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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


पण्डितजी ने कहा, 'मुझे अफसोस है, मैं अभी तक तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सका। पर जल्द ही विदेश मन्त्रालय में एक ऐसे अफसर ही ज़रूरत होगी, जो अच्छी हिन्दी के साथ अच्छी अंग्रेज़ी भी जानता हो; क्योंकि काम प्रायः अनुवाद का होगा, राजनयिक दस्तावेज़ों-पत्रों का; तुम आना चाहोगे? तनख्वाह अच्छी होगी।'

मैंने कहा, 'आप मुझे किसी काम के योग्य समझकर बलायेंगे तो मैं निश्चय आऊँगा, तनख्वाह के कम-ज्यादा होने के बारे में मैं नहीं सोचूँगा।'

मैं तो अब किसी बहाने इलाहाबाद छोड़ने को आतुर था।
मेरे उत्तर से नेहरूजी प्रसन्न हुए।
मेरे नक्षत्रों में हरकत हो गयी थी।

अगस्त में डा० केसकर इलाहाबाद आये, वे उन दिनों सूचना एवं प्रसारण मन्त्री थे। उनके आने से पूर्व ही नगर के साहित्यकारों में यह खबर फैल गयी थी कि आल इण्डिया रेडियो अपने विभिन्न केन्द्रों पर जाने-माने साहित्यकारों को 'प्रोड्यूसर' के रूप में नियुक्त करने वाला है। रेडियो के सन्दर्भ में तब यह शब्द नया-नया था और किसी को पता नहीं था कि 'प्रोड्यूसर' का काम क्या होगा। डा० केसकर की प्रयाग-यात्रा उसी सम्बन्ध में थी। इलाहाबाद रेडियो केन्द्र ने उनके स्वागत में एक पार्टी दी थी जिसमें प्रायः सभी स्थानीय लेखकों को निमन्त्रित किया गया था और वे आये भी थे, निराला और महादेवी को छोड़कर, पर उन्होंने सदा से रेडियो से बाइकाट किया था। पार्टी में डा० केसकर ने एक छोटा-सा भाषण भी दिया था, जिसमें उन्होंने अपनी नयी योजना को स्पष्ट किया था। संक्षेप में प्रोड्यूसर' का काम वही होने को था जो पत्रिका में सम्पादक का होता है-वह अपने क्षेत्र के लेखकों से सम्पर्क बनाये रहे और उनकी नवीन और उत्कृष्ट रचनाओं को प्रसारित कराने के सम्बन्ध में रेडियो को सलाह-सहायता दे। प्रोड्यूसर के अच्छे-खासे वेतन की कल्पना लोगों ने शायद स्वयं कर ली थी। पंतजी को 1000/= प्रति मास मिल ही रहे थे।

जहाँ तक मुझे स्मरण है, डा० केसकर के सम्मान में दो-तीन पार्टी-गोष्ठियाँ हई थीं और सभी में साहित्यकारों की अच्छी उपस्थिति थी-कुछ-कुछ ज़्यादा ही उनके आगे-पीछे, जाहिर है उनकी नज़रों में चढ़ने या उन्हें प्रभावित करने की दृष्टि से, कुछ अपनी चाल-ढाल में सामान्यतया लापरवाही बरतने वाले प्रयत्नपूर्वक संयत, सलीकेदारी से, कुछ ने, याद पड़ता है, उन्हें अपनी रचनाएँ भी भेंट की थी।

डा० केसकर आये और चले गये, छोड़ गये प्रयाग के प्राय: प्रत्येक साहित्यकार के मन में रेडियो की प्रोडयसरी का सखद स्वप्न सेने को-न जाने किसके नाम किस दिन दिल्ली से नियुक्ति का पत्र आ जाये।....

जिन लोगों से मन्त्री महोदय ने अलग-अलग बातचीत की थी उनमें मैं भी था। बीस वर्ष के बाद मुझे याद तो नहीं कि उनसे मेरी क्या बातें हुई थी, पर उन दिनों केम्ब्रिज और अपने शोध-विषय W. B. Yeats and Occultism से मैं इतना भरा था कि सम्भवतः इन्हीं पर मैंने ज़्यादा बातें की होंगी, ज़्यादा क्या यही 5-7 मिनट, और निश्चय ही उससे उनके समक्ष मेरे हिन्दी साहित्यकार की अपेक्षा मेरे अंग्रेज़ी अध्यापक का रूप अधिक उभरा होगा। अपने साहित्यकार रूप से उन्हें प्रभावित करने का मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया था क्योंकि मेरे भविष्य की आशा मुख्य रूप से कहीं और अटकी थी, फिर भी यह कल्पना प्रीतिकर लगी थी कि उन्होंने अपनी पसन्द की सूची में मुझे भी सम्मिलित किया है, क्योंकि कई स्टेशनों के लिए कई लोग चुने जाने को थे।

कल्पना सच हो गयी।

सितम्बर में सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय से मेरे लिए पत्र आ गया-मुझे इलाहाबाद रेडियो स्टेशन पर हिन्दी प्रोड्यूसर के रूप में नियुक्त किया गया था, वेतन मुझे 750/=मिलने को था, पद अस्थायी था और शुरू-शुरू में केवल एक वर्ष के लिए था।

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