जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
इण्डिया हाउस से मुझे जो सहायता मिली, उसे वाजबी-वाजबी ही कह सकते हैं। किसी ने मुझे पहले ही आगाह कर दिया था कि वहाँ से अधिक की प्रत्याशा न करनी चाहिए और मैंने की भी नहीं। जिन लोगों से मैं वहाँ मिला था, उनके चेहरे अब मेरी स्मृति में धुंधले पड़ चुके हैं-एक याद है तो मि० नैस्टर का चेहरा। इंग्लैण्ड जाने के सम्बन्ध में जो पत्र-व्यवहार मुझे इण्डिया हाउस से करना पड़ा था, उसका उत्तर उन्होंने बड़ी तत्परता के साथ दिया था। अधेड़ उम्र के होंगे, लम्बे, शरीर से कुछ भारी और प्रसन्न मुख। वे असिस्टेंट एडूकेशन आफिसर थे और अपने काम और दायित्व को खूब अच्छी तरह जानते और निभाते थे। नवागंतुकों की क्या-क्या मुश्किलें हो सकती हैं, उन्हें मालूम थीं, और वे उन्हें दूर करने को जो कुछ भी कर सकते थे, करते थे, कम-से-कम उनके प्रति सचेत कर देते थे। लन्दन से ही उन्होंने केम्ब्रिज में मेरे लिए रहने का स्थान निश्चित कर दिया था और लैण्डलेडी को मेरे पहुँचने की सूचना दे दी थी, केम्ब्रिज में जिन प्रोफेसरों से मुझे मिलना था, उनके नाम, परिचय-पत्र दे दिये थे और युनिवर्सिटी के जीवन के विषय में भी कुछ मोटी-मोटी बातें बता दी थीं।
मेरा अनुमान है कि वे स्काच थे या वेल्श। इंग्लैण्ड में तीन तरह के अंग्रेज़ हैं-ऐंग्लो-सैक्सन, स्काच और वेल्श। विशुद्ध ऐंग्लो-सैक्सन गम्भीर, चुप्पा, मुदम्मिग और आत्म-पर्याप्त होता है, औपचारिकता का पाबन्द, कुछ नफासत भी लिये। स्काच खुली प्रकृति का होता है, अपनी सामान्य बुद्धि का विश्वासी, अपने व्यवहार-बर्ताव में दिखावटी आत्मानुशासन और शिष्टता से दूर, अधिक स्वाभाविक। वेल्श स्काच से बहत मिलता-जलता है. पर उससे अधिक भावक होता है- वास्तव में स्काच और वेल्श दोनों केल्ट रेस के हैं-आयरलैण्ड के निवासी भी इसी रेस के हैं जो अपनी ख्वाब-खयाली, कल्पना और भावप्रवणता के लिए प्रसिद्ध हैं। नेस्टर के स्वभाव में निश्चय खुलापन, मिलनसारी और सहृदयता थी। वह जब भी केम्ब्रिज आता, मुझसे मिलता, और मैं भी जब लन्दन जाता, उससे मिले बगैर न लौटता। एक बार उसने अपनी पत्नी से भी मुझे मिलाया था।
केम्ब्रिज लन्दन से 90 मील उत्तर है, रेल से पहुँचने में डेढ़ घण्टे लगते हैं। जैसे कोई गहरे पानी में तैरता-घबराया, छिछले पानी में आकर खड़ा हो जाये, वैसे ही मैंने लन्दन से केम्ब्रिज में आकर अनुभव किया। मंा अस्सी लाख आबादी के विराट नगर से अस्सी हज़ार आबादी की लघु नगरी में आ गया था। कम चौड़ी सड़कों, पतली गलियों, कम ऊँचे मकानों, कम यातायात, कम चहल-पहल के केम्ब्रिज में अपने को पाकर मैं मन-ही-मन आश्वस्त हआ कि यहाँ प्रया लघु नगरी के अभ्यस्त व्यक्ति के लिए अपनी सहेज-संभाल करना कठिन नहीं होगा।
दो-डेढ़ मील की लम्बाई-चौड़ाई की प्राय: समतल भूमि पर बसे केम्ब्रिज ने प्रथम सम्पर्क में ही मुझे मोह लिया। यों तो सारा केम्ब्रिज ही स्वच्छ और सुन्दर है, पर मन्द-मन्द बहती बड़ी नहर-सी कैम नदी के किनारे-किनारे सदियों पुराने कॉलेजों की इमारतों के सिलसिले, उन्हें दूसरे किनारे से जोड़ने वाले विभिन्न आकार-प्रकार के कई पुल-जिनमे से एक सफेद संगमरमर का है. एक काली लकडी का-नदी पर तैरती रंग-बिरंगी बत्तखें और शंख-श्वेत हंसों के जोडे लग्गी से खेई जाती छोटी-छोटी नावें जिन्हें 'पंट' कहते हैं, उस पार झुकी शाखाओं से पानी की सतह को सहलाने वाले विलो वृक्षों की कतारें, उनके पीछे सुनहरे डैफोडिल के खेत और उनकी पृष्ठभूमि में झाड़ियों का हरियाला फैलाव-सब मिलकर एक ऐसा शान्त-स्वप्निल चित्र प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें देखते आँखें नहीं अघाती। और अगर केम्ब्रिज का थोड़ा-सा इतिहास ज्ञात हो तो स्मृति-पटल पर उभरती हैं-उन प्रतिभावानों की आकृतियाँ, जो केम्ब्रिज में विचरी, जिन्होंने केम्ब्रिज से प्रेरणा ली, जो केम्ब्रिज में पनपी, फूली, फर्ली, और जिनके अवदान से विज्ञान और साहित्य समृद्ध हुए, सभ्यता और संस्कृति ने प्रगति की-आकृतियाँ न्यूटन, बेकन, डार्विन, स्पेंसर, क्रामवेल, मिल्टन की; मार्लो, ग्रे, थैकरे, वर्ड्सवर्थ, बाइरन, टेनिसन की; अपने देश के रामानुजम, अरविन्द, इकबाल, सुभाष बोस, जवाहरलाल की। मैंने पहली ही दृष्टि में केम्ब्रिज को समदिक् और ऊर्ध्व, दोनों आयामों में देखा, और उसके प्रति अपनी प्रथम प्रतिक्रिया बतलाना चाहूँ तो यही कहूँगा कि मैं अभिभूत हो गया-उसकी सौम्य सुन्दरता पर मुग्ध, उसकी चमत्कारी देन के प्रति नतमस्तक।
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