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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


केम्ब्रिज विशुद्ध विश्वविद्यालयी नगर है-उसमें या उसके कुर्ब-जवार में कोई आधुनिक उद्योग-धंधे नहीं खड़े किये गये और इस प्रकार वह फैक्ट्रियों और चिमनियों के शोर-गुल और धुंध-धुएँ से आज भी बिल्कुल अछूता है। विश्वविद्यालयी नगर आक्सफोर्ड भी है, पर वहाँ विश्वविद्यालय नगर पर हावी नहीं है, और अब तो उस पर फैक्ट्रियों-कारखानों ने भी धावा बोल दिया है। आक्सफोर्ड और केम्ब्रिज की तुलना करते हुए किसी पुराने प्रसिद्ध अंग्रेज़ी निबन्धकार ने कहा था कि 'आक्सफोर्ड एक सिटी है जिसके बीच एक युनिवर्सिटी बनी है, केम्ब्रिज एक युनिवर्सिटी है जिसके बीच एक सिटी बसी है।' केम्ब्रिज की अस्सी हज़ार की आबादी में दस हज़ार विद्यार्थी हैं, पाँच हज़ार युनिवर्सिटी से सम्बद्ध अन्य लोग,प्रोफेसर से पोर्टर तक, शेष उनकी किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति करने वाले काम-धंधों से सम्बद्ध। केम्ब्रिज की सड़कों पर सबसे ज़्यादा चलने वाली सवारी है-साइकिलें, जिन पर आते-जाते विद्यार्थियों के झुण्ड-के-झुण्ड किसी भी समय देखे जा सकते हैं-उनकी पीठ पर काले गाउन हवा से फूले, उड़ते दीर्घकाय चमगादड़ों के समान। प्रोफेसर, जिनके पास मोटरें हैं, वे भी एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज, एक लेक्चर-हॉल से दूसरे लेक्चर-हॉल में जाने के लिए साइकिलों का ही उपयोग करते हैं, केम्ब्रिज के सँकरे रास्तों पर अपनी मोटरें खड़ी कहाँ करें!

मनोरंजन, दिल-बहलाव और खेल-कूद के स्थानों, संस्थानों और संस्थाओं की केम्ब्रिज में कमी नहीं। कई सिनेमा हाउस हैं, एकाधिक नाचघर हैं, नाट्यशाला शायद एक ही है, खेलने के मैदान हैं, खुले पार्क हैं, तैरने का तालाब है, पंटिंग, बोटिंग करने के लिए कैम नदी है ही-विचित्र है कि कैम नदी में मैंने किसी को कभी नहाते या तैरते नहीं देखा-सौ से ऊपर क्लब हैं, विभिन्न रुचियों के, विचित्र रुचियों के भी- एक तो Night Climbers Club (रात को ऊँची इमारतों पर चढ़ने वालों का क्लब) है, जिसके सदस्य रातों को चोरी-छिपे ऊँची इमारतों, गुम्बदों और मीनारों पर चढ़ते हैं-इतने ही पब्स होंगे, पीने-पिलाने की जगहें, जिनको हम इलाहाबाद की बोली में 'होली' कहते हैं, आप सम्मानसूचक नाम देना चाहें, तो इन्हें पान-शाला या मधुशाला कह सकते हैं। साल में एक-दो बार लगने वाले मेले-ठेले हैं, जिन्हें 'कार्निवल' कहते हैं और 'मेबाल' हैं, विशुद्ध विद्यार्थियों के मधुपान और नृत्य-गान के उत्सव, जो मई के महीने में परीक्षाओं के समाप्त होने पर मनाये जाते हैं। फिर भी, केम्ब्रिज के वातावरण में एक गहन गांभीर्य की अनुभूति हर समय होती है, कुछ लोगों ने उसे उदासी और कइयों ने उसे मनहूसियत तक कहा है। बाइरन ने केम्ब्रिज के बारे में लिखा था :

Where learning robed in sable reigns and melancholy pale.
(जहाँ पीतवर्णी उदासी और कृष्ण वस्त्राभूषित विद्वत्ता का शासन है)

और रुपर्ट बुक ने-

In Cambridge people rarely smile.
(केम्ब्रिज में कभी ही कोई मुसकराता है)।

प्रतियोगिता के लिए खेली जाने वाली मैचों और बोट-रेसों के अभ्यास में आप कोच' को-खेल के प्रशिक्षकों को इस प्रकार डाँटते-डपटते सुन सकते हैं. Dont play at it. (खेल मत करो)। हद हो गयी खेलो भी गम्भीरता के पर यह केम्ब्रिज के लिए सच है। वहाँ खेला भी गम्भीरता से जाता है, तो अध्ययनअध्यापन की गम्भीरता का अनुमान आप सहज ही कर सकते हैं।

वास्तव में वहाँ की गम्भीरता के पीछे हैं-वहाँ के अध्यापक और विद्यार्थी। केम्ब्रिज में हर वर्ष लगभग 3000 नये विद्यार्थी लिये जाते है, परन्तु केवल मैट्रिक्यूलेशन की परीक्षा पास कर लेना ही, किसी उच्च श्रेणी में भी, वहाँ प्रवेश पाने के लिए पर्याप्त नहीं होता। इसके लिए युनिवर्सिटी की एक प्रतियोगिता परीक्षा में भी बैठना पड़ता है। कोई 30,000 विद्यार्थी बैठते हैं और उनमें से केवल 3000 दाखिले के लिए चुने जाते हैं। स्पष्ट है कि उनमें बहुत ऊँचे दर्जे की योग्यता होती है और वे कछ विशिष्ट बनने का आदर्श सामने रखकर आते हैं और उन्हें जो अवसर मिलता है, उसका पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। 'फेल' नाम की चीज़ केम्ब्रिज में सहन नहीं की जाती। फेल विद्यार्थी को केम्ब्रिज से निकाल दिया जाता है, जिसे वहाँ की शब्दावली में Sending down (सेंडिंग डाउन) कहते हैं, और किसी विद्यार्थी के लिए इससे बड़े अपमान की बात नहीं सोची जा सकती। जहां महत्त्वाकांक्षा का इतना मानसिक तनाव और असफलता का ऐसा घनघोर आतंक हो, वहाँ के वातावरण में गांभीर्य न हो तभी आश्चर्य होगा।

और इस गांभीर्य को मैंने तो अपने स्वभाव के अनुकूल ही पाया। मैंने अपने स्वभाव की गम्भीरता की ओर पहले भी संकेत किया है। उसे मैं अच्छा तो नहीं समझता, पर मेरे ऊपर कुछ ऐसे संस्कार पड़े, मेरे जीवन में कुछ ऐसी त्रासदियाँ घर्टी, मुझे अपने प्रतिकूल पड़ने वाले बहुत-कुछ से इतनी रगड़-झगड़ करनी पड़ी कि मेरे मन की सहज प्रसन्नता खो गयी। केम्ब्रिज में मैं बिना पर्याप्त आर्थिक साधन के उतर पड़ा था, अपने बीवी-बच्चों से बिछुड़ने का गम मुझे था ही, पर उसका केवल भावनात्मक पक्ष न था। मैं अपनी कच्ची गिरिस्ती छोड़कर आया : और मुझे सात समुन्दर पार अकेले पड़े अपने सुकुमार परिवार की सुविधा, सकुशलता और सुरक्षा की भी चिन्ता थी। इसका तनाव मैंने अपने प्रवास में निरन्तर अनुभव किया।

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