लिखा था, 'कृपया कोई संवेदना न व्यक्त करें।' मैंने ईट्स की पंक्तियाँ लिख भेजी थीं,

So like a bit of stone I lie
Under a broken tree,
I could recover if I shrieked
My heart's agony
To passing bird, but I am dumb
From human dignity.

मेरा हिन्दी अनुवाद है :

टूटे तरु के नीचे
छोटे-से पत्थर-सा पड़ा हुआ हूँ मैं कब से,

विजड़ित जडिमा से।
मेरा दिल हल्का हो जाता,
डाली पर बैठी चिड़िया को
यदि मैं अपनी पीर सुनाता,
लेकिन मैं मुँह बन्द किये मानव गरिमा से।

एक पंक्ति में उनका उत्तर मिला था, 'तुम्हारा पत्र प्रतिध्वनि के समान आया है।'

और हेन अपना मुँह बन्द किये ही, पर मानव-गरिमा के साथ, इस दुनिया से चले गये।

हेन से जो मुझे मिला था, मेरे भाग्य ने अवसर ही न दिया कि मैं अपने शिष्यों को दे सकूँ। वही उनसे उऋण होने का एकमात्र उपाय होता-

गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के।

काश, मेरे पाठक परशुराम के प्रति कही गयी लक्ष्मण की इस व्यंग्योक्ति को उसके सन्दर्भ में अलग करके देख सकते।

मन में बड़ा मलाल हो रहा था कि इतने दिन बाद लौट रहा हूँ और बच्चों के लिए कुछ नहीं ले जा रहा हूँ। बावा ने मेरी वेदना देखी और मुझे दस पौण्ड और दे दिये। मैंने अमित के लिए एक छर्रे वाली बन्दूक ले ली-उसकी बाढ़ देखकर हम पहले सोचा करते थे कि वह फौज में जायेगा, हम उसे कभी-कभी फील्ड मार्शल अमिताभ कहकर पुकारते भी थे। बंटी के लिए मैंने बिजली से चलने वाली एक रेलगाड़ी ली। सोचा, तेजी पूछेगी, 'मेरे लिए क्या लाये?' तो कहूँगा, 'तुम्हारे लिए तो मैं खुद ही आ गया'-वही उत्तर, जो मैं किसी समय श्यामा को बाहर से लौटने पर देता था। न उनके लिए कुछ लिया, न अपने लिए, राजन के लिए एक टाई ज़रूर ले ली, अपने स्नेह-बन्धन के प्रतीक रूप। पाँच पौण्ड बचाकर अपने पास रख लिये, नकद इतना ही अधिकतम समुद्री यात्रा में साथ ले जा सकता था।

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